श्रीकृष्ण भगवान की जन्म कथा बहुत ही रोचक, रहस्यमयी और चमत्कारिक है। यह कथा श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत और हरिवंश पुराण में विस्तार से वर्णित है।
कंस का आतंक और आकाशवाणी
मथुरा के राजा उग्रसेन का पुत्र कंस, अत्याचारी और क्रूर शासक था। उसने अपने पिता को बंदी बनाकर मथुरा का राजपद छीन लिया था। कंस की बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वीर वसुदेव से हुआ। विवाह के समय कंस स्वयं देवकी को स्नेहपूर्वक विदा कर रहा था। तभी आकाशवाणी हुई:
"हे कंस! तेरी बहन देवकी का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा।"
यह सुनकर कंस भयभीत और क्रोधित हो गया। उसने तुरंत देवकी को मारने का निर्णय लिया, लेकिन वसुदेव ने उसे यह आश्वासन देकर रोक दिया कि वे अपने सभी संतानों को कंस के हवाले कर देंगे।
देवकी और वसुदेव का कारावास
कंस ने देवकी और वसुदेव को कारावास में डाल दिया। देवकी की हर संतान को कंस जन्म लेते ही मार डालता था। उसने छह संतानों को निर्ममता से मार दिया। देवकी और वसुदेव अपने पुत्रों की मृत्यु से अत्यंत दुःखी थे, लेकिन उन्होंने भगवान विष्णु पर अपनी आस्था बनाए रखी।
सातवां और आठवां संतान
सातवां संतान (बलराम): देवकी की सातवीं संतान को भगवान विष्णु की माया से योगमाया ने वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। यह बालक आगे चलकर बलराम कहलाया।
आठवां संतान (कृष्ण): जब देवकी के गर्भ में आठवां बालक आया, तो भगवान विष्णु ने वसुदेव और देवकी को दर्शन दिए। उन्होंने कहा,
"मैं तुम्हारे पुत्र रूप में अवतार लूंगा और संसार से अधर्म का नाश करूंगा।"
कृष्ण का चमत्कारिक जन्म
आषाढ़ मास की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र में, आधी रात के समय भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में जन्म लिया। उनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ। जैसे ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ,
- जेल के दरवाजे स्वतः खुल गए।
- पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए।
- वसुदेव की बेड़ियां टूट गईं।
वसुदेव ने कृष्ण को एक टोकरी में रखा और यमुना नदी पार करके गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर पहुंचाया। उस रात नंद और यशोदा के घर एक कन्या का जन्म हुआ था।
योगमाया का चमत्कार
वसुदेव ने श्रीकृष्ण को यशोदा के पास छोड़कर उनकी कन्या को लेकर वापस कारावास लौट आए। जब कंस ने उस कन्या को मारने का प्रयास किया, तो वह कन्या आकाश में उड़ गई और देवी के रूप में प्रकट होकर बोली:
"हे कंस! तुझे मारने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है।"
यह सुनकर कंस और अधिक भयभीत हो गया और श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन हर बार असफल रहा।
यहीं से कृष्ण की लीलाओं का आरंभ हुआ, जो आगे चलकर धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक बनीं।
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