भगवद गीता – सप्तदश अध्याय: श्रद्धात्रयविभाग योग
(Shraddhatraya Vibhaga Yoga – The Yoga of the Threefold Division of Faith)
📖 अध्याय 17 का परिचय
श्रद्धात्रयविभाग योग गीता का सत्रहवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि मनुष्यों की श्रद्धा (Faith) तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक। यह श्रद्धा उनके स्वभाव के अनुसार उनके आहार, यज्ञ, दान और तप को प्रभावित करती है।
👉 मुख्य भाव:
- श्रद्धा तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
- भोजन, यज्ञ, तप और दान भी तीन प्रकार के होते हैं।
- "ॐ तत् सत्" का महत्व – जो शुद्ध कर्म का प्रतीक है।
📖 श्लोक (17.3):
"सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः॥"
📖 अर्थ: हे भारत! प्रत्येक मनुष्य की श्रद्धा उसके स्वभाव के अनुसार होती है। जिसकी जैसी श्रद्धा होती है, वह वैसा ही बन जाता है।
👉 इसका अर्थ है कि श्रद्धा हमारे व्यक्तित्व और कर्मों को प्रभावित करती है।
🔹 1️⃣ अर्जुन का प्रश्न – श्रद्धा का स्वरूप क्या है?
📌 1. अर्जुन का प्रश्न (Verse 1)
अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं:
- जो लोग शास्त्रों के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा करते हैं, उनकी श्रद्धा कैसी होती है?
- क्या यह श्रद्धा सात्त्विक (शुद्ध), राजसिक (आसक्त) या तामसिक (अज्ञानयुक्त) होती है?
📖 श्लोक (17.1):
"अर्जुन उवाच:
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥"
📖 अर्थ: अर्जुन बोले – हे कृष्ण! जो लोग शास्त्रों के नियमों को त्यागकर श्रद्धा से यज्ञ करते हैं, उनकी श्रद्धा कैसी होती है – सात्त्विक, राजसिक या तामसिक?
👉 इस प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण श्रद्धा के तीन प्रकार बताते हैं।
🔹 2️⃣ श्रद्धा के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक
📌 2. श्रद्धा कैसी होती है? (Verses 2-6)
📖 श्लोक (17.2):
"त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु॥"
📖 अर्थ: मनुष्यों की श्रद्धा उनके स्वभाव के अनुसार तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
श्रद्धा का प्रकार | कैसी होती है? | उदाहरण |
---|---|---|
सात्त्विक श्रद्धा | शुद्ध, निर्मल, ज्ञानयुक्त | जो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति करता है और शुभ कर्म करता है। |
राजसिक श्रद्धा | इच्छाओं और भोग से प्रेरित | जो व्यक्ति धन, प्रतिष्ठा या शक्ति प्राप्त करने के लिए पूजा करता है। |
तामसिक श्रद्धा | अज्ञान और हठ से प्रेरित | जो व्यक्ति अंधविश्वास, काले जादू, या हानिकारक कार्यों में श्रद्धा रखता है। |
📖 श्लोक (17.4):
"यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः॥"
📖 अर्थ: सात्त्विक लोग देवताओं की पूजा करते हैं, राजसिक लोग यक्ष और राक्षसों की, और तामसिक लोग भूत-प्रेतों की पूजा करते हैं।
👉 इसका अर्थ है कि हमारी श्रद्धा हमें उच्च या निम्न स्तर तक ले जा सकती है।
🔹 3️⃣ भोजन के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक
📌 3. भोजन भी तीन प्रकार का होता है (Verses 7-10)
📖 श्लोक (17.8-10):
"आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्याः आहाराः सात्त्विकप्रियाः॥"
📖 अर्थ: सात्त्विक भोजन स्वास्थ्य, शक्ति, सुख और आयु को बढ़ाने वाला होता है।
भोजन का प्रकार | कैसा होता है? | प्रभाव |
---|---|---|
सात्त्विक भोजन | ताजा, शुद्ध, पौष्टिक, हल्का | मन को शांत और शरीर को स्वस्थ करता है। |
राजसिक भोजन | मसालेदार, अधिक नमकीन या खट्टा | उत्तेजना, कामना और असंतोष बढ़ाता है। |
तामसिक भोजन | बासी, सड़ा-गला, अशुद्ध | आलस्य, अज्ञान और नकारात्मकता को जन्म देता है। |
👉 हमें सात्त्विक भोजन को अपनाना चाहिए, क्योंकि यह मन और शरीर दोनों के लिए लाभदायक है।
🔹 4️⃣ यज्ञ (हवन) के तीन प्रकार
📌 4. यज्ञ के तीन भेद (Verses 11-13)
यज्ञ का प्रकार | कैसा होता है? | प्रभाव |
---|---|---|
सात्त्विक यज्ञ | ईश्वर के प्रति प्रेम और बिना किसी स्वार्थ के किया जाता है। | मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। |
राजसिक यज्ञ | दिखावे और लाभ के लिए किया जाता है। | अहंकार और इच्छाओं को बढ़ाता है। |
तामसिक यज्ञ | बिना नियमों के, अनुचित वस्तुओं से किया जाता है। | पतन की ओर ले जाता है। |
📖 श्लोक (17.11):
"अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः॥"
📖 अर्थ: जो यज्ञ शास्त्रों के अनुसार निष्काम भाव से किया जाता है, वह सात्त्विक होता है।
🔹 5️⃣ दान के तीन प्रकार
📌 5. दान भी तीन प्रकार का होता है (Verses 20-22)
📖 श्लोक (17.20):
"दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्॥"
📖 अर्थ: जो दान कर्तव्य मानकर योग्य व्यक्ति को सही समय और स्थान पर दिया जाता है, वह सात्त्विक दान कहलाता है।
दान का प्रकार | कैसा होता है? | प्रभाव |
---|---|---|
सात्त्विक दान | निष्काम और सही पात्र को दिया जाता है। | पुण्य और आत्मशुद्धि को बढ़ाता है। |
राजसिक दान | स्वार्थ, प्रतिष्ठा और दिखावे के लिए दिया जाता है। | अहंकार और इच्छाओं को बढ़ाता है। |
तामसिक दान | अनुचित व्यक्ति या समय पर, अपमान के साथ दिया जाता है। | बुरा प्रभाव डालता है। |
👉 हमें बिना किसी स्वार्थ के, सही पात्र को दान देना चाहिए।
🔹 निष्कर्ष
📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:
✅ 1. श्रद्धा तीन प्रकार की होती है – सात्त्विक (शुद्ध), राजसिक (आसक्त), और तामसिक (अज्ञानपूर्ण)।
✅ 2. भोजन, यज्ञ, तप और दान भी इन तीन गुणों के अनुसार प्रभावित होते हैं।
✅ 3. सात्त्विक गुणों को अपनाने से व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ता है।
✅ 4. जो व्यक्ति "ॐ तत् सत्" का ध्यान रखकर कर्म करता है, वह शुद्ध होता है।
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