शनिवार, 9 मार्च 2024

भगवद्गीता: अध्याय 3 - कर्मयोग

भगवद गीता – तृतीय अध्याय: कर्मयोग

(Karma Yoga – The Yoga of Selfless Action)

📖 अध्याय 3 का परिचय

कर्मयोग गीता का तीसरा अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण निष्काम कर्म (स्वार्थरहित कर्म) का महत्व समझाते हैं। वे अर्जुन को बताते हैं कि ज्ञान और ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मयोग (निष्काम कर्म) है

👉 मुख्य भाव:

  • निष्काम भाव से कर्म करना, बिना फल की इच्छा किए।
  • कर्म से भागना उचित नहीं, बल्कि उसे ईश्वर को अर्पित करके करना चाहिए।
  • समाज के लिए कर्म करना और यज्ञ की भावना से कार्य करना ही श्रेष्ठ धर्म है।

📖 श्लोक (3.19):

"तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥"

📖 अर्थ: इसलिए बिना आसक्ति के सदा अपना कर्तव्य-कर्म कर, क्योंकि बिना आसक्ति से कर्म करने वाला व्यक्ति परम सिद्धि को प्राप्त करता है।

👉 यह अध्याय जीवन में कर्म की अनिवार्यता और सही तरीके से कर्म करने की विधि सिखाता है।


🔹 1️⃣ अर्जुन का प्रश्न और श्रीकृष्ण का उत्तर

📌 अर्जुन का प्रश्न (Verses 1-2)

अर्जुन पूछते हैं –

  • "हे कृष्ण! यदि ज्ञानयोग (बुद्धि का मार्ग) श्रेष्ठ है, तो फिर मुझे युद्ध रूपी कर्म क्यों करना चाहिए?"
  • "यदि मोक्ष ज्ञान से ही प्राप्त होता है, तो फिर कर्म करने की क्या आवश्यकता है?"

📖 श्लोक (3.2):

"व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्॥"

📖 अर्थ: हे कृष्ण! आपके शब्द मेरी बुद्धि को भ्रमित कर रहे हैं। कृपया मुझे निश्चित रूप से बताइए कि मेरे लिए क्या श्रेष्ठ है।

👉 अर्जुन को लगता है कि श्रीकृष्ण उसे एक तरफ कर्म करने के लिए कह रहे हैं और दूसरी तरफ ज्ञानयोग की प्रशंसा कर रहे हैं।


🔹 2️⃣ कर्मयोग का महत्व

📌 श्रीकृष्ण का उत्तर – कर्म ही श्रेष्ठ है (Verses 3-9)

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि "इस संसार में दो मार्ग हैं – ज्ञानयोग और कर्मयोग।"
  • जो व्यक्ति अत्यधिक बुद्धिमान है, वह ध्यान और ज्ञान से मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
  • लेकिन अधिकतर लोगों के लिए कर्म करना ही श्रेष्ठ है।

📖 श्लोक (3.8):

"नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥"

📖 अर्थ: तू अपने कर्तव्य कर्म को कर, क्योंकि कर्म करना निष्क्रियता से उत्तम है। यदि तू कर्म नहीं करेगा, तो तेरा जीवन भी सुचारु रूप से नहीं चलेगा।

👉 इसका अर्थ है कि केवल ज्ञान के आधार पर कोई मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि वह कर्म न करे।


🔹 3️⃣ यज्ञ और कर्म का संबंध

📌 यज्ञभावना से कर्म करना (Verses 10-16)

  • श्रीकृष्ण बताते हैं कि यज्ञ (त्याग और सेवा की भावना) से किया गया कर्म श्रेष्ठ है।
  • समस्त सृष्टि कर्म और यज्ञ के नियमों से बंधी हुई है।

📖 श्लोक (3.14):

"अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥"

📖 अर्थ: अन्न से सभी प्राणी उत्पन्न होते हैं, वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है, और यज्ञ से वर्षा उत्पन्न होती है।

👉 इसका अर्थ है कि संसार में सब कुछ कर्म और यज्ञ के सिद्धांत पर चलता है, इसलिए कर्म करना अनिवार्य है।


🔹 4️⃣ कर्म से भागना उचित नहीं

📌 कर्म करने में ही मोक्ष है (Verses 17-26)

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति केवल ध्यान में बैठा रहता है और कर्म नहीं करता, वह असली योगी नहीं है।
  • हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जैसे श्रीकृष्ण स्वयं कर्म करते हैं।

📖 श्लोक (3.21):

"यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥"

📖 अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जैसा कर्म करता है, अन्य लोग भी उसका अनुसरण करते हैं।

👉 इसका अर्थ है कि यदि बड़े और ज्ञानी लोग भी कर्म न करें, तो समाज में अराजकता फैल जाएगी।


🔹 5️⃣ निष्काम कर्म का सिद्धांत

📌 बिना फल की चिंता किए कर्म करो (Verses 27-35)

  • कर्म करना हमारा अधिकार है, लेकिन फल हमारे हाथ में नहीं है।
  • इसलिए, हमें फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

📖 श्लोक (3.30):

"मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥"

📖 अर्थ: अपने सभी कर्मों को मुझमें अर्पण कर, बिना किसी आशा और अहंकार के युद्ध कर।

👉 इसका अर्थ है कि कर्म करते समय उसे ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए, ताकि वह बंधन में न डाले।


🔹 6️⃣ रजोगुण और काम-क्रोध का नाश

📌 काम-क्रोध ही सबसे बड़े शत्रु हैं (Verses 36-43)

  • अर्जुन पूछते हैं कि "लोग जानते हुए भी अधर्म क्यों करते हैं?"
  • श्रीकृष्ण उत्तर देते हैं कि "काम (इच्छा) और क्रोध (गुस्सा) ही सबसे बड़े शत्रु हैं।"
  • इन्हें नष्ट करने के लिए ज्ञान और ध्यान का अभ्यास करना चाहिए।

📖 श्लोक (3.37):

"काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥"

📖 अर्थ: यह काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं। यह अत्यंत लोभी और पापी हैं, इन्हें अपना शत्रु समझो।

👉 इसका अर्थ है कि इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण पाने से व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ सकता है।


🔹 7️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ

📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. निष्काम कर्म ही सबसे श्रेष्ठ मार्ग है।
2. केवल ज्ञान से मोक्ष प्राप्त नहीं होता, कर्म करना भी आवश्यक है।
3. जो कर्म ईश्वर को समर्पित किया जाता है, वह बंधन नहीं देता।
4. इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण पाना आवश्यक है।
5. समाज को सही दिशा देने के लिए श्रेष्ठ पुरुषों को कर्म करना चाहिए।

👉 यह अध्याय जीवन में सही कर्म करने की प्रेरणा देता है और बताता है कि कर्म से भागना उचित नहीं।


🔹 निष्कर्ष

1️⃣ कर्मयोग गीता का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसमें निष्काम भाव से कर्म करने की प्रेरणा दी गई है।
2️⃣ श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म करने से भागना उचित नहीं, बल्कि उसे समर्पण भाव से करना चाहिए।
3️⃣ इच्छाओं और क्रोध पर विजय प्राप्त करना ही आत्मा की उन्नति का मार्ग है।
4️⃣ इस अध्याय से हमें सीख मिलती है कि हमें जीवन में बिना किसी स्वार्थ के अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

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