भगवद गीता – चतुर्दश अध्याय: गुणत्रयविभाग योग
(Gunatraya Vibhaga Yoga – The Yoga of the Division of the Three Gunas)
📖 अध्याय 14 का परिचय
गुणत्रयविभाग योग गीता का चौदहवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण प्रकृति के तीन गुणों (सत्व, रजस और तमस) की विशेषताओं और उनके प्रभावों को समझाते हैं। वे बताते हैं कि इन गुणों से ऊपर उठकर परमात्मा की भक्ति में स्थित रहना ही मोक्ष का मार्ग है।
👉 मुख्य भाव:
- तीन गुण – सत्व, रजस और तमस।
- गुणों के प्रभाव और उनके आधार पर व्यक्ति का आचरण।
- गुणातीत (गुणों से परे) बनकर मोक्ष प्राप्त करना।
📖 श्लोक (14.20):
"गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते॥"
📖 अर्थ: जो जीव इन तीनों गुणों (सत्व, रजस और तमस) से परे हो जाता है, वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और सभी दुखों से मुक्त होकर अमृत (मोक्ष) को प्राप्त करता है।
👉 यह अध्याय हमें सिखाता है कि हमें सत्वगुण को अपनाकर, रजोगुण और तमोगुण से बचते हुए, भक्ति के द्वारा इन गुणों से ऊपर उठना चाहिए।
🔹 1️⃣ श्रीकृष्ण का उपदेश – परम ज्ञान
📌 1. भगवान का सर्वोच्च ज्ञान (Verses 1-3)
- श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह ज्ञान सबसे श्रेष्ठ है, जिससे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
- परमात्मा संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं।
📖 श्लोक (14.3):
"मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत॥"
📖 अर्थ: मेरा महत् ब्रह्म (प्रकृति) गर्भधारण करती है, और उसमें मैं जीवों का बीज डालता हूँ। इस प्रकार संपूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति होती है।
👉 भगवान स्वयं सृष्टि के पालनहार और सभी जीवों के मूल कारण हैं।
🔹 2️⃣ प्रकृति के तीन गुण – सत्व, रजस, और तमस
📌 2. तीनों गुणों का वर्णन (Verses 5-9)
भगवान बताते हैं कि प्रकृति के तीन गुण होते हैं –
गुण | स्वरूप | प्रभाव |
---|---|---|
सत्व (Satva) | प्रकाश, ज्ञान और शुद्धता | व्यक्ति को ज्ञान, शांति, और आनंद की ओर ले जाता है। |
रजस (Rajas) | गतिविधि, इच्छा और भोग | व्यक्ति को लालसा, कर्म, और संघर्ष की ओर ले जाता है। |
तमस (Tamas) | अज्ञान, जड़ता और आलस्य | व्यक्ति को आलस्य, भ्रम और अज्ञानता की ओर ले जाता है। |
📖 श्लोक (14.6):
"तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ॥"
📖 अर्थ: सत्वगुण निर्मल (शुद्ध) है, ज्ञान और प्रकाश देने वाला है। यह व्यक्ति को सुख और ज्ञान से बाँधता है।
📖 श्लोक (14.7):
"रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्॥"
📖 अर्थ: रजोगुण इच्छाओं और आसक्ति से उत्पन्न होता है और यह व्यक्ति को कर्मों में बाँधता है।
📖 श्लोक (14.8):
"तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत॥"
📖 अर्थ: तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न होता है और यह प्रमाद (लापरवाही), आलस्य और निद्रा के द्वारा जीव को बाँधता है।
👉 तीनों गुण व्यक्ति के स्वभाव और कर्मों को नियंत्रित करते हैं।
🔹 3️⃣ मृत्यु के समय गुणों का प्रभाव
📌 3. मृत्यु के समय जो गुण प्रधान होता है, वही अगले जन्म को निर्धारित करता है (Verses 14-15)
- सत्व में मरने वाला व्यक्ति दिव्य लोकों को प्राप्त करता है।
- रजस में मरने वाला व्यक्ति पुनः कर्मशील जन्म लेता है।
- तमस में मरने वाला व्यक्ति निम्न योनि (जानवर, कीट, आदि) में जन्म लेता है।
📖 श्लोक (14.14):
"यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते॥"
📖 अर्थ: जब कोई व्यक्ति सत्वगुण में मृत्यु को प्राप्त करता है, तो वह उच्च लोकों को प्राप्त करता है।
👉 इसलिए, हमें अपने जीवन में सत्वगुण को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
🔹 4️⃣ गुणों से ऊपर उठकर मोक्ष प्राप्ति
📌 4. कैसे इन गुणों से मुक्त हुआ जाए? (Verses 19-20)
- श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति सत्व, रजस, और तमस के प्रभाव से मुक्त हो जाता है, वही मोक्ष को प्राप्त करता है।
- यह मुक्ति केवल भक्ति योग के माध्यम से संभव है।
📖 श्लोक (14.19):
"नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति॥"
📖 अर्थ: जब कोई यह समझता है कि कर्मों के कर्ता केवल गुण हैं और वह स्वयं उनसे परे है, तो वह मेरी दिव्य अवस्था को प्राप्त करता है।
👉 गुणों से परे जाकर व्यक्ति भगवान में स्थित हो सकता है।
🔹 5️⃣ गुणातीत बनने का मार्ग
📌 5. गुणातीत (गुणों से परे) व्यक्ति के लक्षण (Verses 22-25)
- जो व्यक्ति सुख-दुःख में समान रहता है, मोह-माया से मुक्त होता है, और न भोगों में आसक्त होता है, न त्याग करता है, वह गुणातीत है।
📖 श्लोक (14.22-23):
"प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति॥"
📖 अर्थ: जो प्रकाश (सत्व), कर्म (रजस) और मोह (तमस) के होने पर द्वेष नहीं करता और उनके हटने पर भी उनकी इच्छा नहीं करता, वह गुणों से परे हो जाता है।
👉 गुणों से ऊपर उठने के लिए व्यक्ति को आत्मसंयम और भक्ति का पालन करना चाहिए।
🔹 6️⃣ भगवान में स्थित व्यक्ति ही सच्चा मुक्त आत्मा है
📌 6. जो भगवान की शरण में आता है, वह गुणों से मुक्त हो जाता है (Verse 26)
📖 श्लोक (14.26):
"मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते॥"
📖 अर्थ: जो व्यक्ति अनन्य भक्ति के द्वारा मेरी शरण में आता है, वह इन तीनों गुणों को पार करके ब्रह्म-स्थिति को प्राप्त करता है।
👉 इसका अर्थ है कि गुणों से मुक्त होने का सर्वोत्तम मार्ग भक्ति योग है।
🔹 7️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ
✅ 1. सत्व, रजस और तमस – ये तीनों गुण हमारे कर्मों और स्वभाव को नियंत्रित करते हैं।
✅ 2. मृत्यु के समय जो गुण प्रधान होगा, उसी के अनुसार अगला जन्म होगा।
✅ 3. इन गुणों से परे जाकर ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
✅ 4. भक्ति योग के द्वारा ही व्यक्ति सच्ची मुक्ति (गुणातीत अवस्था) को प्राप्त कर सकता है।