शनिवार, 30 मई 2020

10. राजकुमारी का वर चयन

 

राजकुमारी का वर चयन

प्राचीन काल में एक विशाल और समृद्ध राज्य की राजकुमारी थी, जो अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता, और गुणों के लिए प्रसिद्ध थी। जब वह विवाह योग्य हुई, तो राजा ने निर्णय किया कि उसका विवाह किसी योग्य राजकुमार से ही होगा। इसके लिए राज्य में एक विशेष सभा का आयोजन किया गया, जिसमें दूर-दूर से राजकुमारों को आमंत्रित किया गया।


राजकुमारी की शर्त

सभा के दिन राजकुमारी ने घोषणा की:
"मैं किसी भी राजकुमार से विवाह तभी करूंगी, जब वह अपनी बुद्धि, साहस और निःस्वार्थता से मेरी शर्त पूरी करेगा।"

राजा ने राजकुमारी से शर्त बताने को कहा। राजकुमारी ने तीन चुनौतियां सामने रखीं:

  1. साहस की परीक्षा: प्रत्येक राजकुमार को एक खतरनाक जंगल में जाना होगा और वहां से दुर्लभ हीरा लाकर देना होगा।
  2. बुद्धि की परीक्षा: एक पहेली का उत्तर देना होगा।
  3. निःस्वार्थता की परीक्षा: यह साबित करना होगा कि वे राजकुमारी के प्रति निःस्वार्थ हैं।

चुनौतियों की शुरुआत

सभा में कई राजकुमार आए और चुनौतियां स्वीकार कीं।

  1. साहस की परीक्षा:
    जंगल में जाने के बाद कई राजकुमार हीरा लाने में असफल रहे, क्योंकि वहां खतरनाक जानवर थे। कुछ ने भय के कारण जंगल में प्रवेश ही नहीं किया। लेकिन एक राजकुमार निडर होकर जंगल में गया, जानवरों से लड़ा, और दुर्लभ हीरा लेकर लौट आया।

  2. बुद्धि की परीक्षा:
    राजकुमारी ने पहेली दी:
    "ऐसी कौन सी चीज है, जो जितनी बांटोगे, उतनी बढ़ती जाएगी?"
    कई राजकुमार उत्तर नहीं दे सके। लेकिन वही निडर राजकुमार बोला:
    "यह प्रेम और ज्ञान है। इन्हें जितना बांटोगे, उतना ही बढ़ेगा।"
    राजकुमारी ने उत्तर सही बताया।

  3. निःस्वार्थता की परीक्षा:
    राजकुमारी ने राजकुमार से कहा:
    "क्या तुम मुझे सच्चा प्रेम करते हो?"
    राजकुमार ने उत्तर दिया:
    "हां, लेकिन यदि तुम्हें किसी और के साथ अधिक सुखी जीवन मिलेगा, तो मैं तुम्हारा विवाह वहां होते देखना चाहूंगा।"


राजकुमारी का निर्णय

राजकुमारी ने सबके सामने घोषणा की:
"यह राजकुमार तीनों चुनौतियों में सफल हुआ है। उसने न केवल अपना साहस और बुद्धि साबित की, बल्कि यह भी दिखाया कि उसका प्रेम निःस्वार्थ है। यही मेरे लिए सच्चा वर है।"

राजा ने राजकुमार और राजकुमारी का विवाह धूमधाम से कर दिया।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"राजकुमारी ने सही वर चुना या नहीं? यदि हां, तो क्यों?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"राजकुमारी ने सही वर चुना, क्योंकि राजकुमार ने केवल राजकुमारी के प्रति प्रेम का दावा नहीं किया, बल्कि अपने कर्मों से अपनी योग्यताओं को सिद्ध किया। उसकी निःस्वार्थता और बुद्धिमत्ता यह दर्शाती है कि वह सच्चे प्रेम और नेतृत्व के गुणों से परिपूर्ण है।"


