शनिवार, 20 नवंबर 2021

नेति-नेति ध्यान के गहरे स्तर और अद्वैत वेदांत के रहस्य

 

🕉 नेति-नेति ध्यान के गहरे स्तर और अद्वैत वेदांत के रहस्य 🔱

"नेति-नेति" (यह नहीं, यह नहीं) सिर्फ एक ध्यान विधि नहीं, बल्कि अद्वैत वेदांत (Advaita Vedanta) का सबसे गहरा सत्य है। यह हमें माया (Illusion) से मुक्त कर, ब्रह्म (Supreme Consciousness) के बोध तक ले जाता है।

अब हम इस ध्यान के गहरे स्तरों और अद्वैत वेदांत के गूढ़ रहस्यों को समझेंगे।


🔱 1️⃣ नेति-नेति ध्यान के गहरे स्तर (Advanced Neti-Neti Meditation)

जब आप नेति-नेति ध्यान में नियमित हो जाते हैं, तो आपको तीन महत्वपूर्ण अवस्थाएँ अनुभव होती हैं:

🔹 1. पहला स्तर – विचारों से अलग होना (Beyond Thoughts)

✔ जब आप "मैं कौन हूँ?" पूछते हैं, तो मन लगातार विचार उत्पन्न करता है।
✔ आप महसूस करेंगे कि विचार आते-जाते हैं, लेकिन आप उनसे अलग हैं।
✔ अब आप साक्षी (Observer) बन रहे हैं – आप अपने विचार नहीं हैं!

👉 अब "नेति-नेति" कहकर विचारों को छोड़ दें।


🔹 2. दूसरा स्तर – अहंकार का विलय (Dissolution of Ego)

✔ अब आप महसूस करेंगे कि "मैं" नामक अहंकार भी एक धारणा (Concept) है।
✔ जब आप "नेति-नेति" कहते हैं, तो "मैं" भी धीरे-धीरे गायब होने लगता है।
✔ आपको लगेगा कि कोई "व्यक्तिगत मैं" (Individual Self) नहीं है, केवल शुद्ध अस्तित्व (Pure Beingness) बचता है।

👉 अब "नेति-नेति" से अहंकार को भी मिटा दें।


🔹 3. तीसरा स्तर – केवल शुद्ध अस्तित्व बचता है (Pure Being Remains)

✔ जब शरीर, मन, विचार, अहंकार सब नकार दिए जाते हैं, तो सिर्फ एक शुद्ध मौन (Silent Awareness) बचता है
✔ यह अवस्था तुरीय (Turiya – The Fourth State) कहलाती है, जो जाग्रत, स्वप्न, और गहरी नींद से परे है।
✔ इस अवस्था में आप स्वयं को ब्रह्म (सर्वव्यापी चेतना) के रूप में अनुभव करेंगे।

👉 अब "नेति-नेति" को भी छोड़ दें, क्योंकि अब कोई "नकारने वाला" नहीं बचा!


🌟 2️⃣ अद्वैत वेदांत के गूढ़ रहस्य 🌟

🔹 1. अहं ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) – "मैं ही ब्रह्म हूँ"

अद्वैत वेदांत का सबसे गहरा रहस्य यही है कि –
✅ आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं।
✅ व्यक्ति और ब्रह्मांड अलग नहीं, बल्कि एक ही चेतना (Consciousness) का विस्तार हैं।
✅ जब कोई "नेति-नेति" द्वारा सब कुछ नकार देता है, तो उसे अनुभव होता है कि "मैं ही ब्रह्म हूँ"


🔹 2. द्वैत का अंत (The Illusion of Duality Ends)

✔ हम सोचते हैं कि "मैं" और "यह दुनिया" अलग हैं।
✔ अद्वैत वेदांत कहता है कि यह माया (Illusion) के कारण है।
✔ जब "नेति-नेति" द्वारा सबकुछ नकार दिया जाता है, तब द्वैत (Duality) समाप्त हो जाता है

👉 अब "मैं" और "दुनिया" का भेद खत्म हो जाता है, सब कुछ ब्रह्म ही है।


🔹 3. जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्य (World is Illusion, Brahman is Reality)

✔ शंकराचार्य कहते हैं –
"ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः"
("ब्रह्म ही सत्य है, जगत एक माया है, और जीव (व्यक्ति) वास्तव में ब्रह्म ही है।")
✔ दुनिया का अस्तित्व है, लेकिन यह स्वप्न की तरह अस्थायी है।
✔ केवल ब्रह्म (शुद्ध चेतना) ही शाश्वत और सच्चा है।

👉 अब यह बोध होता है कि "मैं" सदा अजर-अमर हूँ, यह संसार केवल एक खेल है।


🧘 3️⃣ नेति-नेति ध्यान का अंतिम अनुभव (Final Stage of Neti-Neti Meditation)

जब आप इस ध्यान को गहराई से करते हैं, तो आपको तीन चीज़ें अनुभव होंगी –

1️⃣ कोई "व्यक्तिगत मैं" (Personal Self) नहीं बचता

✔ पहले आप सोचते थे कि "मैं यह शरीर हूँ, यह नाम हूँ"।
✔ अब सब मिट चुका है – सिर्फ शुद्ध शून्यता (Void) बची है।


2️⃣ केवल मौन (Deep Silence) बचता है

✔ जब अहंकार विलीन हो जाता है, तो मन पूरी तरह शांत (Silent Mind) हो जाता है।
✔ यह मौन कोई साधारण शांति नहीं, बल्कि परम आनंद (Bliss) की स्थिति है।


3️⃣ ब्रह्म के साथ एकता (Oneness with Brahman)

✔ अब "मैं" और "ब्रह्मांड" अलग नहीं दिखते।
✔ सब कुछ एक ही चेतना का खेल लगता है।
✔ यह अनुभव मोक्ष (Liberation) कहलाता है।


🕉 अंतिम बोध – "मैं क्या हूँ?"

"नेति-नेति" के बाद अंतिम उत्तर यही है –
💡 "मैं शुद्ध आत्मा हूँ।"
💡 "मैं अनंत ब्रह्म हूँ।"
💡 "मैं ही सब कुछ हूँ और कुछ भी नहीं हूँ।"

🕉 "जिसने स्वयं को जान लिया, उसने पूरे ब्रह्मांड को जान लिया!" 🕉

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...