शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

मोह और आसक्ति से मुक्ति

 मोह और आसक्ति से मुक्ति का महत्व आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जीवन में हम अक्सर मोह और आसक्ति के कारण दुख और तनाव का सामना करते हैं। मोह का अर्थ है, किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से अत्यधिक लगाव और उसका अति-संवेदनशीलता के साथ संबंध, जबकि आसक्ति का अर्थ है किसी वस्तु या व्यक्ति से अनिवार्य जुड़ाव या निर्भरता। इस प्रकार के मानसिक दृष्टिकोण व्यक्ति को सही रास्ते से भटका सकते हैं और उसे सांसारिक दुःख का सामना करना पड़ सकता है।

1. मोह और आसक्ति का अर्थ

  • मोह (Attachment): मोह का मतलब है एक प्रकार का मानसिक या भावनात्मक लगाव जो किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के प्रति अत्यधिक इच्छाओं और अपेक्षाओं का कारण बनता है। यह स्थिति व्यक्ति को भटकने, दुःख, और मानसिक उलझन में डाल सकती है।

  • आसक्ति (Desire): आसक्ति का मतलब है किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति लगाव और उससे जुड़ी भावनाओं में अत्यधिक प्रवृत्ति। यह जीवन में इच्छाओं की अनियंत्रित बाढ़ पैदा कर सकता है और व्यक्ति को मानसिक कष्ट और असंतोष का सामना करना पड़ सकता है।

2. मोह और आसक्ति का प्रभाव

मोह और आसक्ति के प्रभाव जीवन में बहुत अधिक होते हैं:

  • आंतरिक शांति की हानि: मोह और आसक्ति के कारण मन में असंतुलन और अशांति पैदा होती है, क्योंकि व्यक्ति किसी बाहरी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अत्यधिक अपेक्षाएं और भावनाएं रखता है।
  • दुःख और संताप: जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाता, तो मोह और आसक्ति के कारण उसे दुःख और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
  • स्वतंत्रता का अभाव: मोह और आसक्ति व्यक्ति को अपने भीतर की स्वतंत्रता से वंचित कर देती हैं। यह उसे बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर बना देती हैं, जो आत्म-निर्भरता की भावना को कमजोर करती हैं।
  • अन्यथा स्थिति: मोह और आसक्ति व्यक्ति को अनावश्यक संघर्ष और द्वंद्व में डाल सकती हैं, जिससे वह अपने उद्देश्य से भटक जाता है और जीवन का सही अर्थ नहीं समझ पाता।

3. भगवद्गीता में मोह और आसक्ति का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में मोह और आसक्ति से मुक्ति पाने के उपाय बताए हैं। श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया कि मोह और आसक्ति से मुक्ति पाने से ही व्यक्ति आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है। कुछ महत्वपूर्ण उपदेश इस प्रकार हैं:

  • "मायि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।" (भगवद्गीता 3.30)

    • भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि व्यक्ति को अपने सभी कार्यों को भगवान को समर्पित करना चाहिए। जब हम अपने कर्मों को निस्वार्थ भाव से करते हैं, तो हम मोह और आसक्ति से मुक्त हो जाते हैं। भगवान की इच्छा के अनुसार कार्य करना ही सच्चा कर्म है।
  • "न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।" (भगवद्गीता 18.11)

    • श्री कृष्ण ने बताया कि मोह और आसक्ति का त्याग केवल शारीरिक कर्मों के द्वारा संभव नहीं है, बल्कि हमें मानसिक रूप से भी मोह और आसक्ति का त्याग करना होता है।
  • "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।" (भगवद्गीता 18.66)

    • श्री कृष्ण ने कहा कि सभी प्रकार के मोह और आसक्ति को त्याग कर व्यक्ति को केवल भगवान के प्रति शरणागत होना चाहिए। जब हम अपने मन को पूरी तरह भगवान के प्रति समर्पित कर देते हैं, तो हम मोह और आसक्ति से मुक्त हो जाते हैं।

4. मोह और आसक्ति से मुक्ति के उपाय

मोह और आसक्ति से मुक्ति पाने के लिए विभिन्न आध्यात्मिक और मानसिक उपाय हैं:

1. स्वधर्म का पालन:

स्वधर्म का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को समझ पाता है और जीवन में संतुलन बनाए रखता है। मोह और आसक्ति तब उत्पन्न होते हैं जब हम बाहरी दुनिया और भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते हैं। स्वधर्म के अनुसार कार्य करने से व्यक्ति का मन स्थिर रहता है और वह भ्रमित नहीं होता।

2. निष्काम कर्म:

निष्काम कर्म का अर्थ है अपने कार्यों को बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की चाहत के करना। जब हम अपने कर्मों का फल भगवान को समर्पित करते हैं और अपेक्षाएँ छोड़ देते हैं, तो मोह और आसक्ति का पिंजरा टूट जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में निष्काम कर्म का महत्व बताया है।

3. ध्यान और साधना:

ध्यान और साधना से मन को स्थिरता मिलती है और व्यक्ति अपने भीतर की गहरी इच्छाओं और इच्छाओं से बाहर निकलता है। ध्यान करने से व्यक्ति आत्मिक शांति प्राप्त करता है और मोह-माया के भ्रम से बाहर निकलने में सक्षम होता है।

4. संगति का चयन:

सत्संग (अच्छी संगति) में रहने से मोह और आसक्ति से मुक्त होने में मदद मिलती है। अच्छे और धार्मिक व्यक्तियों की संगति से हम अपने विचारों और भावनाओं को शुद्ध करते हैं।

5. विरक्ति का अभ्यास:

विरक्ति का मतलब है संसारिक विषयों में अति लगाव और आसक्ति से दूर रहना। यह हमें मानसिक रूप से स्वतंत्र और शांत बनाता है। यह हमें मोह-माया से पार पाने में मदद करता है।

6. सकारात्मक दृष्टिकोण:

जब हम अपनी अपेक्षाओं और इच्छाओं को कम करते हैं और जीवन के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो मोह और आसक्ति स्वतः ही घटने लगती हैं। हमें यह समझना चाहिए कि हर चीज का अपना समय और स्थान है और हम जो कुछ भी पाते हैं, वह ईश्वर की कृपा है।

7. भगवान की शरण में रहना:

जब हम भगवान की शरण में रहते हैं और अपने हर कार्य को उनके लिए करते हैं, तो हमारी मोह और आसक्ति की प्रवृत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं। भगवान के प्रति आस्था और प्रेम से हमारा मन शुद्ध होता है और हम सांसारिक मोह-माया से बाहर निकल सकते हैं।

5. निष्कर्ष

मोह और आसक्ति से मुक्ति प्राप्त करना जीवन के उच्चतम उद्देश्य की ओर एक कदम है। जब हम मोह और आसक्ति से मुक्त होते हैं, तो हम मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करते हैं। यह हमें आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है और हमें वास्तविक सुख का अनुभव होता है। भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने मोह और आसक्ति से मुक्ति पाने के उपाय बताए हैं, जो हमें सही दिशा में मार्गदर्शन देते हैं। इसलिए, हमें मोह-माया के बंधनों से मुक्त होकर निष्काम कर्म और ध्यान की ओर अग्रसर होना चाहिए।

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