साधु का अंतिम बलिदान
बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में एक साधु महात्मा रहते थे जिनका नाम तारणी बाबा था। वे एक अत्यंत धार्मिक और तपस्वी व्यक्ति थे। उनका जीवन पूरी तरह से तप, ध्यान और साधना में व्यतीत होता था। तारणी बाबा के बारे में कहा जाता था कि उनका हर शब्द सत्य था, और उनकी शरण में आने वाला कोई भी व्यक्ति कभी खाली हाथ नहीं लौटता था। उनकी शरण में आने वाले लोग न केवल आध्यात्मिक शांति पाते, बल्कि उनकी समस्याओं का भी समाधान होता था।
तारणी बाबा का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि लोग उन्हें अपना मार्गदर्शक मानते थे। उनका सादगीपूर्ण जीवन, त्याग और संयम लोगों को आकर्षित करते थे। वे हमेशा अपनी साधना में लीन रहते थे, और उनके आश्रम में किसी भी प्रकार का ऐश्वर्य या विलासिता नहीं थी। साधना के प्रति उनका समर्पण इतना गहरा था कि वे किसी भी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते थे।
गाँव में कठिनाई और बाबा का बलिदान
एक दिन गाँव में एक भयंकर संकट आ गया। आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ आ गई थी और बहुत से गाँवों में पानी घुस गया था। तारणी बाबा के आश्रम से कुछ ही दूरी पर एक बड़ी नदी थी, और वहाँ बाढ़ का खतरा था। गाँव के लोग डर के मारे घबराए हुए थे, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर बाढ़ का पानी और बढ़ा, तो उनका गाँव पूरी तरह से बह सकता है।
गाँव के लोग तारणी बाबा के पास गए और उनसे मदद की प्रार्थना की। वे जानते थे कि बाबा का आशीर्वाद और दिव्य शक्ति उनके जीवन को बचा सकती है। बाबा ने उन्हें शांतिपूर्वक सुना और कहा,
"मनुष्य का धर्म है अपने कर्तव्यों को निभाना। यह संकट समय की परीक्षा है। हमें इस समय में धैर्य बनाए रखना चाहिए और संयम से काम लेना चाहिए। मैं कुछ समय के लिए ध्यान में लीन रहूँगा, और जब मेरी आवश्यकता होगी, तो मैं अवश्य सहायता करूंगा।"
गाँववालों ने उनकी बात मानी और अपना काम जारी रखा। लेकिन बाढ़ की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई, और अब गाँव के लोग पूरी तरह से डूबने की कगार पर थे। कुछ लोग नदी के किनारे से पानी निकालने की कोशिश कर रहे थे, कुछ तटबंधों को मजबूत करने में लगे थे, लेकिन सभी प्रयास विफल हो रहे थे।
साधु का अंतिम बलिदान
वह रात बाबा के लिए जीवन का सबसे कठिन क्षण था। जब गाँववालों की मदद करना असंभव हो गया और बाढ़ का पानी तेजी से बढ़ने लगा, तारणी बाबा ने फैसला किया कि वह अपनी साधना का अंतिम बलिदान देंगे। बाबा ने गाँववालों को बुलाया और कहा,
"आज से पहले मैंने हमेशा आशीर्वाद देने और मार्गदर्शन करने का कार्य किया है, लेकिन अब मैं अपनी साधना और तपस्या से इस संकट को समाप्त करने के लिए अपना बलिदान दूँगा।"
बाबा ने गाँव के पास एक पर्वत की चोटी पर जाकर बैठने का निर्णय लिया। वहाँ उन्होंने गहरी समाधि में बैठने की तैयारी की और अपनी आत्मा को प्रकृति के साथ जोड़ने का संकल्प लिया। समाधि के दौरान, उन्होंने अपनी आखिरी प्रार्थना की और अपनी पूरी शक्ति और आत्मा को गाँव की सुरक्षा में अर्पित कर दिया। वे मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगे,
"हे परमात्मा! इस गाँव के लोग दीन-हीन हैं, और वे इस संकट से बचने के योग्य नहीं हैं। मैं अपना बलिदान अर्पित करता हूँ, ताकि इस गाँव को बचाया जा सके।"
तारणी बाबा की तपस्या और बलिदान ने उस रात एक चमत्कारी प्रभाव डाला। जैसे ही बाबा की समाधि गहरी हुई, गाँव के पास की नदी का बहाव रुक गया। बाढ़ का पानी धीरे-धीरे कम होने लगा, और नदी के तटबंधों में कोई भी बड़ी दरार नहीं पड़ी। गाँववाले यह देखकर हैरान रह गए और उन्होंने बाबा की महानता को पहचाना।
अगले दिन जब गाँववाले बाबा के पास पहुँचे, तो वे उन्हें समाधि में बैठे हुए पाए। उनका शरीर निष्कलंक था, और उनका चेहरा शांति से भरा हुआ था। वे जान गए कि तारणी बाबा ने अपना अंतिम बलिदान दे दिया था और अब वे इस दुनिया से चले गए थे।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या तारणी बाबा का बलिदान सही था? क्या किसी ने खुद को इस प्रकार बलिदान करना चाहिए, जब उनके द्वारा दी गई मदद से दूसरों को जीवनदान मिल सके?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"तारणी बाबा का बलिदान एक सर्वोच्च आत्मा की निशानी थी। उन्होंने अपनी आत्मा को भगवान और मानवता के लिए अर्पित किया। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि जब किसी की मदद से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है, तो उस व्यक्ति का जीवन सर्वोत्तम होता है। बाबा ने अपने आप को त्याग कर दूसरों की भलाई के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने यह साबित किया कि सच्चा बलिदान तब होता है जब कोई अपने स्वार्थ को त्याग कर समाज की भलाई के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देता है।"
कहानी की शिक्षा
- सच्चा बलिदान तब होता है जब हम अपनी इच्छाओं और स्वार्थ को पूरी तरह से त्यागकर दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं।
- जिंदगी में कभी-कभी हमें ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं जो हमें अपनी आत्मा और समर्पण से करना पड़ते हैं, ताकि दूसरों की सहायता हो सके।
- धर्म, तपस्या और बलिदान के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा आदर्श बनता है और उसकी जीवनशक्ति समाज के लिए एक प्रेरणा बनती है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा बलिदान न केवल अपने स्वार्थ को त्यागने का नाम है, बल्कि दूसरों की मदद करने के लिए अपनी सारी शक्तियों और समर्पण को अर्पित करना है। तारणी बाबा का बलिदान हमेशा के लिए हमारे दिलों में एक अमिट छाप छोड़ता है।