न्यायप्रिय राजा की कहानी
प्राचीन समय में एक राजा था जो अपनी न्यायप्रियता और निष्पक्षता के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध था। वह हर विवाद का हल बड़ी बुद्धिमानी और निष्पक्षता से निकालता था। एक दिन उसके न्याय की कठिन परीक्षा ली गई, जब उसे अपनी प्रजा के बीच एक जटिल विवाद का निर्णय करना पड़ा।
घटना का आरंभ
एक किसान और एक व्यापारी राजा के दरबार में पहुंचे। किसान ने कहा,
"महाराज, मैंने अपने खेत में एक गड़ा हुआ खजाना पाया है। लेकिन यह खजाना मेरा नहीं है, क्योंकि मैंने इसे नहीं गाड़ा। यह व्यापारी का हो सकता है, क्योंकि उसने मुझे यह जमीन बेची थी।"
व्यापारी ने उत्तर दिया:
"नहीं महाराज, यह खजाना मेरा नहीं है। मैंने जमीन बेची थी, लेकिन खजाने के बारे में मुझे कुछ पता नहीं। यह किसान का ही है, क्योंकि वह अब इस जमीन का मालिक है।"
दोनों ही खजाने को स्वीकारने से इनकार कर रहे थे, और राजा से निर्णय की उम्मीद कर रहे थे।
राजा की परीक्षा
राजा ने कुछ देर सोचा और फिर दोनों से पूछा,
"किसान, तुम्हारे पास संतान है?"
किसान ने उत्तर दिया, "हां, महाराज।"
फिर राजा ने व्यापारी से पूछा, "और तुम्हारे पास?"
व्यापारी ने कहा, "नहीं, महाराज। मेरी कोई संतान नहीं है।"
राजा ने तब निर्णय सुनाया:
"यह खजाना राज्य का है, लेकिन इसका उपयोग तुम्हारी संतानों के लाभ के लिए किया जाएगा। किसान को यह खजाना दिया जाएगा, क्योंकि उसने इसे ईमानदारी से राजा के समक्ष प्रस्तुत किया। व्यापारी को उसकी ईमानदारी के लिए सम्मानित किया जाएगा।"
परिणाम
राजा का यह निर्णय सुनकर दोनों बहुत खुश हुए। किसान ने खजाने को अपनी संतानों की शिक्षा और भलाई के लिए उपयोग किया। व्यापारी ने राजा की न्यायप्रियता की सराहना की और कहा कि उसका फैसला दोनों के लिए लाभदायक है।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या राजा का निर्णय उचित था? और यदि हां, तो क्यों?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"राजा का निर्णय बिल्कुल उचित था। उसने दोनों की ईमानदारी को ध्यान में रखते हुए खजाने का ऐसा उपयोग किया, जिससे समाज का लाभ हो। किसान और व्यापारी दोनों ने स्वार्थ त्याग कर सत्य का पालन किया, और राजा ने उनके योगदान का सम्मान किया।"
कहानी की शिक्षा
- न्याय में निष्पक्षता जरूरी है।
- ईमानदारी और सत्य का सम्मान करना चाहिए।
- संसाधनों का उपयोग समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए।