शनिवार, 26 जून 2021

श्री अरविंदो घोष

 श्री अरविंदो (15 अगस्त 1872 – 5 दिसम्बर 1950) भारतीय योगी, संत, लेखक, और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में कार्य करते हुए, भारतीय समाज और संस्कृति के आध्यात्मिक और सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए समर्पित थे। श्री अरविंदो का जीवन और उनके विचार आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। वे भारतीय धर्म, योग, दर्शन, और विज्ञान के गहरे अध्ययनकर्ता थे, और उन्होंने आध्यात्मिकता, योग, और राष्ट्रवादी विचारों के संयोजन से एक समृद्ध जीवन का निर्माण किया।

श्री अरविंदो ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण स्वराज की आवश्यकता पर बल दिया और भारतीय समाज को एक नया दिशा देने का कार्य किया। इसके अलावा, वे योग के उच्चतम रूपों के सिद्धांतज्ञ भी थे, जिनका उद्देश्य न केवल आत्म-निर्माण, बल्कि सम्पूर्ण मानवता का आध्यात्मिक उत्थान था।

श्री अरविंदो का जीवन:

श्री अरविंदो का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम आरोबिंदो घोष था। वे एक अंग्रेजी परिवार में जन्मे थे, और उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंग्लैंड में हुई थी। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और साहित्य, दर्शन, और विज्ञान के विषयों में गहरी रुचि रखते थे।

श्री अरविंदो का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
श्री अरविंदो ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बंगाल के उग्रपंथी आंदोलन में भाग लिया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विरोध व्यक्त किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हुए थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी विचारधारा के अनुरूप अलग राह अपनाई। उन्होंने देश के लिए पूर्ण स्वराज की बात की और यह भी कहा कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति की आवश्यकता है

श्री अरविंदो के प्रमुख विचार और संदेश:

1. आध्यात्मिक जागृति और मानवता का उत्थान:

श्री अरविंदो ने माना कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक जागृति और मानवता के आत्मिक विकास की आवश्यकता है। उनका विश्वास था कि समाज को केवल बाहरी बदलाव से नहीं, बल्कि आंतरिक बदलाव से सही दिशा मिल सकती है।

"आध्यात्मिक जीवन के बिना किसी भी सच्ची उन्नति की कल्पना नहीं की जा सकती।"

  • संदेश: समाज और राष्ट्र की सही उन्नति के लिए आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक जागृति जरूरी है।

2. पूर्ण स्वराज:

श्री अरविंदो का मानना था कि भारत को पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की आवश्यकता है, और यह स्वतंत्रता केवल बाहरी आक्रमण से मुक्ति तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक रूप से भी हासिल करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आत्मनिर्भरता और आत्म-विश्वास से ही हम स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं।

"भारत के लिए स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक परिवर्तन की आवश्यकता है।"

  • संदेश: केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक स्वतंत्रता भी आवश्यक है।

3. योग और साधना:

श्री अरविंदो ने योग को केवल शारीरिक अभ्यास के रूप में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और जीवन के उद्देश्य को समझने का एक रास्ता माना। उन्होंने राजयोग, कर्मयोग, और ज्ञानयोग को एक साथ जोड़ते हुए बताया कि ये सभी साधन व्यक्ति को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

"योग केवल आत्मा की उन्नति का नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में परिवर्तन लाने का साधन है।"

  • संदेश: योग केवल शारीरिक या मानसिक शांति के लिए नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में उन्नति लाने के लिए किया जाना चाहिए।

4. मानवता और समानता:

श्री अरविंदो का विश्वास था कि समाज में हर व्यक्ति में दिव्यता छिपी हुई है। वे जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ थे और उनका यह मानना था कि हर मानव का उद्देश्य अपने भीतर की दिव्य शक्ति को पहचानना है।

"मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति उसकी आत्मा में है, और यह शक्ति उसे आत्म-साक्षात्कार से प्राप्त होती है।"

  • संदेश: मानवता का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मा का शुद्धिकरण और आत्मज्ञान प्राप्त करना है।

5. आध्यात्मिक और भौतिक जीवन का संयोजन:

श्री अरविंदो का यह भी मानना था कि आध्यात्मिकता और भौतिक जीवन अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि दोनों का समन्वय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ध्यान और साधना के माध्यम से हम भौतिक जीवन को भी अधिक सामर्थ्यशाली और दिव्य बना सकते हैं।

"आध्यात्मिक जीवन और भौतिक जीवन को अलग नहीं करना चाहिए, वे एक-दूसरे के पूरक हैं।"

  • संदेश: आध्यात्मिक और भौतिक जीवन का संतुलन ही जीवन को सही दिशा प्रदान करता है।

श्री अरविंदो की प्रमुख रचनाएँ:

  1. "The Life Divine": यह उनकी एक प्रमुख रचना है, जिसमें उन्होंने जीवन के उद्देश्यों, दिव्य जीवन, और आत्मा की उन्नति के बारे में गहरे विचार व्यक्त किए हैं।

  2. "Essays on the Gita": इस पुस्तक में श्री अरविंदो ने भगवद गीता के गूढ़ अर्थों और सिद्धांतों पर विस्तृत विचार किया है।

  3. "The Synthesis of Yoga": इस पुस्तक में उन्होंने योग के विभिन्न प्रकारों का विवरण दिया है और बताया है कि कैसे एक व्यक्ति योग के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को जोड़ सकता है।

  4. "Sri Aurobindo's Collected Poems and Plays": यह श्री अरविंदो की कविताओं और नाटकों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने जीवन, प्रेम, और आत्मा के विषयों पर अपनी गहरी अभिव्यक्तियाँ दी हैं।

श्री अरविंदो के प्रमुख उद्धरण:

  1. "उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

    • संदेश: आत्मविश्वास और संघर्ष से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  2. "आध्यात्मिक जीवन में हमें अपनी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है, तभी हम सच्चे उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं।"

    • संदेश: आंतरिक परिवर्तन से ही हम बाहरी दुनिया में बदलाव ला सकते हैं।
  3. "आध्यात्मिकता का वास्तविक उद्देश्य मानवता के भले के लिए है।"

    • संदेश: आध्यात्मिक उन्नति का उद्देश्य केवल आत्मा के लिए नहीं, बल्कि समाज और मानवता की भलाई के लिए है।
  4. "सच्ची शक्ति अंदर से आती है, और यह शक्ति प्रेम और आत्मज्ञान से विकसित होती है।"

    • संदेश: प्रेम और आत्मज्ञान से हम अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत कर सकते हैं।

श्री अरविंदो का योगदान:

स्वामी विवेकानंद के बाद श्री अरविंदो भारतीय समाज और धर्म के बारे में गहरे विचारक बने। उनके विचार आध्यात्मिकता, योग, और स्वतंत्रता संग्राम के संयोजन में नए दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक गहरी आध्यात्मिक दिशा दी, और कहा कि सच्ची स्वतंत्रता केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मज्ञान से प्राप्त होती है

उनके योगदान ने भारतीय समाज में धर्म, संस्कृति, और आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूकता बढ़ाई। उनका जीवन और विचार आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो आध्यात्मिक उन्नति, समाज सुधार, और व्यक्तित्व विकास के लिए प्रयासरत हैं।

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