यहां भागवत गीता: अध्याय 1 (अर्जुनविषादयोग) शंखनाद और युद्ध की घोषणा (श्लोक 12-20) का अर्थ और व्याख्या दी गई है:
श्लोक 12
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्॥
अर्थ:
"कौरवों के वृद्ध पितामह भीष्म ने दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए सिंह की गर्जना के समान जोर से शंख बजाया।"
व्याख्या:
भीष्म पितामह ने शंखनाद कर कौरव सेना को उत्साहित किया और युद्ध के आरंभ का संकेत दिया। यह उनके साहस और सेना में ऊर्जा भरने का प्रतीक है।
श्लोक 13
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्॥
अर्थ:
"इसके बाद, शंख, भेरी, नगाड़े, मृदंग और नरसिंगा एक साथ जोर से बजाए गए, जिससे भयंकर और गगनभेदी आवाज हुई।"
व्याख्या:
दोनों सेनाओं में युद्ध का जोश और उत्साह बढ़ाने के लिए वाद्ययंत्र बजाए गए। यह श्लोक उस ऊर्जावान माहौल का चित्रण करता है जो युद्ध से पहले बना था।
श्लोक 14
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः॥
अर्थ:
"सफेद घोड़ों से युक्त एक महान रथ में स्थित भगवान माधव (कृष्ण) और पांडव अर्जुन ने दिव्य शंखों का नाद किया।"
व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने शंखनाद कर यह संकेत दिया कि पांडव युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। कृष्ण और अर्जुन की उपस्थिति पांडव पक्ष की शक्ति और आत्मविश्वास को दर्शाती है।
श्लोक 15
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः॥
अर्थ:
"हृषीकेश (कृष्ण) ने 'पाञ्चजन्य' नामक शंख, धनंजय (अर्जुन) ने 'देवदत्त' और महाबली भीम ने 'पौण्ड्र' नामक विशाल शंख बजाया।"
व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान कृष्ण, अर्जुन और भीम द्वारा बजाए गए शंखों का नाम और उनका महत्व वर्णित है। यह शंखनाद पांडवों की आत्मिक और भौतिक शक्ति का प्रतीक है।
श्लोक 16
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥
अर्थ:
"कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने 'अनन्तविजय' नामक शंख बजाया। नकुल ने 'सुघोष' और सहदेव ने 'मणिपुष्पक' नामक शंख बजाए।"
व्याख्या:
इस श्लोक में युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव द्वारा शंख बजाने का वर्णन है। ये शंख उनके संकल्प, आस्था और विजय की आकांक्षा का प्रतीक हैं।
श्लोक 17-18
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्॥
अर्थ:
"काशिराज, महान धनुर्धर; शिखंडी, महारथी; धृष्टद्युम्न, विराट, सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र, और महाबाहु अभिमन्यु ने भी अपने-अपने शंख बजाए।"
व्याख्या:
इस श्लोक में पांडव पक्ष के अन्य प्रमुख योद्धाओं और उनके शंख बजाने का वर्णन है। ये सभी योद्धा अपनी-अपनी भूमिका में दक्ष थे और पांडव सेना की ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
श्लोक 19
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्॥
अर्थ:
"यह शंखनाद कौरवों के दिलों को चीरता हुआ आकाश और पृथ्वी पर गूंज उठा।"
व्याख्या:
पांडवों की सेना का शंखनाद इतना गगनभेदी और प्रभावशाली था कि उसने कौरवों के मनोबल को हिला दिया। यह उनके आत्मविश्वास और दृढ़ता को दर्शाता है।
श्लोक 20
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः॥
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते॥
अर्थ:
"तब, कपिध्वज (अर्जुन), जो अपने रथ पर हनुमान के प्रतीक के साथ था, कौरवों की सेना को युद्ध के लिए तैयार देखकर धनुष उठाता है और श्रीकृष्ण से यह वचन कहता है।"
व्याख्या:
यहाँ अर्जुन की स्थिति को दिखाया गया है, जो अपने रथ पर स्थित होकर युद्ध के लिए तैयार है। उनकी ध्वजा पर स्थित हनुमान का प्रतीक उनकी ताकत और विजय का संकेत है। यह क्षण अर्जुन के भ्रम और दुविधा के आरंभ का संकेत देता है।
सारांश:
श्लोक 12 से 20 तक के इन अंशों में युद्ध के आरंभिक संकेत, शंखनाद, सेनाओं का परिचय, और अर्जुन की तैयारी का वर्णन है। यह अध्याय दोनों पक्षों की ताकत और मनोबल को उजागर करता है।
अगर आप इन श्लोकों की और गहराई से व्याख्या या अगले श्लोकों का विवरण चाहते हैं, तो कृपया बताएं।
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