मैतायनीय संहिता – कृष्ण यजुर्वेद की एक विशिष्ट शाखा
मैतायनीय संहिता (Maitrāyaṇī Saṁhitā) कृष्ण यजुर्वेद की चार प्रमुख शाखाओं में से एक है। यह संहिता मुख्य रूप से यज्ञों की प्रक्रियाओं, देवताओं की स्तुति, ब्रह्मज्ञान, तथा ध्यान और योग से संबंधित है।
🔹 मैतायनीय संहिता की विशेषताएँ
वर्ग | विवरण |
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संहिता का नाम | मैतायनीय संहिता (Maitrāyaṇī Saṁhitā) |
वेद | कृष्ण यजुर्वेद |
मुख्य ऋषि | मैत्रायण ऋषि और उनके शिष्य |
मुख्य विषय | यज्ञ, कर्मकांड, ब्रह्मज्ञान, ध्यान और योग |
कर्मकांड | सोमयज्ञ, अग्निहोत्र, अश्वमेध, पंचमहायज्ञ |
मुख्य देवता | अग्नि, इंद्र, वरुण, रुद्र (शिव), विष्णु, मरुतगण |
संरचना | 4 कांड (खंड) |
👉 मैतायनीय संहिता का प्रभाव बाद में "मैत्रायणी उपनिषद" में भी देखा जाता है, जो ध्यान और ब्रह्मज्ञान से संबंधित है।
🔹 मैतायनीय संहिता की संरचना
मैतायनीय संहिता को चार कांडों (खंडों) में विभाजित किया गया है। प्रत्येक कांड विभिन्न यज्ञों, मंत्रों, अनुष्ठानों और ब्रह्मज्ञान से संबंधित है।
कांड संख्या | विषय-वस्तु |
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प्रथम कांड | यज्ञों की विधियाँ और देवताओं की स्तुतियाँ |
द्वितीय कांड | अग्निहोत्र, सोमयज्ञ, अश्वमेध यज्ञ |
तृतीय कांड | ध्यान, आत्मज्ञान और मोक्ष |
चतुर्थ कांड | प्रकृति, ब्रह्मांड और आत्मा का स्वरूप |
🔹 मैतायनीय संहिता के प्रमुख विषय
1️⃣ यज्ञों की विधियाँ और मंत्र
इसमें विभिन्न यज्ञों की विस्तृत विधियाँ दी गई हैं:
- अग्निहोत्र यज्ञ – प्रतिदिन किया जाने वाला हवन
- सोमयज्ञ – सोम रस से देवताओं की पूजा
- अश्वमेध यज्ञ – सम्राट द्वारा किया जाने वाला महान यज्ञ
- राजसूय यज्ञ – राजा के राज्याभिषेक के लिए
- पंचमहायज्ञ – गृहस्थ जीवन में किए जाने वाले पाँच दैनिक यज्ञ
🔹 उदाहरण (मैतायनीय संहिता 1.1.1):
"अग्निं दूतं पुरोहितं यज्ञस्य देवं ऋत्विजम्।"
📖 अर्थ: अग्नि देव यज्ञ के माध्यम से देवताओं तक हमारी प्रार्थनाएँ पहुँचाने वाले हैं।
2️⃣ रुद्र की स्तुति (शिवोपासना)
मैतायनीय संहिता में रुद्र (शिव) की स्तुति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
🔹 उदाहरण (मैतायनीय संहिता 2.5.3):
"नमः शम्भवे च मयोभवे च नमः शिवाय च शिवतराय च।"
📖 अर्थ: कल्याणकारी शम्भु, आनंददायक मयोभव और शिव को प्रणाम।
🔹 महत्व:
- रुद्र के विभिन्न रूपों की व्याख्या।
- शिव को संहारक और कल्याणकारी दोनों रूपों में दर्शाया गया है।
3️⃣ ध्यान और आत्मज्ञान
मैतायनीय संहिता केवल कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ध्यान, योग और आत्मज्ञान पर भी विशेष बल दिया गया है।
🔹 उदाहरण (मैतायनीय संहिता 3.2.6):
"अहं ब्रह्मास्मि।"
📖 अर्थ: मैं ब्रह्म हूँ।
🔹 मुख्य विषय:
- आत्मा और ब्रह्म का अद्वैत सिद्धांत।
- योग और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति।
4️⃣ पर्यावरण संरक्षण और पृथ्वी की महिमा
- इस ग्रंथ में पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा दी गई है।
🔹 प्रसिद्ध मंत्र (मैतायनीय संहिता 4.3.3):
"माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।"
📖 अर्थ: पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
🔹 महत्व:
- यह मंत्र पर्यावरण चेतना और पृथ्वी के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
- प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा।
🔹 मैतायनीय संहिता का महत्व
- यज्ञों का मार्गदर्शक – धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों की प्रक्रियाओं का विस्तृत वर्णन।
- शिव भक्ति और रुद्र स्तुति – भगवान रुद्र (शिव) की स्तुति का विशद विवरण।
- ध्यान और ब्रह्मज्ञान – योग, आत्मा और ब्रह्म की अवधारणाएँ।
- पर्यावरण संरक्षण – प्रकृति के प्रति सम्मान और पृथ्वी संरक्षण की प्रेरणा।
- समाज व्यवस्था – सत्य, धर्म और सामाजिक मूल्यों पर बल।
🔹 निष्कर्ष
- मैतायनीय संहिता कृष्ण यजुर्वेद की एक महत्वपूर्ण शाखा है।
- इसमें यज्ञ, रुद्र स्तुति, ब्रह्मज्ञान, ध्यान और पर्यावरण संरक्षण के विषय सम्मिलित हैं।
- यह संहिता धर्म, कर्मकांड, ध्यान और योग का संतुलन प्रस्तुत करती है।
- यह आध्यात्मिक साधकों और कर्मकांड विशेषज्ञों दोनों के लिए उपयोगी ग्रंथ है।