शनिवार, 21 जून 2025

भागवत गीता: अध्याय 16 (दैवासुर सम्पद् विभाग योग) दैवी और आसुरी गुणों से उत्पन्न होने वाले फल (श्लोक 21-24)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 16 (दैवासुर सम्पद् विभाग योग) के श्लोक 21 से श्लोक 24 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने अधोगति के तीन द्वार (त्रिविध नरक) और शास्त्रों के आधार पर धर्म का पालन करने की आवश्यकता को समझाया है।


श्लोक 21

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥

अर्थ:
"यह तीन प्रकार का नरक (आत्मा का नाश करने वाला) है – काम (अत्यधिक इच्छाएँ), क्रोध और लोभ। इसलिए, इन तीनों को त्याग देना चाहिए।"

व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि काम, क्रोध और लोभ आत्मा का विनाश करने वाले तीन प्रमुख दोष हैं। ये गुण व्यक्ति को पाप और अधर्म की ओर ले जाते हैं। इन्हें त्यागकर ही व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है।


श्लोक 22

एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्॥

अर्थ:
"हे कौन्तेय, जो व्यक्ति इन तीन अंधकारमय द्वारों (काम, क्रोध और लोभ) से मुक्त हो जाता है, वह आत्मा के कल्याण के लिए आचरण करता है और परम गति (मोक्ष) को प्राप्त करता है।"

व्याख्या:
जो व्यक्ति काम, क्रोध और लोभ से मुक्त हो जाता है, वह धर्ममय और शांतिपूर्ण जीवन जीता है। ऐसा व्यक्ति भगवान की भक्ति और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।


श्लोक 23

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्॥

अर्थ:
"जो व्यक्ति शास्त्रों की विधियों को त्यागकर अपनी इच्छाओं के अनुसार कार्य करता है, वह न तो सिद्धि (सफलता), न सुख, और न ही परम गति (मोक्ष) को प्राप्त करता है।"

व्याख्या:
भगवान यहाँ चेतावनी देते हैं कि जो लोग शास्त्रों के निर्देशों की अवहेलना करके अपनी मनमानी करते हैं, वे न तो भौतिक सुख प्राप्त कर पाते हैं और न ही आध्यात्मिक उन्नति। ऐसे लोगों का जीवन दिशाहीन हो जाता है।


श्लोक 24

तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि॥

अर्थ:
"इसलिए, कार्य और अकार्य (क्या करना चाहिए और क्या नहीं) को समझने के लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं। शास्त्रों के निर्देशों को समझकर तुम्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।"

व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि शास्त्र ही यह निर्धारित करते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। शास्त्रों का अध्ययन और पालन व्यक्ति को धर्म और मोक्ष के मार्ग पर चलने में सहायता करता है।


सारांश (श्लोक 21-24):

  1. त्रिविध नरक के द्वार:

    • काम: अत्यधिक इच्छाएँ व्यक्ति को पाप की ओर ले जाती हैं।
    • क्रोध: यह विवेक को नष्ट करता है और हिंसा को बढ़ावा देता है।
    • लोभ: यह व्यक्ति को स्वार्थी और अनैतिक बनाता है।
    • इन तीनों को त्यागकर व्यक्ति आत्मा का कल्याण कर सकता है।
  2. मोक्ष का मार्ग:

    • काम, क्रोध और लोभ से मुक्त होकर धर्म और आत्मज्ञान का पालन करने वाला व्यक्ति परम गति को प्राप्त करता है।
  3. शास्त्रों का महत्व:

    • शास्त्र व्यक्ति को सही और गलत का ज्ञान कराते हैं।
    • शास्त्रों के निर्देशों का पालन करने से व्यक्ति जीवन में सुख, शांति और मोक्ष प्राप्त करता है।
    • शास्त्रों के बिना व्यक्ति का जीवन दिशाहीन और विनाशकारी हो सकता है।

मुख्य संदेश:

भगवान श्रीकृष्ण यहाँ यह सिखाते हैं कि त्रिविध नरक (काम, क्रोध और लोभ) से बचकर और शास्त्रों के निर्देशों का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन को धर्ममय बना सकता है और परमात्मा की प्राप्ति कर सकता है।

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