भगवद गीता – त्रयोदश अध्याय: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग
(Kshetra-Kshetragna Vibhaga Yoga – The Yoga of the Distinction Between the Field and the Knower of the Field)
📖 अध्याय 13 का परिचय
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग गीता का तेरहवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण "क्षेत्र" (शरीर) और "क्षेत्रज्ञ" (आत्मा) के भेद को समझाते हैं। इस अध्याय में प्रकृति और पुरुष, ज्ञान का स्वरूप, और परमात्मा की विशेषताएँ स्पष्ट की गई हैं।
👉 मुख्य भाव:
- क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) का भेद।
- ज्ञान क्या है और कैसे प्राप्त किया जाए?
- परमात्मा, प्रकृति और पुरुष का रहस्य।
📖 श्लोक (13.2):
"श्रीभगवानुवाच:
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः॥"
📖 अर्थ: हे अर्जुन! यह शरीर "क्षेत्र" (क्षेत्र अर्थात् कर्मभूमि) कहलाता है, और जो इसे जानता है, उसे "क्षेत्रज्ञ" (आत्मा) कहते हैं।
👉 यह अध्याय हमें सिखाता है कि आत्मा शरीर से भिन्न है और परमात्मा प्रत्येक आत्मा में स्थित हैं।
🔹 1️⃣ अर्जुन का प्रश्न और श्रीकृष्ण का उत्तर
📌 1. अर्जुन के छह प्रश्न (Verse 1)
अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं:
1️⃣ क्षेत्र (Kshetra) क्या है?
2️⃣ क्षेत्रज्ञ (Kshetragna) कौन है?
3️⃣ ज्ञान (Jnana) क्या है?
4️⃣ ज्ञेय (Jneya) यानी जानने योग्य क्या है?
5️⃣ प्रकृति (Prakriti) क्या है?
6️⃣ पुरुष (Purusha) क्या है?
📖 श्लोक (13.1):
"अर्जुन उवाच:
प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च।
एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव॥"
📖 अर्थ: हे केशव! मैं प्रकृति, पुरुष, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, ज्ञान और ज्ञेय को जानना चाहता हूँ।
👉 अर्जुन के इन गूढ़ प्रश्नों का उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण तत्वज्ञान का उद्घाटन करते हैं।
🔹 2️⃣ क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) का भेद
📌 2. क्षेत्र क्या है? (Verses 2-7)
- श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह शरीर (पंचमहाभूतों से बना) ही क्षेत्र है।
- क्षेत्र में इंद्रियाँ, मन, बुद्धि, अहंकार, इच्छाएँ, सुख-दुःख और चेतना शामिल हैं।
- यह नश्वर और परिवर्तनशील है।
📖 श्लोक (13.6-7):
"महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः॥"
📖 अर्थ: पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश), अहंकार, बुद्धि, अव्यक्त (मूल प्रकृति), दस इंद्रियाँ और मन – ये सब क्षेत्र (शरीर) के घटक हैं।
👉 यह शरीर नश्वर है, लेकिन इसके भीतर स्थित आत्मा अमर है।
📌 3. क्षेत्रज्ञ कौन है? (Verses 8-12)
- जो इस शरीर को जानता है (आत्मा), वही क्षेत्रज्ञ है।
- आत्मा शरीर में रहते हुए भी उससे भिन्न है।
- परमात्मा भी सभी शरीरों में स्थित क्षेत्रज्ञ (साक्षी) रूप में हैं।
📖 श्लोक (13.3):
"क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम॥"
📖 अर्थ: हे भारत! सभी शरीरों में स्थित क्षेत्रज्ञ (आत्मा) को भी मैं ही हूँ। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का सही ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।
👉 भगवान स्वयं प्रत्येक आत्मा में परमात्मा के रूप में स्थित हैं।
🔹 3️⃣ सच्चे ज्ञान के लक्षण
📌 4. ज्ञान क्या है? (Verses 8-12)
- विनम्रता, अहिंसा, धैर्य, पवित्रता, भक्ति और सत्यता – ये सभी सच्चे ज्ञान के लक्षण हैं।
- श्रीकृष्ण बताते हैं कि ज्ञान केवल सूचनाएँ प्राप्त करना नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार करना है।
📖 श्लोक (13.11):
"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी।
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि॥"
📖 अर्थ: अनन्य भक्ति, अकेले में ध्यान, और सांसारिक विषयों में रुचि न होना – ये सभी सच्चे ज्ञान के लक्षण हैं।
👉 ज्ञान का अर्थ केवल पढ़ना नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और भक्ति भी है।
🔹 4️⃣ जानने योग्य परम सत्य (परमात्मा)
📌 5. जानने योग्य क्या है? (Verses 13-19)
- परमात्मा ही सच्चा जानने योग्य तत्व (ज्ञेय) हैं।
- वे अनंत, सर्वव्यापक, अजन्मा, और समस्त सृष्टि के कारण हैं।
📖 श्लोक (13.16):
"बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च।
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत्॥"
📖 अर्थ: परमात्मा सभी प्राणियों के अंदर और बाहर हैं। वे चर (गतिशील) और अचर (स्थिर) दोनों हैं। उनकी सूक्ष्मता के कारण उन्हें सामान्य आँखों से देखा नहीं जा सकता।
👉 परमात्मा सर्वत्र हैं, लेकिन उन्हें केवल भक्ति और ध्यान से अनुभव किया जा सकता है।
🔹 5️⃣ प्रकृति और पुरुष का रहस्य
📌 6. प्रकृति और पुरुष क्या हैं? (Verses 20-26)
- प्रकृति (Prakriti) – यह सृष्टि की भौतिक शक्ति है, जो शरीर, मन, बुद्धि और सभी वस्तुओं को उत्पन्न करती है।
- पुरुष (Purusha) – आत्मा या चेतना, जो शरीर से अलग और अविनाशी है।
- आत्मा न शरीर को जन्म देती है, न नष्ट होती है, बल्कि केवल शरीर बदलती है।
📖 श्लोक (13.23):
"उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः॥"
📖 अर्थ: यह पुरुष (परमात्मा) साक्षी, नियंत्रक, पालक, भोक्ता, और परमेश्वर है।
👉 प्रकृति केवल शरीर को संचालित करती है, लेकिन आत्मा (पुरुष) ही इसका साक्षी है।
🔹 6️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ
📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:
✅ 1. शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर और अविनाशी है।
✅ 2. परमात्मा सभी शरीरों में स्थित साक्षी हैं।
✅ 3. सच्चा ज्ञान केवल बौद्धिक नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और भक्ति से प्राप्त होता है।
✅ 4. प्रकृति शरीर को चलाती है, लेकिन आत्मा ही इसका वास्तविक स्वामी है।
✅ 5. भक्ति, सेवा, और आध्यात्मिक ज्ञान से परमात्मा को जाना जा सकता है।
🔹 निष्कर्ष
1️⃣ यह अध्याय क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) का रहस्य स्पष्ट करता है।
2️⃣ सच्चे ज्ञान का अर्थ केवल पढ़ाई नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और भक्ति भी है।
3️⃣ परमात्मा हर आत्मा में स्थित हैं और सृष्टि को नियंत्रित करते हैं।
4️⃣ प्रकृति शरीर को संचालित करती है, लेकिन आत्मा सदा अजर-अमर रहती है।
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