तीन ब्राह्मण और मृत राजकुमारी की कहानी
किसी समय की बात है, एक नगर में तीन ब्राह्मण युवक रहते थे। वे तीनों विद्वान, तपस्वी और सदाचारी थे। दुर्भाग्यवश, वे तीनों एक ही राजकुमारी से प्रेम करते थे। राजकुमारी न केवल अत्यंत सुंदर थी, बल्कि बुद्धिमान और गुणवान भी थी।
एक दिन अचानक राजकुमारी बीमार पड़ी और उसकी मृत्यु हो गई। तीनों ब्राह्मणों को यह दुःख सहन नहीं हुआ।
तीनों ब्राह्मणों का त्याग
- पहला ब्राह्मण: उसने राजकुमारी के मृत शरीर को चिता पर जलने से रोक दिया और उसकी अस्थियों को एकत्रित करके एक सुरक्षित स्थान पर रखा।
- दूसरा ब्राह्मण: उसने श्मशान के पास एक आश्रम बनाकर तपस्या शुरू कर दी। उसने प्रतिज्ञा ली कि वह राजकुमारी के बिना जीवन नहीं जीएगा।
- तीसरा ब्राह्मण: उसने पूरे देश में घूम-घूमकर मंत्र और तंत्र का ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया, ताकि वह राजकुमारी को जीवित कर सके।
राजकुमारी का पुनर्जीवन
कई वर्षों बाद तीसरा ब्राह्मण एक ऐसा मंत्र सीखने में सफल हुआ, जिससे वह मृत व्यक्ति को जीवित कर सकता था। वह तुरंत राजकुमारी की अस्थियों के पास पहुंचा और पहले ब्राह्मण से कहा कि वह उन्हें लाए। मंत्र के प्रभाव से राजकुमारी फिर से जीवित हो गई और पहले की तरह सुंदर और जीवंत हो गई।
अब समस्या यह थी कि तीनों ब्राह्मणों ने राजकुमारी को अपना जीवनसाथी बनाने का दावा किया।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"इन तीनों में से कौन राजकुमारी का वास्तविक पति होने का हकदार है?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"वास्तविक पति वह है जिसने राजकुमारी की अस्थियों की रक्षा की, क्योंकि उसने उसे मृत शरीर के रूप में भी अपना माना। दूसरा ब्राह्मण त्यागी और तपस्वी था, लेकिन उसने पति का धर्म नहीं निभाया। तीसरा ब्राह्मण केवल राजकुमारी को जीवित करने का माध्यम बना, लेकिन उसका संबंध केवल उसके पुनर्जीवन से था। इसलिए, पहला ब्राह्मण ही राजकुमारी का वास्तविक पति है।"
कहानी की शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम केवल त्याग और तपस्या से नहीं, बल्कि निष्ठा और दायित्व निभाने से सिद्ध होता है।