कहानी की शिक्षा

  1. सच्चा प्रेम निःस्वार्थ होता है।
  2. साहस, बुद्धि और निष्ठा किसी भी व्यक्ति को योग्य बनाते हैं।
  3. निर्णय लेने में गुण और कर्म का ध्यान रखना चाहिए, न कि केवल बाहरी दिखावे का।

शनिवार, 23 मई 2020

9. प्रेम का मूल्य

 

प्रेम का मूल्य

किसी समय, एक राजा अपनी प्रजा और राज्य के लिए बहुत कुछ करता था, लेकिन उसे हमेशा यह महसूस होता था कि लोग उसे केवल उसकी शक्ति और धन के कारण सम्मान देते हैं। वह यह जानना चाहता था कि सच्चा प्रेम और निःस्वार्थ समर्पण क्या होता है।


राजा की परीक्षा

एक दिन, राजा ने अपने दरबार में घोषणा की:
"मैं यह जानना चाहता हूं कि सच्चा प्रेम क्या है और इसका मूल्य कितना है। जो मुझे इसका उत्तर देगा, उसे मैं पुरस्कृत करूंगा।"

राजा की यह घोषणा सुनकर कई लोग अपनी-अपनी परिभाषा लेकर आए। किसी ने कहा प्रेम धन और भौतिक सुख है, तो किसी ने इसे प्रसिद्धि और सम्मान से जोड़ा। लेकिन राजा किसी उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ।


गरीब किसान और उसकी पत्नी

कुछ दिन बाद, एक गरीब किसान और उसकी पत्नी राजा के दरबार में आए। किसान ने कहा,
"महाराज, सच्चा प्रेम समर्पण और निःस्वार्थता है। इसका मूल्य शब्दों में नहीं बताया जा सकता।"

राजा ने पूछा,
"क्या तुम यह साबित कर सकते हो?"

किसान ने उत्तर दिया,
"जी महाराज। मेरे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन मेरी पत्नी ने हमेशा कठिन समय में मेरा साथ दिया है। वह मेरे लिए अपना सर्वस्व त्याग सकती है।"


राजा की परीक्षा का आदेश

राजा ने किसान की पत्नी को बुलाया और कहा,
"यदि तुम सचमुच अपने पति से प्रेम करती हो, तो क्या तुम उसे अपने जीवन से अधिक महत्व देती हो?"

पत्नी ने कहा,
"महाराज, मेरे लिए मेरा पति ही सब कुछ है। मैं अपना जीवन भी उसके लिए त्याग सकती हूं।"

राजा ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने सैनिकों को आदेश दिया कि किसान को एक खतरनाक वन में छोड़ दिया जाए, जहां जंगली जानवर रहते थे। राजा ने कहा,
"यदि तुम्हारा प्रेम सच्चा है, तो तुम अपने पति को बचाने के लिए वहां जाओगी।"


पत्नी का साहस

पत्नी बिना डरे वन में चली गई। उसने हर खतरे का सामना किया और अपने पति को ढूंढा। जब उसने अपने पति को जंगली जानवरों से घिरा हुआ पाया, तो उसने अपनी जान की परवाह किए बिना जानवरों से संघर्ष किया और अपने पति को बचा लिया।


राजा का बोध

यह सब देखकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा,
"तुम्हारे प्रेम ने मुझे सिखाया कि सच्चा प्रेम निःस्वार्थ होता है। इसका मूल्य कोई नहीं लगा सकता। यह वह ताकत है, जो किसी भी बाधा को पार कर सकती है।"

राजा ने किसान और उसकी पत्नी को सम्मानित किया और उनके जीवन को सुखद बनाने के लिए उन्हें पर्याप्त धन और संसाधन प्रदान किए।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या राजा ने प्रेम का मूल्य समझा? और किसान की पत्नी के कार्य को आप किस प्रकार देखते हैं?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"राजा ने प्रेम का मूल्य समझ लिया, क्योंकि उसने देखा कि निःस्वार्थ समर्पण और साहस ही सच्चे प्रेम की पहचान है। किसान की पत्नी ने अपने कार्य से यह सिद्ध किया कि प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म में होता है।"


