शनिवार, 7 जून 2025

भगवद्गीता: अध्याय 16 - दैवासुरसम्पद्विभाग योग

भगवद गीता – षोडश अध्याय: दैवासुरसम्पद्विभाग योग

(Daivasura Sampad Vibhaga Yoga – The Yoga of the Division Between the Divine and the Demonic Qualities)

📖 अध्याय 16 का परिचय

दैवासुरसम्पद्विभाग योग गीता का सोलहवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण दैवी (सात्विक) और आसुरी (राजसी-तामसी) गुणों का भेद बताते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि जो व्यक्ति दैवी गुणों को अपनाता है, वह मोक्ष (मुक्ति) की ओर बढ़ता है, जबकि आसुरी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति अधोगति (पतन) को प्राप्त करता है।

👉 मुख्य भाव:

  • दैवी सम्पद (सात्विक गुण) – आत्मोन्नति और मोक्ष का मार्ग।
  • आसुरी सम्पद (राजसिक और तामसिक गुण) – पतन और बंधन का कारण।
  • धर्मशास्त्र के अनुसार जीवन जीने का महत्व।

📖 श्लोक (16.6):

"द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु॥"

📖 अर्थ: हे अर्जुन! इस संसार में दो प्रकार के जीव होते हैं – दैवी और आसुरी। मैंने पहले दैवी स्वभाव को विस्तार से बताया, अब आसुरी स्वभाव को सुनो।

👉 यह अध्याय हमें सिखाता है कि हमें दैवी गुणों को अपनाना चाहिए और आसुरी प्रवृत्तियों से बचना चाहिए।


🔹 1️⃣ दैवी गुण – जो व्यक्ति मोक्ष की ओर ले जाते हैं

📌 1. दैवी सम्पद के गुण (Verses 1-3)

  • श्रीकृष्ण बताते हैं कि दैवी स्वभाव वाले लोग सत्य, अहिंसा, करुणा और आत्मसंयम से युक्त होते हैं।
  • ये गुण व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

📖 श्लोक (16.2-3):

"अहिंसा सत्यं अक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्॥"

"तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥"

📖 अर्थ: अहिंसा, सत्य, क्रोध का अभाव, त्याग, शांति, सरलता, करुणा, लोभ-रहितता, कोमलता, लज्जा, धैर्य, क्षमा, स्वच्छता, द्वेषरहितता और अभिमान का अभाव – ये सभी दैवी गुण हैं।

👉 ऐसे व्यक्ति ईश्वर के प्रिय होते हैं और मोक्ष के अधिकारी बनते हैं।


🔹 2️⃣ आसुरी गुण – जो व्यक्ति को पतन की ओर ले जाते हैं

📌 2. आसुरी सम्पद के लक्षण (Verses 4-5)

  • आसुरी स्वभाव के लोग अहंकारी, क्रूर, दंभी, असत्य भाषी, और धर्मविहीन होते हैं।
  • ये गुण व्यक्ति को अधोगति (नरक) की ओर ले जाते हैं।

📖 श्लोक (16.4):

"दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदामासुरीम्॥"

📖 अर्थ: दिखावा, अहंकार, घमंड, क्रोध, कठोर वाणी, और अज्ञान – ये सभी आसुरी गुण हैं।

👉 ऐसे लोग अधर्म में लिप्त रहते हैं और पुनर्जन्म के चक्र में फंसे रहते हैं।


🔹 3️⃣ आसुरी प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों का व्यवहार

📌 3. आसुरी व्यक्ति किस प्रकार सोचते और कार्य करते हैं? (Verses 7-20)

  • ये लोग धर्म को नहीं मानते और अपने मन की इच्छाओं के अनुसार कार्य करते हैं।
  • इन्हें न ही अच्छे कर्मों में रुचि होती है, न ही पवित्रता में।

📖 श्लोक (16.8):

"असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्॥"

📖 अर्थ: आसुरी स्वभाव वाले लोग कहते हैं कि यह संसार झूठा, आधारहीन और ईश्वर-विहीन है। वे मानते हैं कि यह केवल वासना और संयोग का परिणाम है।

📖 श्लोक (16.13-15):

"इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्॥"

📖 अर्थ: वे सोचते हैं – "आज मैंने यह पा लिया, कल और पाऊँगा। मेरे पास इतना धन है, और भी होगा।"

👉 ऐसे व्यक्ति लोभ और अहंकार में अंधे हो जाते हैं और धर्म से दूर हो जाते हैं।


🔹 4️⃣ आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों की गति (पतन)

📌 4. आसुरी स्वभाव वाले लोगों का भविष्य क्या होता है? (Verses 16-20)

  • ये लोग जन्म-जन्मांतर तक अधोगति को प्राप्त होते हैं।
  • भगवान कहते हैं कि ऐसे लोग बार-बार जन्म लेते हैं और निम्न योनियों में गिरते जाते हैं।

📖 श्लोक (16.20):

"आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्॥"

📖 अर्थ: जो लोग आसुरी स्वभाव के होते हैं, वे जन्म-जन्मांतर तक अधोगति (नरक) में जाते रहते हैं और मुझे (भगवान) प्राप्त नहीं कर पाते।

👉 इसलिए, आसुरी गुणों से बचना आवश्यक है।


🔹 5️⃣ शास्त्रानुसार आचरण करना आवश्यक है

📌 5. धर्मशास्त्र का पालन क्यों आवश्यक है? (Verses 21-24)

  • काम (वासना), क्रोध और लोभ – ये तीन नरक के द्वार हैं, इनसे बचना चाहिए।
  • जो व्यक्ति धर्मशास्त्रों को छोड़कर मनमाने तरीके से कार्य करता है, वह विनाश को प्राप्त होता है।

📖 श्लोक (16.23):

"यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्॥"

📖 अर्थ: जो व्यक्ति शास्त्रों को छोड़कर अपनी इच्छानुसार कार्य करता है, वह न सिद्धि प्राप्त करता है, न सुख, और न ही परम गति।

👉 इसलिए, हमें शास्त्रों के अनुसार जीवन जीना चाहिए।


🔹 6️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ

📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. दैवी गुणों को अपनाने से मोक्ष प्राप्त होता है।
2. आसुरी प्रवृत्तियाँ व्यक्ति को अधोगति की ओर ले जाती हैं।
3. लोभ, अहंकार, क्रोध, और अधर्म से बचना चाहिए।
4. धर्मशास्त्रों के अनुसार आचरण करने से ही जीवन सफल होता है।
5. भगवान केवल उन्हीं की सहायता करते हैं, जो सच्चे मन से भक्ति करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलते हैं।


🔹 निष्कर्ष

1️⃣ दैवी और आसुरी स्वभाव वाले व्यक्तियों में मूल अंतर उनके गुण और आचरण से होता है।
2️⃣ जो व्यक्ति अहंकार, क्रोध और लोभ को छोड़कर सत्य, करुणा और भक्ति का पालन करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
3️⃣ जो धर्मशास्त्रों को छोड़कर अधर्म के मार्ग पर चलता है, वह पतन को प्राप्त करता है।
4️⃣ हमें अपने जीवन में दैवी गुणों को अपनाकर, भगवान की भक्ति और सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए।

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