शनिवार, 3 जुलाई 2021

रवींद्रनाथ टैगोर

 रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) भारत के महानतम साहित्यकार, कवि, संगीतकार, दार्शनिक और विचारक थे। वे एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता हैं और भारतीय साहित्य और संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में उनकी भूमिका अद्वितीय है। रवींद्रनाथ टैगोर को "गुरुदेव" के नाम से भी जाना जाता है।


जीवन परिचय:

  • जन्म: 7 मई 1861
    रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म पश्चिम बंगाल के कोलकाता (जोरासांको ठाकुरबाड़ी) में हुआ था। उनका परिवार संपन्न और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध था।
  • मृत्यु: 7 अगस्त 1941
    टैगोर ने अपने जीवन के अंतिम दिन कोलकाता में बिताए।

वे बचपन से ही बेहद कुशाग्र बुद्धि के थे। उनके परिवार में साहित्य, कला और संगीत का गहरा प्रभाव था, जिसने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया। उन्हें औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा स्वाध्याय और प्रकृति के अध्ययन में अधिक रुचि थी।


रचनाएँ और साहित्यिक योगदान:

रवींद्रनाथ टैगोर ने कविता, उपन्यास, गीत, नाटक, और चित्रकला के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। उनकी रचनाएँ मानवता, प्रेम, प्रकृति, और आध्यात्मिकता की गहराई को उजागर करती हैं।

प्रमुख कृतियाँ:

  1. गीतांजलि (Gitanjali):

    • यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है, जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला।
    • इसमें भक्ति, आध्यात्मिकता, और मानवता का सुंदर चित्रण है।
  2. गोरा (Gora):

    • यह एक सामाजिक और राजनीतिक उपन्यास है, जिसमें भारतीय समाज की समस्याओं और सांस्कृतिक पहचान को लेकर चर्चा की गई है।
  3. घरे-बाइरे (The Home and the World):

    • यह उपन्यास स्वतंत्रता संग्राम और व्यक्तिगत मानवीय संबंधों के संघर्ष को दर्शाता है।
  4. काबुलीवाला (Kabuliwala):

    • यह एक मार्मिक कहानी है, जो एक पिता और बेटी के रिश्ते को छूती है।
  5. राष्ट्रगान:

    • रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान "जन गण मन" और बांग्लादेश का राष्ट्रगान "आमार सोनार बांग्ला" लिखा। यह एक अद्वितीय उपलब्धि है।

अन्य योगदान:

  • टैगोर ने लगभग 2,000 गीत लिखे, जिन्हें "रवींद्र संगीत" के नाम से जाना जाता है। ये गीत आज भी बंगाली संस्कृति में गहराई से रचे-बसे हैं।
  • उनकी कविताओं और गीतों में प्रकृति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है।

शिक्षाविद के रूप में योगदान:

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1921 में पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में "विश्वभारती विश्वविद्यालय" की स्थापना की।

  • यह विश्वविद्यालय गुरुकुल पद्धति और आधुनिक शिक्षा का मिश्रण था।
  • टैगोर का मानना था कि शिक्षा को प्रकृति के करीब होना चाहिए और इसमें रचनात्मकता का समावेश होना चाहिए।
  • उनका उद्देश्य एक ऐसा केंद्र बनाना था, जहाँ भारतीय और पश्चिमी संस्कृति का समन्वय हो सके।

दर्शन और विचारधारा:

  1. मानवता और सार्वभौमिकता:

    • टैगोर ने मानवता को धर्म और जाति से ऊपर रखा। उनका मानना था कि सभी मनुष्य एक ही ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़े हुए हैं।
  2. प्रकृति प्रेम:

    • उनकी कविताएँ और गीत प्रकृति के प्रति उनके अटूट प्रेम को दर्शाते हैं।
  3. स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद:

    • टैगोर ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई, लेकिन वे अंधराष्ट्रवाद के विरोधी थे। उनका मानना था कि मानवता और सार्वभौमिक प्रेम सबसे ऊपर हैं।
  4. आध्यात्मिकता:

    • टैगोर की रचनाओं में आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव था। वे ब्रह्म और आत्मा के अद्वैत दर्शन से प्रेरित थे।

नोबेल पुरस्कार:

  • 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के पहले व्यक्ति बने।
  • उन्हें यह पुरस्कार गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद के लिए दिया गया, जिसमें उनके भक्ति और आध्यात्मिक विचारों की गहराई को पहचाना गया।

प्रमुख घटनाएँ:

  1. नाइटहुड का त्याग:

    • 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया "नाइटहुड" का खिताब वापस कर दिया। यह उनके आत्म-सम्मान और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके विरोध का प्रतीक था।
  2. महात्मा गांधी के साथ संबंध:

    • टैगोर और महात्मा गांधी के बीच गहरा आदर और संवाद था। टैगोर ने गांधी को "महात्मा" की उपाधि दी, और गांधी ने टैगोर को "गुरुदेव" कहा।

टैगोर की कला और चित्रकला:

  • जीवन के अंतिम वर्षों में टैगोर ने चित्रकला में भी योगदान दिया।
  • उनकी पेंटिंग्स में आधुनिकता और कल्पनाशीलता का प्रभाव था।
  • टैगोर की कला में उनकी रचनात्मकता और मौलिकता का अनूठा रूप देखने को मिलता है।

मृत्यु और विरासत:

  • रवींद्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को हुआ।
  • उनकी विरासत केवल भारत तक सीमित नहीं है; उनकी रचनाएँ, विचार, और शिक्षाएँ आज भी पूरी दुनिया में प्रासंगिक हैं।

निष्कर्ष:

रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने साहित्य, कला, संगीत, और शिक्षा के क्षेत्र में भारत को एक नई पहचान दिलाई। वे केवल एक कवि या साहित्यकार नहीं थे, बल्कि एक दार्शनिक, शिक्षाविद, और मानवतावादी भी थे। उनकी रचनाएँ न केवल भारतीय संस्कृति की समृद्धि को दर्शाती हैं, बल्कि मानवता, प्रेम, और आध्यात्मिकता का गहन संदेश भी देती हैं।
उनकी शिक्षाएँ और विचार हमें आज भी प्रेरणा और दिशा प्रदान करते हैं।

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