भगवद गीता – अष्टादश अध्याय: मोक्ष संन्यास योग
(Moksha Sannyasa Yoga – The Yoga of Liberation and Renunciation)
📖 अध्याय 18 का परिचय
मोक्ष संन्यास योग गीता का अंतिम और सबसे विस्तृत अध्याय है। इसमें श्रीकृष्ण संन्यास (Sannyasa – त्याग) और मोक्ष (Moksha – मुक्ति) का रहस्य बताते हैं। वे अर्जुन को कर्मयोग, भक्ति और ज्ञान के माध्यम से सर्वोच्च मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
👉 मुख्य भाव:
- संन्यास और त्याग का वास्तविक अर्थ।
- कर्मों के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
- ज्ञान, कर्ता और बुद्धि के तीन गुण।
- भगवान की भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति।
- गीता का अंतिम और सर्वोच्च उपदेश।
📖 श्लोक (18.66):
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
📖 अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिंता मत करो।
👉 यह श्लोक गीता का सार है और भक्ति को मोक्ष का सर्वोत्तम मार्ग बताता है।
🔹 1️⃣ अर्जुन का प्रश्न – संन्यास और त्याग क्या है?
📌 1. संन्यास और त्याग में क्या अंतर है? (Verses 1-6)
अर्जुन पूछते हैं –
- संन्यास (Sannyasa) क्या है?
- त्याग (Tyaga) क्या है?
📖 श्लोक (18.1):
"अर्जुन उवाच: संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन॥"
📖 अर्थ: हे महाबाहु! हे हृषीकेश! हे केशव! मैं संन्यास और त्याग का तत्व जानना चाहता हूँ।
👉 संन्यास और त्याग दोनों ही मोक्ष के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनका सही अर्थ समझना जरूरी है।
📌 2. श्रीकृष्ण का उत्तर – संन्यास और त्याग में अंतर
- संन्यास – सभी कामनाओं से प्रेरित कर्मों का त्याग।
- त्याग – सभी कर्मों के फल का त्याग।
📖 श्लोक (18.2):
"श्रीभगवानुवाच: काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः॥"
📖 अर्थ: ज्ञानी लोग सभी इच्छाओं से प्रेरित कर्मों का त्याग संन्यास कहते हैं, और सभी कर्मों के फल का त्याग त्याग कहा जाता है।
👉 सच्चा त्यागी वह है जो कर्म करता है लेकिन उसके फल की इच्छा नहीं करता।
🔹 2️⃣ कर्म के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक
📌 3. कर्म तीन प्रकार के होते हैं (Verses 7-12)
कर्म का प्रकार | कैसा होता है? | परिणाम |
---|---|---|
सात्त्विक कर्म | निष्काम भाव से किया जाता है। | पवित्रता और मोक्ष की ओर ले जाता है। |
राजसिक कर्म | इच्छा और लाभ की आशा से किया जाता है। | बंधन और पुनर्जन्म की ओर ले जाता है। |
तामसिक कर्म | अज्ञान और हठ से किया जाता है। | विनाश और अंधकार की ओर ले जाता है। |
📖 श्लोक (18.9):
"कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।
सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः॥"
📖 अर्थ: जो कर्म कर्तव्य मानकर बिना आसक्ति और फल की इच्छा के किया जाता है, वह सात्त्विक त्याग है।
👉 हमें सात्त्विक कर्म को अपनाना चाहिए और फल की चिंता छोड़ देनी चाहिए।
🔹 3️⃣ ज्ञान, कर्ता और बुद्धि के तीन प्रकार
📌 4. ज्ञान, कर्ता और बुद्धि भी तीन प्रकार की होती है (Verses 20-30)
विभाग | सात्त्विक (शुद्ध) | राजसिक (आसक्त) | तामसिक (अज्ञान) |
---|---|---|---|
ज्ञान | एकता को देखने वाला | भेदभाव करने वाला | अधर्म में विश्वास रखने वाला |
कर्ता | निष्काम, धैर्यवान, निडर | लोभी, अहंकारी, अस्थिर | आलसी, क्रूर, अज्ञानी |
बुद्धि | धर्म और अधर्म में भेद करने वाली | धन, पद और भोग में आसक्त | पाप और अधर्म को ही सत्य मानने वाली |
📖 श्लोक (18.30):
"प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी॥"
📖 अर्थ: जो बुद्धि यह जानती है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं, क्या धर्म है और क्या अधर्म – वह सात्त्विक बुद्धि है।
👉 हमें सात्त्विक बुद्धि को अपनाना चाहिए और अधर्म से दूर रहना चाहिए।
🔹 4️⃣ भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति
📌 5. चार गुण जो मोक्ष की ओर ले जाते हैं (Verses 49-55)
- आसक्ति का त्याग।
- निष्काम कर्म।
- शुद्ध बुद्धि।
- ईश्वर की भक्ति।
📖 श्लोक (18.54):
"ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्॥"
📖 अर्थ: जो ब्रह्मज्ञानी हो जाता है, वह न शोक करता है, न कुछ चाहता है, और सभी प्राणियों में समभाव रखता है। तभी वह मेरी परम भक्ति प्राप्त करता है।
👉 भक्ति से ही मोक्ष संभव है।
🔹 5️⃣ गीता का अंतिम और सर्वोच्च उपदेश
📌 6. गीता का सार – भगवान की शरण में जाओ (Verses 63-66)
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ।
📖 श्लोक (18.66):
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
📖 अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिंता मत करो।
👉 यह गीता का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपदेश है – भगवान की भक्ति ही मोक्ष का सर्वोच्च मार्ग है।
🔹 निष्कर्ष
📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:
✅ 1. संन्यास का अर्थ कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फल की आसक्ति का त्याग है।
✅ 2. कर्म, ज्ञान, कर्ता और बुद्धि के तीन भेद होते हैं – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक।
✅ 3. भक्ति से ही व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
✅ 4. गीता का अंतिम और सर्वोच्च संदेश – "भगवान की शरण में जाओ"।
🔹 गीता का सारांश
"कर्म करो, फल की चिंता मत करो। भगवान की भक्ति करो, वे तुम्हें मोक्ष देंगे।"