शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

सर्व धर्म समभाव

 सर्व धर्म समभाव (Sarv Dharma Sambhava) का अर्थ है, सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और समझ का व्यवहार करना। यह भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो विभिन्न धार्मिक विश्वासों, परंपराओं और आस्थाओं के बीच शांति, सद्भाव और सहिष्णुता का प्रचार करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, किसी भी धर्म को श्रेष्ठ या निम्न समझने की बजाय सभी धर्मों को समान दृष्टिकोण से देखना चाहिए, क्योंकि सभी का उद्देश्य मानवता की भलाई और आत्मज्ञान की प्राप्ति है।

1. सर्व धर्म समभाव का सिद्धांत

सर्व धर्म समभाव का सिद्धांत किसी विशेष धर्म की आलोचना या उपेक्षा नहीं करता, बल्कि यह विश्वास करता है कि सभी धर्म अपने-अपने तरीके से सत्य की ओर मार्गदर्शन करते हैं। यह विचार सत्य के खोज में विविधता को स्वीकार करता है और मानवता के सर्वांगीण विकास के लिए सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश देता है।

  • समान सम्मान: यह सिद्धांत सभी धर्मों को समान आदर और सम्मान देने का आह्वान करता है। यह न केवल धार्मिक विविधता को स्वीकार करता है, बल्कि इस विविधता का उत्सव मनाने का आग्रह करता है।

  • धर्म के उद्देश्य की समानता: सभी धर्मों का मुख्य उद्देश्य मानवता की भलाई, शांति और आत्मिक उन्नति है। चाहे वह हिन्दू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म या अन्य कोई धर्म हो, सभी का लक्ष्य अपने अनुयायियों को नैतिक जीवन जीने, आत्मज्ञान प्राप्त करने और दुनिया में शांति स्थापित करने का है।

2. सर्व धर्म समभाव का महत्व

  1. धार्मिक सहिष्णुता: सर्व धर्म समभाव की अवधारणा धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देती है, जिससे समाज में अलग-अलग धर्मों और आस्थाओं के अनुयायी एक-दूसरे के प्रति सम्मान और समझ बना पाते हैं। यह समाज में सद्भाव, शांति और सहअस्तित्व को बढ़ावा देता है।

  2. समाज में एकता और शांति: विभिन्न धर्मों के बीच समान सम्मान और समझ होने से समाज में धार्मिक संघर्षों और भेदभावों को कम किया जा सकता है। यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भाईचारे और एकता को बढ़ावा देता है।

  3. विश्वास और आस्थाओं का सम्मान: जब हम सभी धर्मों को समान सम्मान देते हैं, तो यह हर धर्म के अनुयायियों के विश्वास और आस्थाओं का सम्मान करने का एक तरीका है। इससे आपसी विश्वास और समझ का निर्माण होता है।

  4. मानवता के लिए सहयोग: सर्व धर्म समभाव का सिद्धांत यह संदेश देता है कि सभी धर्म मानवता की भलाई के लिए हैं। इसके माध्यम से विभिन्न धार्मिक समूह एक साथ मिलकर समाज की समृद्धि, शिक्षा, स्वास्थ्य, और न्याय की दिशा में काम कर सकते हैं।

3. भारत में सर्व धर्म समभाव

भारत में सर्व धर्म समभाव का सिद्धांत गहरे रूप से जड़ा हुआ है, क्योंकि यह देश विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम है। यहाँ पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, और अन्य धर्मों के अनुयायी रहते हैं, और इन सभी धर्मों का योगदान भारतीय संस्कृति और समाज की विविधता में है।

1. महात्मा गांधी का दृष्टिकोण:

महात्मा गांधी ने हमेशा सर्व धर्म समभाव की बात की और उन्होंने कहा कि "सभी धर्मों का उद्देश्य मानवता की भलाई है।" गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को सभी धर्मों में समान पाया और अपने जीवन में इसका पालन किया। उनका मानना था कि कोई भी धर्म दूसरों को नष्ट करने या उपेक्षित करने का नहीं बल्कि सभी के बीच शांति और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का है।

2. स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण:

स्वामी विवेकानंद ने अपने ऐतिहासिक शिकागो भाषण में कहा था, "हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं क्योंकि हर धर्म मानवता के लिए एक आदर्श और सच्चाई का मार्गदर्शन प्रदान करता है।" उन्होंने यह भी कहा कि धर्म का उद्देश्य एक ही है—आध्यात्मिक उन्नति और मानवता की सेवा।

3. भगवद गीता का दृष्टिकोण:

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने यह कहा है कि जो भी व्यक्ति सच्चे हृदय से भगवान की भक्ति करता है, वह चाहे किसी भी धर्म का हो, उसकी भक्ति स्वीकार की जाती है। गीता में "सर्वधर्मान्परित्यज्य" (सभी धर्मों को छोड़कर) का मतलब यह नहीं है कि कोई धर्म गलत है, बल्कि यह है कि सभी धर्मों के पीछे एक परम सत्य और उद्देश्य है, और हमें उसी परम सत्य की खोज करनी चाहिए।

4. सर्व धर्म समभाव का अनुपालन

सर्व धर्म समभाव को केवल विचारों और शब्दों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे अपनी दिनचर्या और व्यवहार में भी उतारना चाहिए। कुछ प्रमुख उपाय हैं:

  1. धार्मिक शिक्षा का प्रचार: हमें बच्चों और युवा पीढ़ी को विभिन्न धर्मों के बारे में सिखाना चाहिए ताकि वे उन धर्मों के बारे में सही ज्ञान प्राप्त कर सकें और आपस में सम्मान और समझ बढ़ा सकें।

  2. धार्मिक कार्यक्रमों में सहभागिता: विभिन्न धर्मों के आयोजनों और त्योहारों में सहभागिता करना एक अच्छा तरीका है विभिन्न धर्मों को समझने और सम्मानित करने का। यह हमें एक-दूसरे की धार्मिक प्रथाओं और संस्कृतियों के प्रति सहिष्णु और संवेदनशील बनाता है।

  3. धार्मिक भेदभाव के खिलाफ खड़ा होना: हमें किसी भी प्रकार के धार्मिक भेदभाव, हिंसा या असहिष्णुता के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। जब हम किसी धर्म को गलत या निचा समझते हैं, तो हम न केवल उस धर्म के अनुयायियों को चोट पहुँचाते हैं, बल्कि समाज में विभाजन और संघर्ष को भी बढ़ावा देते हैं।

  4. समान अवसर और अधिकार: समाज में सभी धर्मों के अनुयायियों को समान अवसर और अधिकार मिलना चाहिए। इसका अर्थ है कि हम किसी को उसके धर्म, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव न करें और सभी को समान सम्मान दें।

5. निष्कर्ष

सर्व धर्म समभाव का सिद्धांत न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह पूरी दुनिया में शांति, सहिष्णुता, और भाईचारे का संदेश देता है। यह सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि भिन्न-भिन्न धर्मों और आस्थाओं का आदर करना और उनकी विविधता को स्वीकार करना ही मानवता के लिए सर्वोत्तम मार्ग है। जब हम सभी धर्मों को समान सम्मान देते हैं, तो हम एक समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना कर सकते हैं। इसलिए, हमें इस सिद्धांत को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और इसे समाज में फैलाना चाहिए ताकि हम सभी मिलकर एक बेहतर और शांतिपूर्ण दुनिया का निर्माण कर सकें।

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