भागवत गीता: अध्याय 1 (अर्जुनविषादयोग) युद्ध का प्रारंभ (श्लोक 1-11) का अर्थ और व्याख्या दी गई है:
श्लोक 1
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥
अर्थ:
धृतराष्ट्र ने पूछा, "धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा रखने वाले मेरे पुत्र और पांडव क्या कर रहे हैं, हे संजय?"
व्याख्या:
धृतराष्ट्र इस श्लोक में अपनी चिंता और जिज्ञासा व्यक्त करते हैं। "धर्मक्षेत्र" (पवित्र भूमि) शब्द यह संकेत देता है कि युद्ध धर्म और अधर्म के बीच होगा। वह जानना चाहते हैं कि क्या उनके पुत्र धर्म का पालन करेंगे।
श्लोक 2
सञ्जय उवाच
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत्॥
अर्थ:
संजय ने कहा, "तब दुर्योधन ने पांडवों की सेना को युद्ध के लिए व्यवस्थित देखकर, अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर ये शब्द कहे।"
व्याख्या:
संजय युद्ध के मैदान का वर्णन करते हैं। दुर्योधन, जो युद्ध की तैयारी देख रहा है, अपने सेनापति और गुरु द्रोणाचार्य से बात करता है।
श्लोक 3
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥
अर्थ:
"हे आचार्य! देखिए, पांडवों की इस विशाल सेना को, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने व्यवस्थित किया है।"
व्याख्या:
दुर्योधन पांडवों की सेना को देखकर अपनी चिंता व्यक्त करता है। वह गुरु द्रोणाचार्य को यह याद दिलाता है कि धृष्टद्युम्न उनके ही शिष्य थे।
श्लोक 4-6
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः॥
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥
अर्थ:
"इस सेना में भीम और अर्जुन जैसे वीर महाबली हैं। यहाँ युयुधान, विराट, द्रुपद, धृष्टकेतु, काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज, शैब्य, युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्र हैं, ये सभी महारथी हैं।"
व्याख्या:
दुर्योधन पांडवों की सेना के योद्धाओं की प्रशंसा करता है, जो युद्ध में कुशल और वीर हैं। यह उसके मन में पांडवों की ताकत के प्रति आशंका प्रकट करता है।
श्लोक 7
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥
अर्थ:
"हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! अब आप हमारी सेना के प्रमुख योद्धाओं को भी सुनिए, जिनकी जानकारी मैं आपको दे रहा हूँ।"
व्याख्या:
दुर्योधन अब अपनी सेना के वीर योद्धाओं का वर्णन करता है, यह दर्शाने के लिए कि उनकी सेना भी शक्तिशाली है।
श्लोक 8-9
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥
अर्थ:
"आप (द्रोणाचार्य), भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण, और सौमदत्त जैसे योद्धा मेरी ओर से युद्ध के लिए तैयार हैं। इसके अलावा, अन्य कई शूरवीर भी हैं, जो मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान देने को तत्पर हैं।"
व्याख्या:
दुर्योधन अपने पक्ष के प्रमुख योद्धाओं और उनकी युद्ध-कुशलता पर प्रकाश डालता है। यह उसके आत्मविश्वास को दिखाता है।
श्लोक 10
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्॥
अर्थ:
"हमारी सेना, जिसकी रक्षा भीष्म कर रहे हैं, असीमित है। पांडवों की सेना, जिसकी रक्षा भीम कर रहे हैं, सीमित है।"
व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना को पांडवों की तुलना में अधिक शक्तिशाली मानता है। लेकिन उसका यह आत्मविश्वास उसकी अहंकार प्रवृत्ति को दर्शाता है।
श्लोक 11
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥
अर्थ:
"आप सब अपने-अपने स्थान पर स्थित रहते हुए भीष्म पितामह की रक्षा करें।"
व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना को आदेश देता है कि भीष्म पितामह की सुरक्षा सुनिश्चित करें, क्योंकि वह उनकी सेना का मुख्य आधार हैं।