कहानी की शिक्षा

  1. सच्चा प्रेम निःस्वार्थ और समर्पित होता है।
  2. प्रेम का मूल्य धन या शक्ति से नहीं लगाया जा सकता।
  3. सच्चे प्रेम में साहस और त्याग की भावना होती है।

शनिवार, 16 मई 2020

8. मृत पुत्र और तपस्वी माता की कहानी

 

मृत पुत्र और तपस्वी माता की कहानी

प्राचीन समय में, एक तपस्वी महिला थी जो अपनी कठोर साधना और धर्म के पालन के लिए प्रसिद्ध थी। उसका एकमात्र पुत्र था, जो उसकी जिंदगी का केंद्र था। वह अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम करती थी और उसे धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की शिक्षा देती थी। लेकिन नियति ने उसके धैर्य और तप का कठोर परीक्षण लिया।


पुत्र की मृत्यु

एक दिन, अचानक पुत्र बीमार पड़ गया। महिला ने हर संभव उपाय किए, लेकिन वह अपने पुत्र को बचा नहीं पाई। उसका पुत्र अल्पायु में ही चल बसा। पुत्र की मृत्यु ने महिला को गहरे शोक में डाल दिया, लेकिन उसने अपने धैर्य और तप को बनाए रखा।


अनोखी प्रार्थना

महिला ने अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने की ठानी। वह पुत्र के शव को लेकर जंगल में गई और अपनी साधना प्रारंभ की। उसने देवी-देवताओं से प्रार्थना की कि वे उसके पुत्र को पुनर्जीवित करें।

कुछ समय बाद, एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ और उसमें से एक देवदूत ने कहा,
"हे माता, तुम्हारी तपस्या और भक्ति देखकर हम प्रसन्न हैं। तुम्हारा पुत्र पुनर्जीवित हो सकता है, लेकिन एक शर्त है।"


देवदूत की शर्त

देवदूत ने कहा,
"तुम्हें ऐसे घर से एक मुट्ठी चावल लाने होंगे, जहां किसी ने कभी मृत्यु का सामना न किया हो।"

महिला को यह शर्त सरल लगी। वह तुरंत अपने पुत्र को वहीं छोड़कर गांव-गांव में चावल मांगने निकल पड़ी।


मृत्यु का सार्वभौमिक सत्य

महिला ने हर घर में जाकर पूछा,
"क्या आपके घर में कभी किसी की मृत्यु नहीं हुई है? अगर नहीं, तो मुझे एक मुट्ठी चावल दें।"

लेकिन हर घर से उसे यही उत्तर मिला:
"हमने अपने माता-पिता, बच्चों, या रिश्तेदारों को खोया है। मृत्यु से कोई बच नहीं सकता।"

धीरे-धीरे महिला को यह समझ आने लगा कि मृत्यु जीवन का अटूट सत्य है।


महिला का आत्मबोध

अंत में, महिला वापस जंगल में लौटी और अपने पुत्र के शव को देखा। उसने देवदूत से कहा,
"मैंने समझ लिया है कि मृत्यु एक अटल सत्य है। इसे कोई टाल नहीं सकता। अब मैं अपने पुत्र के पुनर्जीवन की इच्छा छोड़ती हूं और इसे ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करती हूं।"

देवदूत ने महिला को आशीर्वाद दिया और कहा,
"तुमने सत्य को समझ लिया है। अब तुम्हारा जीवन और अधिक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक होगा।"


