कपिष्ठल संहिता – कृष्ण यजुर्वेद की दुर्लभ शाखा
कपिष्ठल संहिता (Kapiṣṭhala Saṁhitā) कृष्ण यजुर्वेद (Kṛṣṇa Yajurveda) की चार प्रमुख शाखाओं में से एक है। यह शाखा अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है और अन्य तीन शाखाओं (तैत्तिरीय, मैतायनीय, कठ संहिता) की तुलना में कम प्रचलित है।
🔹 कपिष्ठल संहिता की विशेषताएँ
वर्ग | विवरण |
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संहिता का नाम | कपिष्ठल संहिता (Kapiṣṭhala Saṁhitā) |
वेद | कृष्ण यजुर्वेद |
मुख्य ऋषि | कपिष्ठल ऋषि और उनके शिष्य |
मुख्य विषय | यज्ञ, अनुष्ठान, देवताओं की स्तुति, धर्म और नैतिकता |
कर्मकांड | पंचमहायज्ञ, अग्निहोत्र, अश्वमेध, सोमयज्ञ |
मुख्य देवता | अग्नि, इंद्र, वरुण, रुद्र, मरुतगण |
संरचना | कठ संहिता के समान, लेकिन कुछ भिन्नताएँ हैं |
👉 यह संहिता मुख्यतः कठ संहिता से मिलती-जुलती है, लेकिन इसमें कुछ अतिरिक्त मंत्र और पाठ हैं।
🔹 कपिष्ठल संहिता का महत्व
- कपिष्ठल संहिता अत्यंत दुर्लभ है, और इसके पूर्ण पाठ उपलब्ध नहीं हैं।
- यह मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब के कुछ वैदिक परिवारों में संरक्षित रही है।
- यह कठ संहिता के समान ही यज्ञों और अनुष्ठानों पर केंद्रित है, लेकिन इसमें रुद्र से संबंधित कुछ अतिरिक्त मंत्र शामिल हैं।
- यह संहिता रुद्र (शिव), मरुतगण और अन्य वैदिक देवताओं की स्तुति पर विशेष ध्यान देती है।
🔹 कपिष्ठल संहिता और कठ संहिता में अंतर
विशेषता | कठ संहिता | कपिष्ठल संहिता |
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प्रचलन | अधिक प्रचलित | अत्यंत दुर्लभ |
संबंध | कठोपनिषद से संबंधित | कठ संहिता से मिलती-जुलती, लेकिन अलग पाठ हैं |
मुख्य विषय | यज्ञ, आत्मा, पुनर्जन्म, मोक्ष | यज्ञ, रुद्र स्तुति, मरुतगण की उपासना |
मंत्रों की संख्या | अधिक विस्तृत | कठ संहिता से कुछ अलग अतिरिक्त मंत्र शामिल हैं |
🔹 कपिष्ठल संहिता के प्रमुख विषय
1️⃣ यज्ञों की विधियाँ और मंत्र
इसमें विभिन्न यज्ञों की विस्तृत विधियाँ दी गई हैं, जिनमें शामिल हैं:
- अग्निहोत्र यज्ञ – प्रतिदिन किया जाने वाला हवन
- सोमयज्ञ – सोम रस से देवताओं की पूजा
- अश्वमेध यज्ञ – सम्राट द्वारा किया जाने वाला महान यज्ञ
- राजसूय यज्ञ – राजा के राज्याभिषेक के लिए
- पंचमहायज्ञ – गृहस्थ जीवन में किए जाने वाले पाँच दैनिक यज्ञ
🔹 उदाहरण (कपिष्ठल संहिता – दुर्लभ श्लोक):
"अग्निं दूतं पुरोहितं यज्ञस्य देवं ऋत्विजम्।"
📖 अर्थ: अग्नि देव यज्ञ के माध्यम से देवताओं तक हमारी प्रार्थनाएँ पहुँचाने वाले हैं।
2️⃣ रुद्र और मरुतगण की स्तुति
- यह संहिता रुद्र (शिव) और मरुतगण की स्तुति पर विशेष रूप से केंद्रित है।
- इसमें कठ संहिता से अलग कुछ विशेष रुद्र मंत्र सम्मिलित हैं।
🔹 उदाहरण (कपिष्ठल संहिता – रुद्र स्तुति):
"नमः शम्भवे च मयोभवे च नमः शिवाय च शिवतराय च।"
📖 अर्थ: कल्याणकारी शम्भु, आनंददायक मयोभव और शिव को प्रणाम।
🔹 महत्व:
- शिव को संहारक और कल्याणकारी दोनों रूपों में दर्शाया गया है।
- यह पाठ रुद्राभिषेक और शिवोपासना में महत्वपूर्ण माना जाता है।
3️⃣ धर्म, नीति और समाज व्यवस्था
- इसमें न्याय, सत्य और धर्म के नियमों पर बल दिया गया है।
- गृहस्थ जीवन में कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों पर मार्गदर्शन।
🔹 उदाहरण (कपिष्ठल संहिता – नीति श्लोक):
"सत्यं वद धर्मं चर।"
📖 अर्थ: सत्य बोलो और धर्म का पालन करो।
4️⃣ प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण
- इस संहिता में पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण की शिक्षा दी गई है।
🔹 प्रसिद्ध मंत्र (कपिष्ठल संहिता – पर्यावरण संरक्षण):
"माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।"
📖 अर्थ: पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
🔹 महत्व:
- यह मंत्र पर्यावरण चेतना और पृथ्वी के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
- प्रकृति संरक्षण और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा।
🔹 कपिष्ठल संहिता का ऐतिहासिक महत्व
- कठ संहिता की तुलना में यह शाखा बहुत कम प्रचलित है, और इसके पूर्ण ग्रंथ का अधिकांश भाग अब उपलब्ध नहीं है।
- यह हरियाणा, पंजाब और उत्तर-पश्चिम भारत में कुछ वैदिक परिवारों में सीमित रूप से संरक्षित रही है।
- कपिष्ठल संहिता में कई वैदिक देवताओं की स्तुति और विशेष अनुष्ठानों की जानकारी मिलती है।
🔹 निष्कर्ष
- कपिष्ठल संहिता कृष्ण यजुर्वेद की अत्यंत दुर्लभ शाखा है और मुख्यतः कठ संहिता से मिलती-जुलती है।
- इसमें यज्ञों की विधियाँ, रुद्र और मरुतगण की स्तुति, धर्म और समाज व्यवस्था, तथा पर्यावरण संरक्षण पर विशेष बल दिया गया है।
- यह संहिता कठ संहिता की तरह ही यज्ञों और अनुष्ठानों पर केंद्रित है, लेकिन इसमें कुछ अतिरिक्त मंत्र और पाठ शामिल हैं।
- इसका पूरा पाठ दुर्लभ है, लेकिन जो भी शेष भाग उपलब्ध है, वह वेदों के अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।