🙏 सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की प्रेरणादायक कहानी – सत्य और धर्म की अमर गाथा 👑
राजा हरिश्चंद्र सत्य, न्याय और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन कभी भी सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा। उनकी कहानी हमें ईमानदारी, संयम और सत्य की शक्ति को समझने की प्रेरणा देती है।
👑 राजा हरिश्चंद्र का राज्य और उनकी महानता
प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा हरिश्चंद्र अयोध्या में राज करते थे।
वे न्यायप्रिय, दयालु और सत्यवादी थे। उनके राज्य में कोई भी दुखी या भूखा नहीं रहता था।
📌 उनके राज्य में सत्य, धर्म और प्रेम का वास था।
📌 वे हमेशा अपना वचन निभाने वाले राजा थे।
📌 उनके गुणों के कारण देवता और ऋषि भी उनकी प्रशंसा करते थे।
🧘 विश्वामित्र का आगमन और परीक्षा का प्रारंभ
एक दिन महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा की परीक्षा लेने का निश्चय किया।
उन्होंने राजा के सपने में आकर उनसे राज्यदान का वचन ले लिया।
सुबह, जब राजा हरिश्चंद्र जागे, तो उन्होंने तुरंत अपना पूरा राज्य ऋषि को सौंप दिया।
लेकिन ऋषि ने कहा –
"राजा, केवल राज्य देना पर्याप्त नहीं, तुम्हें दक्षिणा भी देनी होगी!"
राजा हरिश्चंद्र के पास अब कुछ भी नहीं बचा था, फिर भी उन्होंने कहा –
"ऋषिवर, मैं अपनी दक्षिणा अवश्य दूँगा। कृपया मुझे कुछ समय दें।"
📌 अब राजा अपनी पत्नी तारामती और पुत्र रोहिताश्व के साथ जंगल की ओर चल पड़े।
📌 वे अपनी दक्षिणा चुकाने के लिए धन अर्जित करने के लिए भटकने लगे।
📌 अब तक एक सम्राट रहे हरिश्चंद्र को भीख माँगने और मेहनत करने की नौबत आ गई।
🏯 श्मशान में काम और कठिन परीक्षा
कुछ समय बाद, हरिश्चंद्र काशी पहुँचे, जहाँ उन्हें श्मशान घाट पर काम मिला।
उन्होंने वहां श्मशान की देखभाल करने और अंतिम संस्कार का कर वसूलने का कार्य स्वीकार कर लिया।
📌 उधर, उनकी पत्नी तारामती भी पेट भरने के लिए एक साहूकार के यहाँ दासी बन गईं।
📌 उनका बेटा रोहिताश्व भी गरीबी और भूख के कारण बीमार रहने लगा।
😭 सबसे कठिन परीक्षा – पुत्र का बलिदान
एक दिन, रोहिताश्व बीमार पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
गरीब तारामती अपने मृत बेटे को लेकर श्मशान घाट पर पहुँचीं, लेकिन वहाँ हरिश्चंद्र मौजूद थे।
जब उन्होंने अपनी पत्नी और पुत्र को देखा, तो वे रो पड़े, लेकिन कर्तव्यनिष्ठ राजा ने कर वसूलने का नियम नहीं तोड़ा।
उन्होंने कहा –
"श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए कर चुकाना होगा, चाहे वह मेरा ही पुत्र क्यों न हो!"
📌 तारामती के पास कोई धन नहीं था, इसलिए उन्होंने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा काटकर कर चुकाया।
📌 हरिश्चंद्र और तारामती अपने पुत्र के शव को देखकर विलाप करने लगे।
📌 देवता और ऋषि भी उनकी सत्यनिष्ठा और धैर्य देखकर स्तब्ध रह गए।
🌟 देवताओं की कृपा और हरिश्चंद्र की पुनः प्रतिष्ठा
जब हरिश्चंद्र ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू की, तो देवता प्रसन्न हुए और स्वयं प्रकट हुए।
उन्होंने कहा –
"हे हरिश्चंद्र! तुमने सत्य और धर्म की कठिनतम परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। हम तुम्हारी निष्ठा से प्रसन्न हैं।"
📌 रोहिताश्व को पुनर्जीवित कर दिया गया।
📌 राजा हरिश्चंद्र और तारामती को उनका राज्य पुनः प्राप्त हुआ।
📌 ऋषि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को आशीर्वाद दिया और कहा – "सत्य की सदा विजय होती है!"
📌 कहानी से मिली सीख
✔ सत्य और धर्म की राह कठिन होती है, लेकिन उसका फल सर्वोत्तम होता है।
✔ ईमानदारी और कर्तव्य का पालन हर स्थिति में करना चाहिए।
✔ धन, सत्ता और वैभव से अधिक मूल्यवान सत्य और निष्ठा है।
✔ भगवान उन्हीं की परीक्षा लेते हैं, जो उसे सहने योग्य होते हैं।
🙏 "राजा हरिश्चंद्र की कथा हमें सिखाती है कि सत्य की राह कठिन हो सकती है, लेकिन उसकी जीत निश्चित है!" 🙏