पुत्र और न्याय का निर्णय
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से राज्य में एक न्यायप्रिय राजा राज करता था, जिसका नाम था राजा वीरेंद्र। राजा वीरेंद्र के शासनकाल में राज्य में हर व्यक्ति को समान अधिकार मिलता था और वह हमेशा सत्य और न्याय का पालन करता था। राजा की पत्नी ने एक सुंदर और समझदार पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम था अर्जुन।
अर्जुन बचपन से ही अपने पिता के न्यायप्रिय शासन को देखता और सीखता था। वह अपने पिता से हमेशा यह जानने की कोशिश करता था कि एक राजा कैसे न्याय का पालन करता है और किस तरह से फैसले करता है।
पुत्र का पहला न्यायिक निर्णय
एक दिन अर्जुन को राज्य के एक छोटे से गाँव में न्याय का निर्णय लेने का मौका मिला। गाँव में एक बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया था। एक कुम्हार ने आरोप लगाया कि उसके पड़ोसी ने उसकी बर्तन चोरी कर ली है, जबकि पड़ोसी का कहना था कि उसने कोई चोरी नहीं की। दोनों ने अपनी बातों के पक्ष में कई गवाह पेश किए, लेकिन मामला और जटिल होता जा रहा था।
राजा वीरेंद्र को जब यह बात पता चली, तो उसने अर्जुन से कहा:
"यह तुम्हारा पहला अवसर है, बेटा। अब तुम्हें अपने निर्णय से यह दिखाना होगा कि तुमने किस प्रकार अपने पिता से न्याय का पालन सीखा है।"
अर्जुन को यह सुनकर बहुत गर्व महसूस हुआ, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस मामले का सही हल कैसे निकाले।
अर्जुन का न्यायिक निर्णय
अर्जुन ने दोनों पक्षों को शांतिपूर्वक सुना और फिर उन्होंने कुम्हार और पड़ोसी से एक सवाल किया:
"क्या तुम दोनों को यह नहीं लगता कि एक छोटा सा कदम भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है? यदि तुम दोनों अपने विवाद को सुलझाने के बजाय इस विवाद को और बढ़ाते हो, तो राज्य में अशांति फैल सकती है। तो, क्यों न हम इस विवाद को सुलझाने के लिए एक न्यायपूर्ण और समझदारी से समाधान निकाले?"
कुम्हार और पड़ोसी थोड़ी देर के लिए चुप रहे, फिर अर्जुन ने कहा:
"मैं दोनों को एक अवसर देता हूँ कि वे एक-दूसरे को अपनी वस्तु का सही मूल्य और सम्मान दें। जो वस्तु चोरी हुई है, वह सच्चाई से पहले मूल्यवान नहीं हो सकती। हमें समझना होगा कि समाज में शांति और न्याय से बढ़कर कोई मूल्य नहीं है।"
अर्जुन ने दोनों को समझाया और उन्हें यह सलाह दी कि वे आपसी समझ से इस विवाद को सुलझाएँ और भविष्य में किसी भी प्रकार के झगड़े से बचें।
राजा का आशीर्वाद
राजा वीरेंद्र ने अर्जुन के निर्णय को सुना और उसे बहुत सराहा। राजा ने कहा:
"तुमने साबित कर दिया कि केवल कड़े फैसले ही न्याय का प्रमाण नहीं होते। कभी-कभी, सबसे अच्छा निर्णय वह होता है जो समझदारी, सहानुभूति और शांति से लिया जाए। तुमने दिखाया कि तुम्हारे भीतर मेरे शासन का वास्तविक सार है। तुम भविष्य में एक महान शासक बनोगे।"
राजा वीरेंद्र ने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम्हारा यह निर्णय हर किसी को यह सिखाएगा कि सही न्याय वही है, जो समाज के हित में हो और किसी के साथ अन्याय न हो।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या अर्जुन ने सही निर्णय लिया? क्या कभी किसी विवाद को सुलझाने के लिए कड़े फैसले की बजाय समझदारी और शांति का रास्ता अपनाना उचित है?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"अर्जुन ने बिल्कुल सही निर्णय लिया। कभी-कभी कड़े फैसले केवल समस्याओं को और बढ़ाते हैं, जबकि समझदारी से किया गया निर्णय अधिक प्रभावी होता है। एक शासक का कर्तव्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि समाज में शांति और समझदारी का प्रसार करना भी होता है। अर्जुन ने यह दिखाया कि न्याय का पालन करते हुए भी हम एक रास्ता निकाल सकते हैं, जो सभी के लिए अच्छा हो।"
कहानी की शिक्षा
- सच्चा न्याय वह है, जो समाज के भले के लिए किया जाए, न कि केवल किसी पक्ष को खुश करने के लिए।
- समझदारी और सहानुभूति से निर्णय लेना अधिक प्रभावी होता है, कभी-कभी कड़े फैसले के मुकाबले।
- राजा या शासक का कर्तव्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि समाज में शांति और संतुलन बनाए रखना भी है।