तीन मूर्खों की कहानी
एक समय की बात है, एक नगर में तीन मित्र रहते थे। वे तीनों अत्यंत आलसी और मूर्ख थे, लेकिन हमेशा अपनी बुद्धिमानी का बखान किया करते थे। एक दिन उन्होंने तय किया कि वे अपनी मूर्खता को छिपाने के लिए किसी दूर राज्य में जाकर अपनी किस्मत आजमाएंगे।
प्रथम मूर्ख और उसकी मूर्खता
तीनों मित्र यात्रा पर निकले। रास्ते में उन्होंने एक नदी देखी। पहला मित्र बोला,
"नदी पार करने के लिए पुल की जरूरत है। मैं पानी में जाकर देखता हूं कि पानी ठंडा है या गर्म।"
उसने अपना हाथ नदी में डाला और चिल्लाया,
"अरे, नदी का पानी तो बह रहा है! हमें इसे रोकना होगा, नहीं तो हम पार नहीं कर पाएंगे।"
दूसरे और तीसरे मित्र ने उसकी बात मान ली और तीनों पानी रोकने की कोशिश करने लगे। लेकिन वे असफल रहे और आगे बढ़ गए।
दूसरा मूर्ख और उसकी मूर्खता
आगे चलकर उन्हें एक खेत में कुछ घास दिखी। दूसरा मित्र बोला,
"हमें इस घास को काटकर अपने साथ ले जाना चाहिए। अगर हमारी परछाई इस पर पड़ी, तो यह बर्बाद हो जाएगी।"
पहला और तीसरा मित्र उसकी बात मान गए और घास काटने में लग गए। जब किसान ने यह देखा, तो उसने तीनों को डांटा और वहां से भगा दिया।
तीसरा मूर्ख और उसकी मूर्खता
आगे बढ़ते हुए वे एक गांव पहुंचे। वहां तीसरा मित्र बोला,
"देखो, यह गांव तो बहुत बड़ा है। हमें अपने नाम की घोषणा करनी चाहिए, ताकि सभी लोग हमें पहचान सकें।"
तीनों मित्र गांव के बीचोंबीच खड़े होकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे,
"हम तीन महान व्यक्ति हैं! हमारी मदद करो!"
गांववालों ने सोचा कि वे पागल हैं और उन्हें वहां से भगा दिया।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"इन तीनों मूर्खों में सबसे बड़ा मूर्ख कौन था? और क्यों?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"तीनों ही मूर्ख थे, लेकिन सबसे बड़ा मूर्ख पहला मित्र था। क्योंकि नदी का पानी रोकने की कोशिश करना न केवल असंभव है, बल्कि सबसे हास्यास्पद भी है। दूसरे और तीसरे मित्र की मूर्खता भी बड़ी थी, लेकिन पहले मित्र की मूर्खता सबसे अधिक थी।"
कहानी की शिक्षा
- बुद्धिमत्ता और मूर्खता का अंतर समझें।
- संकट का सामना करने से पहले सोच-समझकर कार्य करें।
- बिना सोचे-समझे किए गए कार्य केवल अपमान और हानि का कारण बनते हैं।