राजा का धर्म संकट
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से राज्य का एक न्यायप्रिय राजा था, जिसका नाम राजा सुमित्र था। राजा सुमित्र का दिल बहुत ही साफ और धर्मपरायण था। वह हमेशा अपने राज्य और प्रजा की भलाई के लिए फैसले करता था, और उसकी नीतियाँ हमेशा सच्चाई और न्याय पर आधारित होती थीं। उसकी प्रजा उसे एक आदर्श शासक मानती थी। राजा सुमित्र का एक ही उद्देश्य था—अपने राज्य को सुखी और समृद्ध बनाना, और इसके लिए वह किसी भी बलिदान को तैयार था।
धर्म संकट
एक दिन राजा सुमित्र के राज्य में एक बहुत गंभीर संकट उत्पन्न हो गया। राज्य के पास बहुत ही सीमित संसाधन थे, और अचानक राज्य के पास एक बड़ी आपदा आ गई। राज्य में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे जलस्रोतों का पानी सूख गया और फसलें खराब हो गईं। राज्य की प्रजा भूख और प्यास से परेशान हो गई, और कई लोग बुरी हालत में पहुँच गए।
राजा सुमित्र ने एक दिन अपने दरबार में सभी प्रमुखों और मंत्रियों को बुलाया और राज्य की कठिन परिस्थिति के बारे में चर्चा की। वे सभी एक ही निर्णय पर पहुंचे कि राज्य के प्रमुख जलस्रोत को अन्य राज्यों से जोड़ने के लिए एक बड़ी योजना बनाई जाए, जिससे पानी की समस्या हल हो सके। लेकिन इस योजना को लागू करने के लिए बड़ी राशि की आवश्यकता थी, और राज्य के खजाने में उतना पैसा नहीं था।
राजा सुमित्र ने अपने खजाने की पूरी स्थिति देखी और पाया कि खजाने में बहुत कम पैसा बचा था। इसके अलावा, राज्य में पहले ही बहुत सारे खर्चे थे, और अगर उन्होंने इस योजना को लागू किया, तो यह खजाने को पूरी तरह से खाली कर सकता था।
राजा के सामने एक बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया। एक ओर तो राज्य की जनता थी, जो पानी और खाद्य पदार्थों के लिए तरस रही थी, और दूसरी ओर राजा को यह चिंता थी कि यदि उसने खजाने का सारा पैसा खर्च कर दिया, तो राज्य की वित्तीय स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
राजा का निर्णय
राजा सुमित्र एक रात देर तक सोचता रहा। वह जानता था कि उसे एक सच्चे शासक की तरह अपने कर्तव्यों का पालन करना है। उसने अपने मंत्रियों से कहा:
"अगर हमारे पास धन नहीं है, तो हम इसे उधार लेने के लिए दूसरों से मांग सकते हैं, लेकिन हमें किसी भी हालत में अपनी प्रजा को दुखी नहीं होने देना चाहिए। मेरा धर्म यह है कि मैं अपनी प्रजा की भलाई के लिए हर संभव प्रयास करूँ।"
राजा ने इस संकट से उबरने के लिए राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से दान माँगने का निर्णय लिया। उसने राज्य के सभी बड़े व्यापारियों, धनवानों और अच्छे नागरिकों से अपील की कि वे कुछ धन दान करें, ताकि जलस्रोत को जोड़ने की योजना पूरी की जा सके। राजा ने यह भी वादा किया कि जो भी दान करेगा, उसे राज्य की तरफ से सम्मानित किया जाएगा।
राजा सुमित्र की इस अपील का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ा। राज्य के लोग और व्यापारी एकजुट हो गए और पर्याप्त धन इकट्ठा कर लिया, जिससे जलस्रोत को जोड़ने की योजना को पूरा किया जा सका। जलस्रोतों की स्थिति बेहतर हो गई, और राज्य में पानी की आपूर्ति शुरू हो गई। समय के साथ, राज्य की स्थिति में सुधार हुआ और लोग फिर से खुशहाल जीवन जीने लगे।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या राजा सुमित्र का निर्णय सही था? क्या उसे धर्म के नाम पर अपनी संपत्ति और राज्य की वित्तीय स्थिति को जोखिम में डालना चाहिए था?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"राजा सुमित्र का निर्णय बहुत ही साहसिक और धर्मपूर्ण था। एक शासक का पहला कर्तव्य अपनी प्रजा की भलाई करना है, और यही धर्म है। अगर शासक अपनी प्रजा के दुखों को देखकर कोई कदम नहीं उठाता, तो वह अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है। राजा सुमित्र ने अपने राज्य की भलाई के लिए न केवल अपनी संपत्ति को बल्कि अपने राजकाज को भी जोखिम में डाला, और यही एक सच्चे धर्मनिष्ठ शासक की पहचान होती है।"
कहानी की शिक्षा
- धर्म का पालन हमेशा प्रजा की भलाई और उनके हितों के लिए करना चाहिए।
- सच्चे शासक को कभी भी अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
- धन और संपत्ति से बढ़कर किसी शासक का कर्तव्य अपनी प्रजा के प्रति जिम्मेदारी निभाना होता है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि धर्म का पालन न केवल शब्दों से, बल्कि अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाने से होता है। सच्चे धर्म का पालन करने वाला शासक कभी भी अपने लोगों को दुखी नहीं होने देता, और उसकी नीतियाँ सच्चाई, न्याय और समृद्धि की ओर ले जाती हैं।
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