ऋग्वेद: पंचम मंडल (5th Mandala) – संरचना और विषय-वस्तु
ऋग्वेद का पंचम मंडल (5th Mandala) मुख्य रूप से अग्नि, इंद्र, मित्र-वरुण, सूर्य, उषा और मरुतगण की स्तुति से संबंधित है। इस मंडल में यज्ञ, प्राकृतिक शक्तियों, सूर्य की महिमा, जल और वर्षा, तथा देवताओं के कार्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
🔹 पंचम मंडल की संरचना
वर्ग | संख्या |
---|---|
सूक्त (हाइम्न्स) | 87 |
ऋचाएँ (मंत्र) | लगभग 727 |
मुख्य देवता | अग्नि, इंद्र, मित्र-वरुण, सूर्य, उषा, मरुतगण |
महत्वपूर्ण विषय | प्रकृति, सूर्य, जल, वर्षा, यज्ञ, धर्म, आध्यात्मिकता |
👉 यह मंडल मुख्य रूप से अत्रि ऋषि कुल से संबंधित है और इसमें ऋषि अत्रि, कुशिक, भारद्वाज आदि की रचनाएँ सम्मिलित हैं।
🔹 पंचम मंडल की प्रमुख विषय-वस्तु
सूक्त संख्या | मुख्य विषय-वस्तु |
---|---|
सूक्त 1-25 | अग्नि और इंद्र की स्तुति (यज्ञ, शक्ति, वीरता) |
सूक्त 26-45 | मित्र-वरुण की स्तुति (न्याय, ऋतु चक्र, सत्य) |
सूक्त 46-55 | सूर्य और उषा की स्तुति (प्रकाश, ज्ञान, जागरण) |
सूक्त 56-70 | मरुतगण और वायु की स्तुति (वर्षा, तूफान, ऊर्जा) |
सूक्त 71-87 | जल, पृथ्वी और दार्शनिक विचार (संतुलन, जीवन शक्ति) |
🔹 पंचम मंडल के प्रमुख सूक्तों की व्याख्या
1️⃣ अग्नि और इंद्र की स्तुति (सूक्त 1-25)
- अग्नि को यज्ञ का अधिष्ठाता, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक बताया गया है।
- इंद्र को वीरता और युद्ध के देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
🔹 मुख्य विषय:
- अग्नि देव समृद्धि और ज्ञान का स्रोत हैं।
- यज्ञों में अग्नि की भूमिका महत्वपूर्ण है।
2️⃣ मित्र-वरुण की स्तुति (सूक्त 26-45)
- मित्र-वरुण को सत्य, न्याय और ऋतु चक्र का देवता माना जाता है।
- इन सूक्तों में सामाजिक नियमों, धर्म और प्राकृतिक संतुलन की व्याख्या की गई है।
🔹 मुख्य विषय:
- मित्र-वरुण को नैतिकता और धर्म का रक्षक माना जाता है।
- वे जल चक्र और ऋतु संतुलन बनाए रखते हैं।
3️⃣ सूर्य और उषा की स्तुति (सूक्त 46-55)
- सूर्य को प्रकाश, ऊर्जा, और आत्मज्ञान का स्रोत माना गया है।
- उषा (भोर) को नवजीवन और जागरण का प्रतीक बताया गया है।
🔹 मुख्य विषय:
- सूर्य से आत्मज्ञान और आध्यात्मिक जागृति होती है।
- उषा जीवन में नए अवसरों और प्रकाश का प्रतीक है।
4️⃣ मरुतगण और वायु की स्तुति (सूक्त 56-70)
- मरुतों को वर्षा, वायु, तूफान और विद्युत के देवता माना गया है।
- इन सूक्तों में वर्षा के महत्व और कृषि पर उसके प्रभाव को बताया गया है।
🔹 मुख्य विषय:
- मरुतगण जीवन के संतुलन और कृषि के लिए आवश्यक हैं।
- तूफान और वर्षा प्राकृतिक संतुलन बनाए रखते हैं।
5️⃣ जल, पृथ्वी और दार्शनिक विचार (सूक्त 71-87)
- जल को जीवन का स्रोत और शुद्धिकरण का साधन बताया गया है।
- इस भाग में पृथ्वी, पर्यावरण और जीवन शक्ति का उल्लेख किया गया है।
🔹 मुख्य विषय:
- जल को स्वास्थ्य और शुद्धि का प्रतीक माना गया है।
- पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण पर बल दिया गया है।
🔹 पंचम मंडल का महत्व
- प्राकृतिक संतुलन – सूर्य, जल, वर्षा और वायु का महत्व बताया गया है।
- धर्म और नैतिकता – मित्र-वरुण को नैतिकता और ऋतु चक्र का रक्षक माना गया है।
- सामाजिक व्यवस्था – न्याय, सत्य और धर्म के सिद्धांत दिए गए हैं।
- पर्यावरण चेतना – जल, पृथ्वी और वर्षा के महत्व को स्पष्ट किया गया है।
- आध्यात्मिक ज्ञान – उषा और सूर्य से आत्मज्ञान की प्रेरणा दी गई है।
🔹 निष्कर्ष
- पंचम मंडल ऋग्वेद का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें प्रकृति, धर्म, सूर्य, जल, वर्षा और आध्यात्मिक ज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।
- इसमें अग्नि, इंद्र, मित्र-वरुण, सूर्य, उषा, मरुतगण की स्तुति की गई है।
- यह मंडल सामाजिक और प्राकृतिक संतुलन पर जोर देता है।
- इस मंडल के मंत्र यज्ञ, पर्यावरण संतुलन, आत्मज्ञान और समाज के नैतिक सिद्धांतों को दर्शाते हैं।
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