शनिवार, 21 सितंबर 2024

भगवद्गीता: अध्याय 8 - अक्षर ब्रह्म योग

भगवद गीता – अष्टम अध्याय: अक्षर ब्रह्म योग

(Akshara Brahma Yoga – The Yoga of the Imperishable Absolute)

📖 अध्याय 8 का परिचय

अक्षर ब्रह्म योग भगवद गीता का आठवाँ अध्याय है, जिसमें श्रीकृष्ण परम ब्रह्म (Ultimate Reality), मृत्यु के समय भगवान का स्मरण, मोक्ष प्राप्ति का रहस्य और दो प्रकार के मार्ग (श्वेत-श्याम पथ) के बारे में बताते हैं।

👉 मुख्य भाव:

  • परम ब्रह्म (Supreme Reality) क्या है?
  • मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने का महत्व।
  • मोक्ष प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग।
  • दो पथ – एक मोक्ष की ओर और दूसरा पुनर्जन्म की ओर।

📖 श्लोक (8.5):

"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥"

📖 अर्थ: जो मृत्यु के समय मेरा स्मरण करते हुए शरीर त्यागता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है – इसमें कोई संदेह नहीं।

👉 यह अध्याय बताता है कि जीवन के अंतिम क्षणों में भगवान का स्मरण करने से मोक्ष प्राप्त हो सकता है।


🔹 1️⃣ अर्जुन के प्रश्न और श्रीकृष्ण के उत्तर

📌 1. अर्जुन के सात प्रश्न (Verse 1-2)

अर्जुन श्रीकृष्ण से सात महत्वपूर्ण प्रश्न पूछते हैं:
1️⃣ ब्रह्म क्या है? (What is Brahman?)
2️⃣ अध्यात्म क्या है? (What is Adhyatma - the Self?)
3️⃣ कर्म क्या है? (What is Karma?)
4️⃣ अधिभूत क्या है? (What is Adhibhuta - the material world?)
5️⃣ अधिदैव क्या है? (What is Adhidaiva - the divine being?)
6️⃣ अधियज्ञ कौन है? (Who is Adhiyajna - the lord of sacrifice?)
7️⃣ मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने से क्या होता है? (What happens if one remembers God at the time of death?)

📖 श्लोक (8.1):

"अर्जुन उवाच: किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥"

📖 अर्थ: अर्जुन बोले – हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? और कर्म क्या है? अधिभूत और अधिदैव क्या कहलाते हैं?

👉 अर्जुन की जिज्ञासा हमें आध्यात्मिकता को गहराई से समझने में मदद करती है।


🔹 2️⃣ भगवान श्रीकृष्ण के उत्तर

📌 2. ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ का अर्थ (Verses 3-4)

1️⃣ ब्रह्म (Brahman) – परम अविनाशी तत्व, जिसे "अक्षर" कहा जाता है।
2️⃣ अध्यात्म (Adhyatma) – जीवात्मा (Individual Soul)।
3️⃣ कर्म (Karma) – भौतिक संसार में कारण और परिणाम का नियम।
4️⃣ अधिभूत (Adhibhuta) – पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का समूह।
5️⃣ अधिदैव (Adhidaiva) – ब्रह्मांड में देवताओं की शक्तियाँ।
6️⃣ अधियज्ञ (Adhiyajna) – परमात्मा जो सभी यज्ञों (त्याग और भक्ति) के केंद्र हैं।

📖 श्लोक (8.3):

"श्रीभगवानुवाच: अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः॥"

📖 अर्थ: श्रीकृष्ण बोले – जो अविनाशी और परम है, वही ब्रह्म है। जीवात्मा को अध्यात्म कहा जाता है, और भूतों की उत्पत्ति करने वाला जो त्याग (कर्म) है, उसे कर्म कहते हैं।

👉 इन उत्तरों से स्पष्ट होता है कि ब्रह्म, आत्मा, और कर्म का आपस में गहरा संबंध है।


🔹 3️⃣ मृत्यु के समय भगवान का स्मरण और मोक्ष प्राप्ति

📌 3. मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने का महत्व (Verses 5-10)

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय जिस चीज़ का स्मरण करता है, वह उसी को प्राप्त करता है।
  • यदि कोई मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करता है, तो वह परमगति (मोक्ष) प्राप्त करता है।

📖 श्लोक (8.6):

"यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः॥"

📖 अर्थ: हे अर्जुन! जो व्यक्ति मृत्यु के समय जिस भाव का स्मरण करता है, वह उसी को प्राप्त करता है।

👉 इसलिए, हमें सदैव भगवान के ध्यान में रहना चाहिए, ताकि मृत्यु के समय भी उनका स्मरण हो सके।


🔹 4️⃣ ओंकार और भगवान की भक्ति द्वारा मोक्ष

📌 4. ओंकार (ॐ) और भगवान का ध्यान (Verses 11-22)

  • श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति "ॐ" का जप करते हुए ध्यान करता है, वह परम धाम को प्राप्त करता है।
  • जो भगवान के धाम (सच्चिदानंद लोक) को प्राप्त करता है, वह फिर कभी जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता।

📖 श्लोक (8.13):

"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्॥"

📖 अर्थ: जो व्यक्ति "ॐ" (एकाक्षर ब्रह्म) का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है, वह परमगति को प्राप्त होता है।

👉 इसका अर्थ है कि यदि हम भगवान का स्मरण और "ॐ" का जप करें, तो हमें मोक्ष मिल सकता है।


🔹 5️⃣ दो पथ – एक मोक्ष का और दूसरा पुनर्जन्म का

📌 5. उत्तम और अधम मार्ग (Verses 23-28)

  • श्रीकृष्ण बताते हैं कि मृत्यु के बाद दो मार्ग होते हैं:

1️⃣ उत्तरायण (देवयान मार्ग) – मोक्ष का मार्ग
✅ इसमें मृत्यु के बाद आत्मा ब्रह्मलोक या परमधाम को प्राप्त करती है और पुनर्जन्म नहीं लेती।

2️⃣ दक्षिणायन (पितृयान मार्ग) – पुनर्जन्म का मार्ग
✅ इसमें मृत्यु के बाद आत्मा पुनः जन्म लेती है और संसार के चक्र में फँस जाती है।

📖 श्लोक (8.26):

"शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः॥"

📖 अर्थ: ये दो मार्ग (शुक्ल और कृष्ण) सदा से हैं – एक से आत्मा मुक्त होकर परम धाम जाती है, और दूसरे से संसार में वापस आ जाती है।

👉 इसलिए, हमें उत्तरायण मार्ग अपनाकर मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए।


🔹 6️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ

📖 इस अध्याय में श्रीकृष्ण के उपदेश से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने से मोक्ष प्राप्त होता है।
2. "ॐ" के जप से आत्मा को परमगति मिलती है।
3. भगवान को जानने के लिए भक्ति आवश्यक है।
4. मृत्यु के बाद दो मार्ग होते हैं – एक मोक्ष का और दूसरा पुनर्जन्म का।
5. भगवान के धाम को प्राप्त करने वाला पुनः जन्म नहीं लेता।


🔹 निष्कर्ष

1️⃣ अक्षर ब्रह्म योग में श्रीकृष्ण बताते हैं कि मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करना सबसे महत्वपूर्ण है।
2️⃣ "ॐ" का जप और भगवान की भक्ति से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
3️⃣ मृत्यु के बाद आत्मा दो मार्गों में से किसी एक को प्राप्त करती है – मोक्ष या पुनर्जन्म।
4️⃣ भगवान के धाम को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को फिर कभी जन्म-मरण के चक्र में नहीं आना पड़ता।

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