शिव तांडव स्तोत्रम्
रचनाकार: रावण
भावार्थ: इस स्तोत्र में भगवान शिव के तांडव नृत्य, उनकी महिमा, शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत वर्णन किया गया है।
॥ शिव तांडव स्तोत्रम् ॥
1.
जटाटवी-गलज्जल प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥
✅ अर्थ:
जिनकी जटाओं से बहने वाले गंगाजल से उनका गला पवित्र हो रहा है, जो अपने गले में बड़े-बड़े सर्पों की माला धारण किए हुए हैं और डमरू की गूंज के साथ प्रचंड तांडव कर रहे हैं, वे शिव हमें मंगल प्रदान करें।
2.
जटा-कटा-हसंभ्रम-भ्रमन्निलिम्प-निर्झरी-
विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान-मूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥
✅ अर्थ:
जिनकी जटाओं से गिरती हुई गंगा की लहरें उनके सिर पर शोभायमान हैं, जिनके ललाट पर अग्नि जल रही है और जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र शोभा पा रहा है, मैं उन शिवजी की आराधना में लीन रहूं।
3.
धराधरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मान-मानसे।
कृपाकटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरेऽ मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
✅ अर्थ:
जो गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के प्रियतम हैं, जिनके कृपा-कटाक्ष से संसार के सभी संकट दूर हो जाते हैं और जो दिगम्बर रूप में स्थित हैं, मेरा मन उन्हीं शिवजी में आनंदित हो।
4.
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणामणि-प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिग्वधूमुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवत्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ॥4॥
✅ अर्थ:
जिनकी जटाओं में सुशोभित सर्पों के फणों की मणियों से निकलने वाली चमक दिशाओं को प्रकाशित कर रही है, जिनकी अग्नि से कामदेव भस्म हो गए थे, उन शिवजी को मेरा प्रणाम।
5.
ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा
निपीत-पञ्चसायकं नमन्निलिम्प-नायकम्।
सुधा-मयूख-लेखया विराजमान-शेखरं
महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः ॥5॥
✅ अर्थ:
जिनके ललाट की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए थे, जो समस्त देवताओं के स्वामी हैं और जिनके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है, वे महाकाल हमें समृद्धि प्रदान करें।
6.
कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जया-हुतीकृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायक।
धराधरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्रपत्रक
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥6॥
✅ अर्थ:
जिनके भाल प्रदेश में भयंकर अग्नि प्रज्वलित है, जिनकी ज्वाला में कामदेव भस्म हो गए थे और जो माता पार्वती के हृदय में प्रेम की कला रचने वाले हैं, उन त्रिलोचन शिव में मेरी भक्ति बनी रहे।
7.
नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहूनिशीथि-नीधि-नीलपङ्कजं दृशा।
विनिर्गमत्-क्रमस्फुरत्-कराल-भाल-हव्यवत्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ॥7॥
✅ अर्थ:
जो घने काले बादलों से आच्छादित आकाश के समान हैं, जिनकी दृष्टि चंद्रमा के समान शीतल है, और जिनके ललाट की अग्नि ने कामदेव को भस्म कर दिया था, उन शिवजी की मैं वंदना करता हूँ।
8.
स्फुरत्-कपोल-पीठिका-नितम्ब-बर्हि-पीत्म-
कुसुमोपहार-पार्वती-निसेविताऽशिवः।
तपस्यधिगतं ह्यहं न वेद वन्दनं
तनोतु नः शिवः शिवम् ॥8॥
✅ अर्थ:
जिनके कपोल और नितंबों पर अद्भुत आभा है, जो पार्वतीजी के प्रियतम हैं और जो निरंतर तपस्वियों द्वारा वंदित होते हैं, वे शिव हमें कल्याण प्रदान करें।
शिव तांडव स्तोत्र के पाठ के लाभ
- इस स्तोत्र के नियमित पाठ से मानसिक शक्ति बढ़ती है।
- यह सभी नकारात्मक ऊर्जाओं और भय को दूर करता है।
- भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- मन को शांति और आध्यात्मिक बल मिलता है।
🙏 हर हर महादेव! 🙏
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