🔱 नेति-नेति (यह नहीं, यह नहीं) – आत्मज्ञान की रहस्यमयी विधि 🔱
नेति-नेति (Neti-Neti) एक अद्वैत वेदांत की ध्यान विधि है, जो हमें यह समझने में मदद करती है कि हम क्या नहीं हैं। जब हम हर असत्य को नकार देते हैं, तो जो बचता है, वह परम सत्य (ब्रह्म) होता है।
🧘 "नेति-नेति" क्या है?
"नेति-नेति" संस्कृत के दो शब्दों से बना है –
✔️ "ने" = नहीं
✔️ "ति" = यह
अर्थात, "यह नहीं, यह नहीं" – जो कुछ भी बदले, नष्ट हो, सीमित हो, वह "मैं" नहीं हो सकता।
👉 यह विधि हमें यह सिखाती है कि हम शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार, भावनाएँ – कुछ भी नहीं हैं। हम केवल शुद्ध आत्मा हैं।
🔥 नेति-नेति की ध्यान विधि
1️⃣ मैं शरीर नहीं हूँ
- शरीर समय के साथ बदलता है – बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
- यदि मैं शरीर होता, तो मैं हमेशा एक जैसा रहता।
- इसलिए, "नेति-नेति" – मैं शरीर नहीं हूँ।
2️⃣ मैं मन (विचार) नहीं हूँ
- मन में हर क्षण नए विचार आते-जाते रहते हैं।
- कभी खुशी, कभी दुःख, कभी क्रोध, कभी शांति – सब बदलता है।
- इसलिए, "नेति-नेति" – मैं मन नहीं हूँ।
3️⃣ मैं बुद्धि नहीं हूँ
- बुद्धि तर्क करती है, निर्णय लेती है, लेकिन यह भी बदलती रहती है।
- जब ज्ञान बढ़ता है, तो पुराने विचार बदल जाते हैं।
- इसलिए, "नेति-नेति" – मैं बुद्धि नहीं हूँ।
4️⃣ मैं अहंकार नहीं हूँ
- "मैं" कहने वाला अहंकार भी बदलता है – कभी गर्व, कभी लज्जा, कभी घमंड।
- यदि यह मेरा वास्तविक स्वरूप होता, तो यह हमेशा स्थिर रहता।
- इसलिए, "नेति-नेति" – मैं अहंकार नहीं हूँ।
5️⃣ मैं अनुभव करने वाला नहीं हूँ
- हम कहते हैं – "मुझे आनंद आया", "मुझे दुःख हुआ"।
- आनंद और दुःख आते-जाते हैं, लेकिन जो उन्हें देख रहा है, वह स्थिर है।
- इसलिए, "नेति-नेति" – मैं यह भी नहीं हूँ।
🌟 फिर मैं कौन हूँ?
जब हम सब कुछ नकार देते हैं –
✅ न शरीर
✅ न मन
✅ न बुद्धि
✅ न अहंकार
तब जो बचता है, वह शुद्ध चैतन्य (Pure Consciousness) है। वही "सच्चिदानंद" (Sat-Chit-Ananda) स्वरूप आत्मा है, जो जन्म-मरण से परे है।
🕉 नेति-नेति का अंतिम बोध
👉 "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ही ब्रह्म हूँ)।
👉 "सोऽहम्" (मैं वही हूँ – जो ब्रह्म है)।
💡 आत्मा नष्ट नहीं होती, वह शुद्ध, अविनाशी, अनंत है। यही आत्मज्ञान का चरम सत्य है।