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"महिला ने अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने का प्रयास क्यों छोड़ा? क्या यह उसका सही निर्णय था?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"महिला ने अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने का प्रयास इसलिए छोड़ा क्योंकि उसने मृत्यु के सार्वभौमिक सत्य को समझ लिया। उसने यह स्वीकार किया कि मृत्यु अटल है और इसे स्वीकार करना ही सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता है। यह उसका सही निर्णय था, क्योंकि सत्य को स्वीकार करके उसने अपने शोक को त्याग दिया और शांति प्राप्त की।"


कहानी की शिक्षा

  1. मृत्यु जीवन का अटल सत्य है। इसे कोई टाल नहीं सकता।
  2. सच्चा ज्ञान सत्य को स्वीकार करने में है।
  3. धैर्य और आत्मबोध से सबसे कठिन परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है।

शनिवार, 9 मई 2020

7. व्यापारी और उसकी तीन पत्नियों की कहानी

 

व्यापारी और उसकी तीन पत्नियों की कहानी

एक समय की बात है, एक धनी व्यापारी था जिसकी तीन पत्नियां थीं। वह अपनी तीनों पत्नियों से अलग-अलग कारणों से प्रेम करता था, लेकिन उनके प्रति उसका व्यवहार भिन्न था। एक दिन व्यापारी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया और उसे लगा कि अब उसका अंत निकट है। उसने सोचा कि उसके मरने के बाद उसकी पत्नियों में से कौन उसके साथ जाएगी।


व्यापारी की तीन पत्नियां और उनका स्वभाव

  1. पहली पत्नी:
    व्यापारी की पहली पत्नी उसकी सबसे प्रिय थी। वह बहुत सुंदर और आकर्षक थी, और व्यापारी ने हमेशा उसके लिए महंगे आभूषण और वस्त्र खरीदे। लेकिन उसने व्यापारी के प्रति कभी विशेष लगाव नहीं दिखाया।

  2. दूसरी पत्नी:
    व्यापारी की दूसरी पत्नी बहुत बुद्धिमान और समझदार थी। व्यापारी हमेशा अपनी समस्याओं पर उससे चर्चा करता था, और उसने हर मुश्किल समय में उसका साथ दिया।

  3. तीसरी पत्नी:
    व्यापारी की तीसरी पत्नी साधारण और विनम्र थी। वह न तो बहुत सुंदर थी, न ही व्यापारी ने उसे कभी खास महत्व दिया। लेकिन वह हमेशा व्यापारी की सेवा में लगी रहती और उसकी हर जरूरत का ध्यान रखती।


व्यापारी की मृत्यु की तैयारी

जब व्यापारी ने महसूस किया कि वह अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा, तो उसने अपनी पत्नियों से एक-एक करके पूछा,
"क्या तुम मेरी मृत्यु के बाद मेरे साथ चलोगी?"

  • पहली पत्नी ने कहा:
    "नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी। तुम्हारी मृत्यु के बाद मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करूंगी।"
    व्यापारी को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ।

  • दूसरी पत्नी ने कहा:
    "मैं तुम्हारे अंतिम संस्कार तक तुम्हारे साथ रहूंगी, लेकिन उसके बाद मैं अपने जीवन में आगे बढ़ जाऊंगी।"
    व्यापारी यह सुनकर निराश हो गया।

  • तीसरी पत्नी ने कहा:
    "मैं तुम्हारे साथ जाऊंगी, चाहे जो भी हो।"
    व्यापारी को यह सुनकर राहत मिली, लेकिन उसने महसूस किया कि उसने तीसरी पत्नी को कभी भी उचित महत्व नहीं दिया था।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"इन तीन पत्नियों में से सबसे सच्ची पत्नी कौन थी? और व्यापारी को किससे सबसे ज्यादा सीख लेनी चाहिए थी?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"तीसरी पत्नी सबसे सच्ची थी, क्योंकि वह व्यापारी के साथ अंत तक रहने को तैयार थी। व्यापारी को यह समझना चाहिए था कि जिसने उसके प्रति निस्वार्थ सेवा और समर्पण दिखाया, उसी का सम्मान और देखभाल सबसे अधिक करनी चाहिए थी। पहली और दूसरी पत्नियों ने केवल अपने स्वार्थ को महत्व दिया।"


