शनिवार, 4 जनवरी 2025

भगवद्गीता: अध्याय 11 - विश्वरूपदर्शन योग

भगवद गीता – एकादश अध्याय: विश्वरूपदर्शन योग

(Vishwaroopa Darshana Yoga – The Yoga of the Vision of the Universal Form)

📖 अध्याय 11 का परिचय

विश्वरूपदर्शन योग गीता का ग्यारहवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना विश्वरूप (Cosmic Form) दिखाते हैं। इस रूप में अर्जुन को संपूर्ण ब्रह्मांड, अनगिनत देवता, काल (समय), सृजन और संहार की शक्तियाँ, और ब्रह्मांड की अनंतता एक साथ दिखाई देती हैं।

👉 मुख्य भाव:

  • भगवान के विश्वरूप का दर्शन।
  • अर्जुन की स्तुति और भय।
  • भगवान की महिमा और उनकी भक्ति का महत्व।

📖 श्लोक (11.7):

"इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि॥"

📖 अर्थ: हे अर्जुन! इस शरीर में एक स्थान पर स्थित संपूर्ण जगत को, चर और अचर सहित, देखो और जो कुछ और देखना चाहते हो, वह भी देखो।

👉 यह अध्याय भगवान की अपार शक्ति, उनकी सर्वव्यापकता और भक्ति के महत्व को दर्शाता है।


🔹 1️⃣ अर्जुन की जिज्ञासा और भगवान का उत्तर

📌 1. अर्जुन का अनुरोध – भगवान को उनके दिव्य स्वरूप में देखना चाहता हूँ (Verses 1-4)

  • अर्जुन कहते हैं कि उन्होंने भगवान की महिमा को समझ लिया है, लेकिन अब वे भगवान को उनके वास्तविक दिव्य स्वरूप में देखना चाहते हैं।
  • वे श्रीकृष्ण से अपने विश्वरूप को प्रकट करने का अनुरोध करते हैं।

📖 श्लोक (11.3):

"मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्॥"

📖 अर्थ: हे प्रभु! यदि आप मानते हैं कि मैं आपको आपके दिव्य रूप में देख सकता हूँ, तो कृपया मुझे अपना अविनाशी स्वरूप दिखाइए।

👉 अर्जुन अब श्रीकृष्ण को केवल मित्र और सारथी के रूप में नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के परम स्वामी के रूप में देखना चाहते हैं।


🔹 2️⃣ भगवान अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं

📌 2. श्रीकृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं (Verses 5-8)

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि सामान्य आँखों से उनके विश्वरूप को देखना संभव नहीं है।
  • वे अर्जुन को दिव्य दृष्टि (Divine Vision) प्रदान करते हैं, जिससे वह भगवान का अद्भुत स्वरूप देख सके।

📖 श्लोक (11.8):

"न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्॥"

📖 अर्थ: तू मुझे अपनी साधारण आँखों से नहीं देख सकता। इसलिए मैं तुझे दिव्य दृष्टि प्रदान करता हूँ, जिससे तू मेरी ईश्वरीय शक्ति को देख सके।

👉 भगवान को देखने के लिए केवल बाहरी आँखें नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि (भक्ति और श्रद्धा) आवश्यक होती है।


🔹 3️⃣ भगवान के विश्वरूप का अद्भुत दर्शन

📌 3. अर्जुन का विश्वरूप दर्शन (Verses 9-14)

  • अर्जुन भगवान के विराट रूप को देखता है, जिसमें अनगिनत मुख, हाथ, दिव्य आभूषण, और तेजस्वी प्रकाश दिखाई देता है।
  • इस रूप में संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान के शरीर में समाया हुआ दिखता है।

📖 श्लोक (11.12):

"दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥"

📖 अर्थ: यदि आकाश में हजारों सूर्यों की चमक एक साथ प्रकट हो जाए, तो वह उस महान आत्मा (भगवान) के तेज के समान होगी।

👉 भगवान का रूप इतना तेजस्वी है कि वह हजारों सूर्यों के प्रकाश से भी अधिक दिव्य है।


🔹 4️⃣ अर्जुन का भय और प्रार्थना

📌 4. अर्जुन भयभीत होकर भगवान से प्रार्थना करता है (Verses 15-31)

  • अर्जुन भगवान के इस महाविश्वरूप को देखकर अत्यंत भयभीत हो जाता है।
  • वह देखता है कि भीष्म, द्रोण, कर्ण और कौरव योद्धा भगवान के मुख में समा रहे हैं, जैसे पतंगे अग्नि में जलने के लिए जाते हैं।

📖 श्लोक (11.29):

"यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति॥"

📖 अर्थ: जैसे अनेक नदियाँ वेग से समुद्र में गिरती हैं, वैसे ही ये वीर योद्धा आपके जलते हुए मुख में समा रहे हैं।

👉 भगवान काल (समय) के रूप में समस्त सृष्टि का संचालन कर रहे हैं, और उनकी इच्छा से ही सब कुछ हो रहा है।


🔹 5️⃣ भगवान का घोषणा – "मैं ही काल हूँ"

📌 5. श्रीकृष्ण का उद्घोष – "मैं ही काल हूँ" (Verse 32)

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे समय (काल) के रूप में सभी का संहार करने के लिए आए हैं।
  • यह युद्ध पहले ही तय हो चुका है, और अर्जुन केवल एक निमित्त (माध्यम) है।

📖 श्लोक (11.32):

"कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः॥"

📖 अर्थ: मैं ही बढ़ा हुआ काल हूँ, जो सभी लोकों का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। तेरे बिना भी ये सभी योद्धा नष्ट हो जाएँगे।

👉 भगवान स्वयं काल के रूप में सभी घटनाओं को नियंत्रित कर रहे हैं।


🔹 6️⃣ अर्जुन की प्रार्थना और भगवान का पुनः सामान्य रूप में आना

📌 6. अर्जुन की स्तुति और भगवान का शांत रूप (Verses 36-50)

  • अर्जुन भगवान के विराट स्वरूप से भयभीत होकर प्रार्थना करता है कि वे पुनः अपने शांत रूप में प्रकट हों।
  • श्रीकृष्ण अपनी करुणा से अर्जुन को पुनः अपने चतुर्भुज रूप और फिर अपने सामान्य द्विभुज रूप में दर्शन देते हैं।

📖 श्लोक (11.50):

"इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा
स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं
भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा॥"

📖 अर्थ: ऐसा कहकर वासुदेव (श्रीकृष्ण) ने पुनः अपना मूल रूप अर्जुन को दिखाया और भयभीत अर्जुन को सांत्वना दी।

👉 भगवान केवल भक्तों के प्रेम और श्रद्धा के लिए अपने दिव्य रूप प्रकट करते हैं।


🔹 7️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ

📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. भगवान का विश्वरूप संपूर्ण ब्रह्मांड की झलक है।
2. भगवान की शक्ति को समझने के लिए दिव्य दृष्टि आवश्यक है।
3. समय (काल) भगवान का ही रूप है, और सबकुछ उनकी इच्छा से होता है।
4. सच्ची भक्ति करने वालों को भगवान अपने दिव्य स्वरूप का अनुभव कराते हैं।


🔹 निष्कर्ष

1️⃣ विश्वरूपदर्शन योग में श्रीकृष्ण अपने दिव्य विराट रूप को प्रकट करते हैं।
2️⃣ भगवान ही सृजन, पालन और संहार के अधिपति हैं।
3️⃣ समय (काल) के रूप में भगवान सभी घटनाओं का संचालन करते हैं।
4️⃣ भगवान को केवल सच्ची भक्ति से ही अनुभव किया जा सकता है।

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