शनिवार, 15 सितंबर 2018

जैमिनीय संहिता – सामवेद की एक विशेष शाखा

 

जैमिनीय संहिता – सामवेद की एक विशेष शाखा

जैमिनीय संहिता (Jaiminīya Saṁhitā) सामवेद की एक प्रमुख और प्राचीन शाखा है। इसे तालवकार संहिता (Talavakāra Saṁhitā) भी कहा जाता है। यह सामवेद की अन्य शाखाओं से कई पाठ्य, ध्वनि-संरचना, और उच्चारण में भिन्न है। जैमिनीय संहिता मुख्य रूप से दक्षिण भारत (तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश) में अधिक प्रचलित है।


🔹 जैमिनीय संहिता की विशेषताएँ

वर्गविवरण
संहिता का नामजैमिनीय संहिता (Jaiminīya Saṁhitā) / तालवकार संहिता (Talavakāra Saṁhitā)
वेदसामवेद
मुख्य ऋषिऋषि जैमिनि
मुख्य विषययज्ञीय संगीत, देवताओं की स्तुति, सोमयज्ञ, सामगान
संरचनापुरुष आर्चिक, उत्तरा आर्चिक
मुख्य उपयोगसोमयज्ञ, अग्निहोत्र, अश्वमेध, राजसूय यज्ञ
प्रचलन क्षेत्रमुख्य रूप से तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश

👉 जैमिनीय संहिता दक्षिण भारतीय वेदपाठ परंपरा में विशेष रूप से प्रचलित है।


🔹 जैमिनीय संहिता की संरचना

सामवेद की अन्य शाखाओं की तरह, जैमिनीय संहिता भी दो मुख्य भागों में विभाजित है:

भागविवरण
1️⃣ पुरुष आर्चिक (Puruṣa Ārcika)देवताओं की स्तुति के मंत्र, विशेष रूप से इंद्र, अग्नि और सोम देव के लिए।
2️⃣ उत्तरा आर्चिक (Uttara Ārcika)सोमयज्ञ और अन्य यज्ञों में गाए जाने वाले मंत्र।

🔹 मुख्य देवता:

  • इंद्र – सबसे अधिक स्तुतियाँ इन्हीं के लिए हैं।
  • अग्नि – यज्ञीय अग्नि के देवता।
  • सोम – सोम रस के देवता।
  • वरुण – जल और नैतिकता के देवता।
  • मरुतगण – वायु और तूफान के देवता।

👉 जैमिनीय संहिता विशेष रूप से यज्ञों के दौरान सामगान के लिए बनाई गई थी।


🔹 जैमिनीय संहिता के प्रमुख विषय

1️⃣ सामगान (संगीतमय वेद मंत्र)

  • जैमिनीय संहिता के मंत्रों का सामगान रूप में गान किया जाता था।
  • इसमें विशेष रूप से लय, उच्चारण और संगीत का ध्यान रखा जाता था।
  • इस संहिता के कुछ मंत्र कौथुमीय और राणायणीय संहिता से भिन्न रूप में गाए जाते हैं।

📖 मंत्र उदाहरण (सामवेद – जैमिनीय संहिता)

"इन्द्राय सोमं पिबा त्वमस्माकं वाजे भूयासि।"
📖 अर्थ: हे इंद्र, सोम रस का पान करो और हमें युद्ध में विजयी बनाओ।

👉 यह मंत्र यज्ञों में विशेष रूप से गाया जाता था।


2️⃣ जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण

  • "जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण" (Jaiminīya Upaniṣad Brāhmaṇa) इस संहिता का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • यह सामगान, यज्ञ प्रक्रिया और ध्यान की विधियों पर विशेष ज्ञान प्रदान करता है।
  • इसमें वैदिक ब्रह्मविद्या और रहस्यवादी तत्व भी समाहित हैं।

📖 उद्धरण (जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण)

"सामगायनं ब्रह्मणः स्वरूपम्।"
📖 अर्थ: सामगान ही ब्रह्म का स्वरूप है।

👉 यह ग्रंथ विशेष रूप से ध्यान, योग और वेदांत दर्शन में प्रयोग किया जाता था।


3️⃣ सोमयज्ञ और यज्ञ परंपरा

  • जैमिनीय संहिता के मंत्रों का उपयोग विशेष रूप से सोमयज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, और राजसूय यज्ञ में किया जाता था।
  • सोम रस के शुद्धिकरण और देवताओं को अर्पण करने के लिए यह संहिता महत्वपूर्ण थी।

📖 मंत्र उदाहरण (सामवेद – जैमिनीय संहिता)

"सोमाय स्वाहा। सोमाय इदम् न मम।"
📖 अर्थ: सोम देव को यह अर्पण है, यह मेरे लिए नहीं है।

👉 सोमयज्ञ के दौरान यह मंत्र गाया जाता था।


4️⃣ भारतीय संगीत पर प्रभाव

  • जैमिनीय संहिता की गायन पद्धति से भारतीय शास्त्रीय संगीत को आधार मिला।
  • यह संहिता सप्त स्वर (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) की उत्पत्ति का आधार मानी जाती है।
  • दक्षिण भारत में कर्नाटिक संगीत और उत्तर भारत में हिंदुस्तानी संगीत पर इसका प्रभाव देखा जाता है।

📖 मंत्र उदाहरण (सामवेद – जैमिनीय संहिता)

"ऋषभं चारुदत्तं प्रगाथं।"
📖 अर्थ: यह संगीत और यज्ञ के लिए सुशोभित सामगान है।

👉 जैमिनीय संहिता के उच्चारण और संगीत पद्धति का प्रभाव वेदपाठ परंपरा और भक्ति संगीत में देखा जाता है।


🔹 जैमिनीय संहिता का उपयोग और महत्व

1️⃣ यज्ञों में प्रयोग

  • सोमयज्ञ, अग्निहोत्र, राजसूय यज्ञ और अश्वमेध यज्ञ में प्रयोग।
  • यह यज्ञीय संगीत (सामगान) का आधार है।

2️⃣ भक्ति और ध्यान में उपयोग

  • जैमिनीय संहिता के मंत्रों को ध्यान और भक्ति के लिए गाया जाता था।
  • मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में इनका विशेष महत्व था।

3️⃣ वेदपाठ परंपरा में स्थान

  • यह संहिता विशेष रूप से दक्षिण भारतीय वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा संरक्षित और प्रयोग की जाती थी।
  • सामवेद की अन्य शाखाओं की तुलना में इसमें विशेष ध्वनि परिवर्तन और उच्चारण भिन्नता पाई जाती है।

🔹 निष्कर्ष

  • जैमिनीय संहिता सामवेद की एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ शाखा है, जिसमें यज्ञों और भक्ति के लिए उपयोग किए जाने वाले मंत्र संकलित हैं।
  • यह संहिता मुख्य रूप से दक्षिण भारत में वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा संरक्षित और प्रयोग की जाती है।
  • भारतीय संगीत, भक्ति परंपरा और ध्यान साधना में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
  • आज भी यह संहिता मंदिरों, वेदपाठ, ध्यान और योग में प्रमुख रूप से उपयोग की जाती है।

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