कहानी की शिक्षा

  1. सच्चा संबंध सेवा और निष्ठा पर आधारित होता है।
  2. हम अक्सर उन लोगों को नजरअंदाज करते हैं जो हमारे प्रति सबसे अधिक निस्वार्थ होते हैं।
  3. संपत्ति और सुख केवल जीवन तक साथ रहते हैं, लेकिन निष्ठा और सेवा सच्चे साथी होते हैं।

शनिवार, 2 मई 2020

6. तीन मूर्खों की कहानी

 

तीन मूर्खों की कहानी

एक समय की बात है, एक नगर में तीन मित्र रहते थे। वे तीनों अत्यंत आलसी और मूर्ख थे, लेकिन हमेशा अपनी बुद्धिमानी का बखान किया करते थे। एक दिन उन्होंने तय किया कि वे अपनी मूर्खता को छिपाने के लिए किसी दूर राज्य में जाकर अपनी किस्मत आजमाएंगे।


प्रथम मूर्ख और उसकी मूर्खता

तीनों मित्र यात्रा पर निकले। रास्ते में उन्होंने एक नदी देखी। पहला मित्र बोला,
"नदी पार करने के लिए पुल की जरूरत है। मैं पानी में जाकर देखता हूं कि पानी ठंडा है या गर्म।"
उसने अपना हाथ नदी में डाला और चिल्लाया,
"अरे, नदी का पानी तो बह रहा है! हमें इसे रोकना होगा, नहीं तो हम पार नहीं कर पाएंगे।"

दूसरे और तीसरे मित्र ने उसकी बात मान ली और तीनों पानी रोकने की कोशिश करने लगे। लेकिन वे असफल रहे और आगे बढ़ गए।


दूसरा मूर्ख और उसकी मूर्खता

आगे चलकर उन्हें एक खेत में कुछ घास दिखी। दूसरा मित्र बोला,
"हमें इस घास को काटकर अपने साथ ले जाना चाहिए। अगर हमारी परछाई इस पर पड़ी, तो यह बर्बाद हो जाएगी।"
पहला और तीसरा मित्र उसकी बात मान गए और घास काटने में लग गए। जब किसान ने यह देखा, तो उसने तीनों को डांटा और वहां से भगा दिया।


तीसरा मूर्ख और उसकी मूर्खता

आगे बढ़ते हुए वे एक गांव पहुंचे। वहां तीसरा मित्र बोला,
"देखो, यह गांव तो बहुत बड़ा है। हमें अपने नाम की घोषणा करनी चाहिए, ताकि सभी लोग हमें पहचान सकें।"
तीनों मित्र गांव के बीचोंबीच खड़े होकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे,
"हम तीन महान व्यक्ति हैं! हमारी मदद करो!"

गांववालों ने सोचा कि वे पागल हैं और उन्हें वहां से भगा दिया।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"इन तीनों मूर्खों में सबसे बड़ा मूर्ख कौन था? और क्यों?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"तीनों ही मूर्ख थे, लेकिन सबसे बड़ा मूर्ख पहला मित्र था। क्योंकि नदी का पानी रोकने की कोशिश करना न केवल असंभव है, बल्कि सबसे हास्यास्पद भी है। दूसरे और तीसरे मित्र की मूर्खता भी बड़ी थी, लेकिन पहले मित्र की मूर्खता सबसे अधिक थी।"


कहानी की शिक्षा

  1. बुद्धिमत्ता और मूर्खता का अंतर समझें।
  2. संकट का सामना करने से पहले सोच-समझकर कार्य करें।
  3. बिना सोचे-समझे किए गए कार्य केवल अपमान और हानि का कारण बनते हैं।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...