यहां भागवत गीता: अध्याय 12 (भक्ति योग) के श्लोक 13 से श्लोक 20 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उन भक्तों के गुणों का वर्णन किया है, जो उन्हें अत्यंत प्रिय हैं।
श्लोक 13-14
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥
अर्थ:
"जो सभी प्राणियों से द्वेष नहीं करता, सबके प्रति मैत्री और करुणा भाव रखता है, जो ममता और अहंकार से रहित, सुख-दुःख में समान, और क्षमाशील है, जो सदा संतुष्ट, मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने वाला, दृढ़ निश्चय वाला और जिसने अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पित किया है – ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।"
व्याख्या:
यहाँ भगवान एक आदर्श भक्त के गुणों का वर्णन करते हैं:
- द्वेषहीनता: सभी के प्रति मैत्री और करुणा।
- समभाव: सुख और दुःख में समान दृष्टि।
- निर्ममता: किसी भी चीज़ के प्रति स्वार्थहीनता।
- संयम: मन और इंद्रियों पर नियंत्रण।
- भक्ति: मन और बुद्धि को भगवान में समर्पित करना।
ऐसे गुणों वाला भक्त भगवान को अत्यंत प्रिय होता है।
श्लोक 15
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥
अर्थ:
"जिससे लोक (प्राणी) विचलित नहीं होते और जो स्वयं लोक से विचलित नहीं होता, जो हर्ष, अमर्ष (ईर्ष्या), भय और उद्वेग से मुक्त है – ऐसा व्यक्ति मुझे प्रिय है।"
व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति शांत और स्थिर है, जो दूसरों के लिए कष्ट का कारण नहीं बनता और स्वयं भी दूसरों से प्रभावित नहीं होता, वह सच्चा भक्त है। इस प्रकार का संतुलन आत्मा की शुद्धता और संयम का प्रतीक है।
श्लोक 16
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥
अर्थ:
"जो अनपेक्ष (निःस्वार्थ) है, शुद्ध है, दक्ष है, उदासीन (अलगाव में संतुष्ट) है, और व्यथा (कष्ट) से मुक्त है, जो सभी कार्यों के आरंभ को त्याग देता है – ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।"
व्याख्या:
यह श्लोक निःस्वार्थता, पवित्रता, दक्षता और आत्मनियंत्रण की महिमा को दर्शाता है। जो व्यक्ति अपने कार्यों और भावनाओं में भगवान को समर्पित करता है और किसी स्वार्थ से बंधा नहीं रहता, वह भगवान का प्रिय बनता है।
श्लोक 17
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥
अर्थ:
"जो न हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कुछ चाहता है, और शुभ-अशुभ कर्मों का त्याग कर देता है – ऐसा भक्त, जो भक्ति में स्थिर है, मुझे प्रिय है।"
व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि सच्चा भक्त वही है, जो मन में संतुलित रहता है। वह न तो सुख में हर्षित होता है, न दुःख में शोक करता है, और शुभ-अशुभ कर्मों के बंधन से मुक्त होता है।
श्लोक 18-19
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः॥
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः॥
अर्थ:
"जो शत्रु और मित्र के प्रति समान भाव रखता है, मान और अपमान में समान रहता है, शीत और उष्ण, सुख और दुःख में भी समान रहता है, जो आसक्ति से रहित है, निंदा और स्तुति में समान है, मौन है, किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट रहता है, जो अनिकेत (घर से मुक्त) है और जिसका मन स्थिर है – ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।"
व्याख्या:
यहाँ भगवान ने सच्चे भक्त के उच्च गुणों का वर्णन किया है। ऐसे भक्त:
- समान दृष्टि रखते हैं – मित्र-शत्रु, मान-अपमान, सुख-दुःख में।
- संतोष और शांति को अपनाते हैं।
- मौन और त्याग की भावना रखते हैं।
- आसक्ति और घर के बंधन से मुक्त होते हैं।
यह समभाव और भक्ति भगवान के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
श्लोक 20
ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः॥
अर्थ:
"जो भक्त इस धर्म रूपी अमृत का पालन करते हैं, जैसा मैंने बताया है, और श्रद्धा सहित मुझमें मन लगाते हैं – वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं।"
व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि जो भक्त भक्ति के इस मार्ग को अपनाते हैं और उनके बताए गुणों को अपने जीवन में उतारते हैं, वे उन्हें सबसे अधिक प्रिय हैं। श्रद्धा और समर्पण ही सच्ची भक्ति के लक्षण हैं।
सारांश (श्लोक 13-20):
- भगवान ने आदर्श भक्त के गुणों का वर्णन किया है:
- मैत्री और करुणा: सभी प्राणियों के प्रति।
- द्वेषहीनता और क्षमा: किसी से भी बैर न करना।
- समभाव: सुख-दुःख, मान-अपमान, शत्रु-मित्र में समानता।
- संतोष और त्याग: निंदा-स्तुति, शुभ-अशुभ कर्मों के प्रति निर्लिप्तता।
- मौन और स्थिर चित्त।
- ऐसे भक्त जो सच्चे समर्पण और श्रद्धा के साथ भगवान की भक्ति करते हैं, वे उन्हें अत्यंत प्रिय हैं।
- यह श्लोक भक्ति के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा देता है और सच्ची भक्ति के लक्षणों को समझने का मार्गदर्शन करता है।
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