शनिवार, 26 जुलाई 2025

भगवद्गीता: अध्याय 18 - मोक्ष संन्यास योग

भगवद गीता – अष्टादश अध्याय: मोक्ष संन्यास योग

(Moksha Sannyasa Yoga – The Yoga of Liberation and Renunciation)

📖 अध्याय 18 का परिचय

मोक्ष संन्यास योग गीता का अंतिम और सबसे विस्तृत अध्याय है। इसमें श्रीकृष्ण संन्यास (Sannyasa – त्याग) और मोक्ष (Moksha – मुक्ति) का रहस्य बताते हैं। वे अर्जुन को कर्मयोग, भक्ति और ज्ञान के माध्यम से सर्वोच्च मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।

👉 मुख्य भाव:

  • संन्यास और त्याग का वास्तविक अर्थ।
  • कर्मों के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
  • ज्ञान, कर्ता और बुद्धि के तीन गुण।
  • भगवान की भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति।
  • गीता का अंतिम और सर्वोच्च उपदेश।

📖 श्लोक (18.66):

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"

📖 अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिंता मत करो।

👉 यह श्लोक गीता का सार है और भक्ति को मोक्ष का सर्वोत्तम मार्ग बताता है।


🔹 1️⃣ अर्जुन का प्रश्न – संन्यास और त्याग क्या है?

📌 1. संन्यास और त्याग में क्या अंतर है? (Verses 1-6)

अर्जुन पूछते हैं –

  • संन्यास (Sannyasa) क्या है?
  • त्याग (Tyaga) क्या है?

📖 श्लोक (18.1):

"अर्जुन उवाच: संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन॥"

📖 अर्थ: हे महाबाहु! हे हृषीकेश! हे केशव! मैं संन्यास और त्याग का तत्व जानना चाहता हूँ।

👉 संन्यास और त्याग दोनों ही मोक्ष के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनका सही अर्थ समझना जरूरी है।


📌 2. श्रीकृष्ण का उत्तर – संन्यास और त्याग में अंतर

  • संन्यास – सभी कामनाओं से प्रेरित कर्मों का त्याग।
  • त्याग – सभी कर्मों के फल का त्याग।

📖 श्लोक (18.2):

"श्रीभगवानुवाच: काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः॥"

📖 अर्थ: ज्ञानी लोग सभी इच्छाओं से प्रेरित कर्मों का त्याग संन्यास कहते हैं, और सभी कर्मों के फल का त्याग त्याग कहा जाता है।

👉 सच्चा त्यागी वह है जो कर्म करता है लेकिन उसके फल की इच्छा नहीं करता।


🔹 2️⃣ कर्म के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक

📌 3. कर्म तीन प्रकार के होते हैं (Verses 7-12)

कर्म का प्रकार कैसा होता है? परिणाम
सात्त्विक कर्म निष्काम भाव से किया जाता है। पवित्रता और मोक्ष की ओर ले जाता है।
राजसिक कर्म इच्छा और लाभ की आशा से किया जाता है। बंधन और पुनर्जन्म की ओर ले जाता है।
तामसिक कर्म अज्ञान और हठ से किया जाता है। विनाश और अंधकार की ओर ले जाता है।

📖 श्लोक (18.9):

"कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।
सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः॥"

📖 अर्थ: जो कर्म कर्तव्य मानकर बिना आसक्ति और फल की इच्छा के किया जाता है, वह सात्त्विक त्याग है।

👉 हमें सात्त्विक कर्म को अपनाना चाहिए और फल की चिंता छोड़ देनी चाहिए।


🔹 3️⃣ ज्ञान, कर्ता और बुद्धि के तीन प्रकार

📌 4. ज्ञान, कर्ता और बुद्धि भी तीन प्रकार की होती है (Verses 20-30)

विभाग सात्त्विक (शुद्ध) राजसिक (आसक्त) तामसिक (अज्ञान)
ज्ञान एकता को देखने वाला भेदभाव करने वाला अधर्म में विश्वास रखने वाला
कर्ता निष्काम, धैर्यवान, निडर लोभी, अहंकारी, अस्थिर आलसी, क्रूर, अज्ञानी
बुद्धि धर्म और अधर्म में भेद करने वाली धन, पद और भोग में आसक्त पाप और अधर्म को ही सत्य मानने वाली

📖 श्लोक (18.30):

"प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी॥"

📖 अर्थ: जो बुद्धि यह जानती है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं, क्या धर्म है और क्या अधर्म – वह सात्त्विक बुद्धि है।

👉 हमें सात्त्विक बुद्धि को अपनाना चाहिए और अधर्म से दूर रहना चाहिए।


🔹 4️⃣ भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति

📌 5. चार गुण जो मोक्ष की ओर ले जाते हैं (Verses 49-55)

  • आसक्ति का त्याग।
  • निष्काम कर्म।
  • शुद्ध बुद्धि।
  • ईश्वर की भक्ति।

📖 श्लोक (18.54):

"ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्॥"

📖 अर्थ: जो ब्रह्मज्ञानी हो जाता है, वह न शोक करता है, न कुछ चाहता है, और सभी प्राणियों में समभाव रखता है। तभी वह मेरी परम भक्ति प्राप्त करता है।

👉 भक्ति से ही मोक्ष संभव है।


🔹 5️⃣ गीता का अंतिम और सर्वोच्च उपदेश

📌 6. गीता का सार – भगवान की शरण में जाओ (Verses 63-66)

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ।

📖 श्लोक (18.66):

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"

📖 अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिंता मत करो।

👉 यह गीता का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपदेश है – भगवान की भक्ति ही मोक्ष का सर्वोच्च मार्ग है।


🔹 निष्कर्ष

📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. संन्यास का अर्थ कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फल की आसक्ति का त्याग है।
2. कर्म, ज्ञान, कर्ता और बुद्धि के तीन भेद होते हैं – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
3. भक्ति से ही व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
4. गीता का अंतिम और सर्वोच्च संदेश – "भगवान की शरण में जाओ"।


🔹 गीता का सारांश

"कर्म करो, फल की चिंता मत करो। भगवान की भक्ति करो, वे तुम्हें मोक्ष देंगे।"

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