शनिवार, 28 जून 2025

भगवद्गीता: अध्याय 17 - श्रद्धात्रयविभाग योग

भगवद गीता – सप्तदश अध्याय: श्रद्धात्रयविभाग योग

(Shraddhatraya Vibhaga Yoga – The Yoga of the Threefold Division of Faith)

📖 अध्याय 17 का परिचय

श्रद्धात्रयविभाग योग गीता का सत्रहवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि मनुष्यों की श्रद्धा (Faith) तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक। यह श्रद्धा उनके स्वभाव के अनुसार उनके आहार, यज्ञ, दान और तप को प्रभावित करती है।

👉 मुख्य भाव:

  • श्रद्धा तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
  • भोजन, यज्ञ, तप और दान भी तीन प्रकार के होते हैं।
  • "ॐ तत् सत्" का महत्व – जो शुद्ध कर्म का प्रतीक है।

📖 श्लोक (17.3):

"सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः॥"

📖 अर्थ: हे भारत! प्रत्येक मनुष्य की श्रद्धा उसके स्वभाव के अनुसार होती है। जिसकी जैसी श्रद्धा होती है, वह वैसा ही बन जाता है।

👉 इसका अर्थ है कि श्रद्धा हमारे व्यक्तित्व और कर्मों को प्रभावित करती है।


🔹 1️⃣ अर्जुन का प्रश्न – श्रद्धा का स्वरूप क्या है?

📌 1. अर्जुन का प्रश्न (Verse 1)

अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं:

  • जो लोग शास्त्रों के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा करते हैं, उनकी श्रद्धा कैसी होती है?
  • क्या यह श्रद्धा सात्त्विक (शुद्ध), राजसिक (आसक्त) या तामसिक (अज्ञानयुक्त) होती है?

📖 श्लोक (17.1):

"अर्जुन उवाच:
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥"

📖 अर्थ: अर्जुन बोले – हे कृष्ण! जो लोग शास्त्रों के नियमों को त्यागकर श्रद्धा से यज्ञ करते हैं, उनकी श्रद्धा कैसी होती है – सात्त्विक, राजसिक या तामसिक?

👉 इस प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण श्रद्धा के तीन प्रकार बताते हैं।


🔹 2️⃣ श्रद्धा के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक

📌 2. श्रद्धा कैसी होती है? (Verses 2-6)

📖 श्लोक (17.2):

"त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु॥"

📖 अर्थ: मनुष्यों की श्रद्धा उनके स्वभाव के अनुसार तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।

श्रद्धा का प्रकार कैसी होती है? उदाहरण
सात्त्विक श्रद्धा शुद्ध, निर्मल, ज्ञानयुक्त जो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति करता है और शुभ कर्म करता है।
राजसिक श्रद्धा इच्छाओं और भोग से प्रेरित जो व्यक्ति धन, प्रतिष्ठा या शक्ति प्राप्त करने के लिए पूजा करता है।
तामसिक श्रद्धा अज्ञान और हठ से प्रेरित जो व्यक्ति अंधविश्वास, काले जादू, या हानिकारक कार्यों में श्रद्धा रखता है।

📖 श्लोक (17.4):

"यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः॥"

📖 अर्थ: सात्त्विक लोग देवताओं की पूजा करते हैं, राजसिक लोग यक्ष और राक्षसों की, और तामसिक लोग भूत-प्रेतों की पूजा करते हैं।

👉 इसका अर्थ है कि हमारी श्रद्धा हमें उच्च या निम्न स्तर तक ले जा सकती है।


🔹 3️⃣ भोजन के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक

📌 3. भोजन भी तीन प्रकार का होता है (Verses 7-10)

📖 श्लोक (17.8-10):

"आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्याः आहाराः सात्त्विकप्रियाः॥"

📖 अर्थ: सात्त्विक भोजन स्वास्थ्य, शक्ति, सुख और आयु को बढ़ाने वाला होता है।

भोजन का प्रकार कैसा होता है? प्रभाव
सात्त्विक भोजन ताजा, शुद्ध, पौष्टिक, हल्का मन को शांत और शरीर को स्वस्थ करता है।
राजसिक भोजन मसालेदार, अधिक नमकीन या खट्टा उत्तेजना, कामना और असंतोष बढ़ाता है।
तामसिक भोजन बासी, सड़ा-गला, अशुद्ध आलस्य, अज्ञान और नकारात्मकता को जन्म देता है।

👉 हमें सात्त्विक भोजन को अपनाना चाहिए, क्योंकि यह मन और शरीर दोनों के लिए लाभदायक है।


🔹 4️⃣ यज्ञ (हवन) के तीन प्रकार

📌 4. यज्ञ के तीन भेद (Verses 11-13)

यज्ञ का प्रकार कैसा होता है? प्रभाव
सात्त्विक यज्ञ ईश्वर के प्रति प्रेम और बिना किसी स्वार्थ के किया जाता है। मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
राजसिक यज्ञ दिखावे और लाभ के लिए किया जाता है। अहंकार और इच्छाओं को बढ़ाता है।
तामसिक यज्ञ बिना नियमों के, अनुचित वस्तुओं से किया जाता है। पतन की ओर ले जाता है।

📖 श्लोक (17.11):

"अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः॥"

📖 अर्थ: जो यज्ञ शास्त्रों के अनुसार निष्काम भाव से किया जाता है, वह सात्त्विक होता है।


🔹 5️⃣ दान के तीन प्रकार

📌 5. दान भी तीन प्रकार का होता है (Verses 20-22)

📖 श्लोक (17.20):

"दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्॥"

📖 अर्थ: जो दान कर्तव्य मानकर योग्य व्यक्ति को सही समय और स्थान पर दिया जाता है, वह सात्त्विक दान कहलाता है।

दान का प्रकार कैसा होता है? प्रभाव
सात्त्विक दान निष्काम और सही पात्र को दिया जाता है। पुण्य और आत्मशुद्धि को बढ़ाता है।
राजसिक दान स्वार्थ, प्रतिष्ठा और दिखावे के लिए दिया जाता है। अहंकार और इच्छाओं को बढ़ाता है।
तामसिक दान अनुचित व्यक्ति या समय पर, अपमान के साथ दिया जाता है। बुरा प्रभाव डालता है।

👉 हमें बिना किसी स्वार्थ के, सही पात्र को दान देना चाहिए।


🔹 निष्कर्ष

📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. श्रद्धा तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक (शुद्ध), राजसिक (आसक्त), और तामसिक (अज्ञानपूर्ण)।
2. भोजन, यज्ञ, तप और दान भी इन तीन गुणों के अनुसार प्रभावित होते हैं।
3. सात्त्विक गुणों को अपनाने से व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ता है।
4. जो व्यक्ति "ॐ तत् सत्" का ध्यान रखकर कर्म करता है, वह शुद्ध होता है।

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