शनिवार, 26 अप्रैल 2025

भागवत गीता: अध्याय 14 (गुणत्रय विभाग योग) गुणों के प्रभाव और उनका फल (श्लोक 14-22)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 14 (गुणत्रय विभाग योग) के श्लोक 14 से श्लोक 22 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने तीनों गुणों (सत्त्व, रजस, तमस) के प्रभाव और उनसे ऊपर उठने के मार्ग का वर्णन किया है।


श्लोक 14

यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते॥

अर्थ:
"जब सत्त्व गुण बढ़ा हुआ होता है और देहधारी मृत्यु को प्राप्त करता है, तो वह श्रेष्ठ लोकों में जाता है, जो पवित्र और ज्ञानियों के लोक हैं।"

व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि सत्त्व गुण में मृत्यु होने पर व्यक्ति उच्चतर लोकों में जाता है, जहाँ शुद्धता, ज्ञान और शांति का वास होता है। यह शुभ कर्मों और आत्मज्ञान का परिणाम है।


श्लोक 15

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते॥

अर्थ:
"रजस गुण में मृत्यु होने पर, व्यक्ति कर्म के प्रति आसक्त प्राणियों के बीच जन्म लेता है। तमस गुण में मृत्यु होने पर, वह अज्ञानमय योनियों में जन्म लेता है।"

व्याख्या:

  • रजस गुण में मृत्यु होने पर व्यक्ति भौतिक कर्मों और इच्छाओं में लिप्त योनियों में जन्म लेता है।
  • तमस गुण में मृत्यु होने पर व्यक्ति अज्ञानपूर्ण और अधम योनियों (पशु आदि) में जन्म लेता है।

श्लोक 16

कर्मणः सुकृतस्याहु: सात्त्विकं निर्मलं फलम्।
रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्॥

अर्थ:
"सात्त्विक कर्म का फल शुद्ध (निर्मल) और सुखद होता है, रजस का फल दुःख होता है, और तमस का फल अज्ञान होता है।"

व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि हर गुण का फल अलग होता है:

  • सत्त्व गुण शांति और शुद्धता लाता है।
  • रजस गुण तनाव और अशांति देता है।
  • तमस गुण अज्ञान और आलस्य को बढ़ावा देता है।

श्लोक 17

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च॥

अर्थ:
"सत्त्व से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजस से लोभ, और तमस से प्रमाद (लापरवाही), मोह और अज्ञान उत्पन्न होते हैं।"

व्याख्या:
यह श्लोक गुणों के प्रभाव को स्पष्ट करता है:

  • सत्त्व ज्ञान और विवेक को बढ़ाता है।
  • रजस भौतिक इच्छाओं और लोभ को उत्पन्न करता है।
  • तमस व्यक्ति को अज्ञान और भ्रम में डाल देता है।

श्लोक 18

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्थाः मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः॥

अर्थ:
"जो सत्त्व में स्थित हैं, वे ऊपर (उच्च लोकों) को जाते हैं। जो रजस में स्थित हैं, वे मध्य में रहते हैं। और जो तमस में स्थित हैं, वे निम्न लोकों (अधोगति) को जाते हैं।"

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि व्यक्ति के गुण उसकी गति (जीवन के बाद की अवस्था) को निर्धारित करते हैं:

  • सत्त्व गुण आत्मा को ऊर्ध्व (मोक्ष या उच्च लोकों) की ओर ले जाता है।
  • रजस गुण व्यक्ति को सांसारिक बंधनों में फँसाए रखता है।
  • तमस गुण अधोगति (निचली योनियाँ) को उत्पन्न करता है।

श्लोक 19

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति॥

अर्थ:
"जब व्यक्ति देखता है कि गुणों के सिवा अन्य कोई कर्ता नहीं है, और वह गुणों से परे मेरे स्वरूप को जानता है, तो वह मेरी स्थिति (मोक्ष) को प्राप्त करता है।"

व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि गुण ही सभी कर्मों के मूल कारण हैं। जब व्यक्ति इसे समझता है और भगवान के शुद्ध स्वरूप को जानता है, तो वह गुणों से परे जाकर मोक्ष को प्राप्त करता है।


श्लोक 20

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते॥

अर्थ:
"जो आत्मा इन तीन गुणों (सत्त्व, रजस और तमस) को पार कर लेता है, वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और दुःख से मुक्त होकर अमृत (मोक्ष) को प्राप्त करता है।"

व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को त्रिगुणों से ऊपर उठना होगा। इन गुणों से मुक्त होने पर आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलकर शाश्वत आनंद (मोक्ष) प्राप्त करती है।


श्लोक 21

अर्जुन उवाच
कैर्लिङ्गैस्त्रींगुणानेतानतीतो भवति प्रभो।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रींगुणानतिवर्तते॥

अर्थ:
"अर्जुन ने पूछा: हे प्रभु, किन लक्षणों से यह जाना जा सकता है कि कोई त्रिगुणों को पार कर गया है? ऐसे व्यक्ति का आचरण कैसा होता है और वह इन गुणों को कैसे पार करता है?"

व्याख्या:
अर्जुन भगवान से पूछते हैं कि जो व्यक्ति त्रिगुणों को पार कर चुका है, उसे कैसे पहचाना जाए, उसका जीवन कैसा होता है, और वह इन गुणों से ऊपर कैसे उठता है। यह आत्मा की प्रगति का मार्ग जानने की जिज्ञासा है।


श्लोक 22

श्रीभगवानुवाच
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति॥

अर्थ:
"श्रीभगवान ने कहा: हे पाण्डव, जो व्यक्ति सत्त्व के प्रकाश, रजस की क्रियाशीलता और तमस के मोह को प्राप्त होने पर घृणा नहीं करता और उनके दूर होने पर उन्हें चाहता भी नहीं, वह त्रिगुणों से ऊपर होता है।"

व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि गुणों से परे होने का लक्षण यह है कि व्यक्ति इन गुणों से प्रभावित नहीं होता। वह गुणों की उपस्थिति या अनुपस्थिति में समान रहता है।


सारांश (श्लोक 14-22):

  1. गुणों की मृत्यु के समय की गति:
    • सत्त्व गुण मृत्यु के बाद उच्च लोकों की प्राप्ति कराता है।
    • रजस गुण व्यक्ति को कर्मों में फँसाए रखता है।
    • तमस गुण व्यक्ति को अधोगति की ओर ले जाता है।
  2. गुणों का प्रभाव:
    • सत्त्व सुख और ज्ञान लाता है।
    • रजस कर्मों में उलझाता है।
    • तमस अज्ञान और प्रमाद बढ़ाता है।
  3. त्रिगुणों से मुक्ति:
    • गुणों को पार करके जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुआ जा सकता है।
    • गुणों से ऊपर उठने वाला व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है।
  4. गुणातीत के लक्षण:
    • गुणों की उपस्थिति और अनुपस्थिति में समान भाव रखना।

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