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शनिवार, 7 मार्च 2020

श्री हनुमान चालीसा

 Shree Hanuman Chalisa

(श्री हनुमान चालीसा)


श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥

श्री गुरु के चरण-कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं पवित्र रामजी के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों फलों को देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥

अपने को बुद्धिहीन और निर्बल मानते हुए मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे हनुमानजी! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए तथा मेरे दुखों और दोषों का नाश कर दीजिए।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

हनुमानजी की जय हो, जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं। तीनों लोकों में जिनकी महिमा प्रसिद्ध है।

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

आप भगवान राम के दूत हैं और असीम बल के धाम हैं। आप अंजना के पुत्र और पवन देव के पुत्र कहलाते हैं।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

आप महावीर और अत्यंत पराक्रमी हैं। आप बुरी बुद्धि को दूर करने वाले और शुभ विचारों के साथी हैं।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

आपका स्वरूप सोने के समान चमकता हुआ है। आप सुंदर वस्त्र धारण किए हुए हैं, कानों में कुंडल और घुंघराले बाल हैं।

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजै॥

आपके हाथ में वज्र और ध्वजा शोभायमान हैं। आपके कंधे पर पवित्र जनेऊ (यज्ञोपवीत) सुशोभित है।

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥

आप भगवान शंकर के अवतार और केसरी के पुत्र हैं। आपकी महिमा और पराक्रम का संसार भर में वंदन होता है।

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

आप ज्ञानवान, गुणवान और अत्यंत कुशल हैं। आप भगवान राम के कार्य करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

आप भगवान राम के चरित्र सुनने में आनंद लेने वाले हैं। आपके हृदय में श्री राम, लक्ष्मण और सीता निवास करते हैं।

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

आपने छोटा रूप धारण करके माता सीता को दर्शन कराया और भयानक रूप धारण करके लंका को जला दिया।

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥

आपने विशालकाय रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामचंद्रजी के कार्य को सफल बनाया।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥

आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी का जीवन बचाया। इस पर श्री रघुवीर (राम) ने आपको हर्षित होकर अपने हृदय से लगा लिया।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

श्रीरामचंद्रजी ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप मेरे लिए भरत के समान प्रिय भाई हैं।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

श्रीरामचंद्रजी ने कहा कि हजारों मुख वाले शेषनाग भी तुम्हारी महिमा गाते हैं। ऐसा कहकर भगवान ने आपको गले से लगा लिया।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार जैसे ऋषि, ब्रह्माजी, महर्षि नारद, देवी सरस्वती और शेषनाग सभी आपकी महिमा का गान करते हैं।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

यमराज, कुबेर, दिक्पाल (दिशाओं के रक्षक देवता) आदि आपकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हैं। कवि और विद्वान भी इसका पूरा वर्णन नहीं कर सकते।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

आपने सुग्रीवजी पर उपकार किया। उन्हें भगवान राम से मिलवाया और उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया।

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

आपके परामर्श को विभीषण ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने। यह सारी दुनिया जानती है।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

सूर्य जो हजारों योजन की दूरी पर है, उसे आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥

आपने भगवान श्रीराम की अंगूठी को अपने मुख में रख लिया और समुद्र को पार कर गए। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि आप महान पराक्रमी हैं।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

संसार के सभी कठिन कार्य आपके आशीर्वाद से सरल हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भी भीतर प्रवेश नहीं कर सकता।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

जो कोई भी आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख प्राप्त करता है। जब आप रक्षक हों, तो उसे किसी का भय नहीं रहता।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥

आप अपने बल को स्वयं नियंत्रित रखते हैं। आपकी गर्जना से तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) कांप उठते हैं।

भूत पिसाच निकट नहीं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

भूत-पिशाच आपके नाम का स्मरण करने मात्र से पास नहीं आते। आपका नाम लेने से भय दूर हो जाता है।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

जो कोई निरंतर वीर हनुमान का जप करता है, उसके सभी रोग और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसके सभी संकट हनुमानजी दूर कर देते हैं।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

भगवान राम, जो महान तपस्वी और राजा हैं, उनके सभी कार्यों को आप सफल बनाते हैं।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥

जो कोई भी अपनी मनोकामना लेकर आपके पास आता है, वह उसे असीम जीवन के फल के रूप में प्राप्त करता है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

आपकी महिमा चारों युगों (सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में फैली हुई है। आपकी प्रसिद्धि से समस्त संसार प्रकाशमान है।

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

आप साधु-संतों के रक्षक हैं और राक्षसों का नाश करने वाले हैं। आप श्रीराम के प्रिय हैं।

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

आपको माता सीता ने आशीर्वाद दिया है कि आप अष्ट सिद्धियों (आठ प्रकार की शक्तियाँ) और नौ निधियों (धन और संपत्ति) के दाता हैं।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

आपके पास श्रीराम का नाम रूपी अमृत है। आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहते हैं।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

आपके भजन से भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है। यह जन्म-जन्मांतर के सभी दुखों को समाप्त कर देता है।

अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

अपने जीवन के अंत में भक्त भगवान राम के परम धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में भी हरि भक्त के रूप में जन्म लेता है।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

किसी अन्य देवता के प्रति मन केंद्रित करने की आवश्यकता नहीं है। केवल हनुमानजी की सेवा करने से सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

हनुमानजी का स्मरण करने से सभी संकट कट जाते हैं और सभी प्रकार के दुख समाप्त हो जाते हैं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥

हे हनुमानजी, आपकी जय हो। कृपया मेरी गुरु के समान सहायता करें।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो व्यक्ति इस सुंदरकांड का सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और महान सुख प्राप्त करता है।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है। इसके साक्षी स्वयं शिवजी हैं।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

तुलसीदास कहते हैं कि मैं सदा भगवान राम का सेवक हूँ। हे हनुमानजी, कृपया मेरे हृदय में निवास करें।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप॥

हे पवनपुत्र हनुमानजी, आप संकटों को हरने वाले और मंगल स्वरूप हैं। कृपया राम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास करें।

सुन्दर काण्ड हनुमान विराचा।
पढ़त सुनत तुलसी सुख साचा॥

सुंदरकांड हनुमानजी की अद्भुत गाथा है। इसका पाठ और श्रवण करने से तुलसीदास को सच्चा सुख मिला है।

राम कृपा जेहि संतन उपजाई।
सकल काज सुफल कर आई॥

भगवान राम की कृपा से उत्पन्न हुई यह गाथा हर कार्य को सफल बनाती है।


भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...