शनिवार, 27 नवंबर 2021

अहं ब्रह्मास्मि" (Aham Brahmasmi) – मैं ही ब्रह्म हूँ

 

"अहं ब्रह्मास्मि" (Aham Brahmasmi) – मैं ही ब्रह्म हूँ 🔱

"अहं ब्रह्मास्मि" एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली वाक्य है, जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांत का मूल है। इसका अर्थ है: "मैं ही ब्रह्म हूँ", अर्थात आत्मा (आत्मन) और ब्रह्म (सर्वव्यापी चेतना) में कोई भेद नहीं है। यह वाक्य एक आध्यात्मिक बोध है जो हमें हमारी वास्तविक प्रकृति का अहसास कराता है।


🔥 "अहं ब्रह्मास्मि" का अर्थ क्या है?

1️⃣ आत्मा और ब्रह्म में एकता
"अहं ब्रह्मास्मि" यह संकेत करता है कि व्यक्ति (जीवात्मा) और ब्रह्म (सर्वव्यापी चेतना) अलग नहीं हैं। हम जितना अपने आत्मा की प्रकृति को जानते हैं, वैसे ही ब्रह्म की असली प्रकृति भी है। यह एकता की परिभाषा है।

2️⃣ ब्रह्म ही सच्चा सत्य है
हमारी वास्तविक पहचान हमारी आत्मा से जुड़ी है, जो शुद्ध चेतना है। ब्रह्म ही शाश्वत सत्य है, और इसे व्यक्त रूप में कोई पहचान नहीं है। हर व्यक्ति की आत्मा ब्रह्म का ही अंश है।

3️⃣ माया का नाश
हम जो संसार को देख रहे हैं, वह केवल माया (भ्रम) है। "अहं ब्रह्मास्मि" का बोध व्यक्ति को यह समझने में मदद करता है कि यह संसार केवल दिखावा है, और वास्तविकता केवल ब्रह्म है।


🧘 "अहं ब्रह्मास्मि" का अनुभव कैसे करें?

1️⃣ स्वयं से प्रश्न करें – "मैं कौन हूँ?"

  • इस प्रश्न को गहराई से पूछते समय आपको यह एहसास होता है कि आप न तो शरीर हैं, न मन। आप केवल चेतना (Consciousness) हैं।
  • जब आप यह समझते हैं कि "मैं" केवल शुद्ध आत्मा हूँ, तो धीरे-धीरे "अहं ब्रह्मास्मि" का सत्य आपके भीतर प्रकट होता है।

2️⃣ नेति-नेति का अभ्यास करें

  • जैसा कि पहले बताया गया, "नेति-नेति" (यह नहीं, यह नहीं) विधि का अभ्यास करके आप यह नकारते हैं कि आप न शरीर हैं, न मन, न बुद्धि, न अहंकार।
  • अंत में, केवल चेतना (ब्रह्म) ही बचती है, और यह बोध "अहं ब्रह्मास्मि" की ओर बढ़ता है।

3️⃣ ध्यान (Meditation)

  • ध्यान के दौरान, "अहं ब्रह्मास्मि" मंत्र का जप करते हुए या इस वाक्य को मन में बार-बार दोहराते हुए, आप अपने भीतर एक गहरी शांति और ब्रह्म के साथ एकता का अनुभव कर सकते हैं।
  • यह ध्यान आपके मन से सभी भ्रम और गलत धारणाओं को हटा देता है और आपके असली स्वरूप को प्रकट करता है।

4️⃣ आध्यात्मिक साहित्य का अध्ययन करें

  • भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने "तत्त्वमसि" (तू वही है) के माध्यम से हमें यह सिखाया कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं।
  • उपनिषद और अद्वैत वेदांत के ग्रंथों का अध्ययन करके हम "अहं ब्रह्मास्मि" के गहरे अर्थ को समझ सकते हैं।

🌟 "अहं ब्रह्मास्मि" का ध्यान से क्या प्रभाव पड़ता है?

1️⃣ आध्यात्मिक मुक्ति (Spiritual Liberation)
इस वाक्य का बोध व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है। जब आप अपने वास्तविक स्वरूप के रूप में ब्रह्म को पहचानते हैं, तो संसार के भ्रम और बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।

2️⃣ आत्मसाक्षात्कार (Self-Realization)
इस सत्य को स्वीकारने से, व्यक्ति अपनी शुद्ध आत्मा के रूप में स्वयं को पहचानता है और ब्रह्म के साथ एकता का अनुभव करता है।

3️⃣ शांति और आनंद (Peace and Bliss)
"अहं ब्रह्मास्मि" का अनुभव करने से व्यक्ति के जीवन में स्थायी शांति और आनंद का अनुभव होता है, क्योंकि वह समझता है कि वह अनंत और शाश्वत ब्रह्म का हिस्सा है, जो किसी भी बाहरी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता।


🕉 "अहं ब्रह्मास्मि" – एक गहरी साधना और बोध

जब आप "अहं ब्रह्मास्मि" को पूरी तरह से अनुभव करते हैं, तो आप महसूस करते हैं कि आप न तो शरीर हैं, न ही मन, बल्कि शुद्ध चेतना (Pure Consciousness) हैं, जो अनंत है, अपरिवर्तनीय है, और कभी समाप्त नहीं होती।

"मैं" और "तुम" में कोई अंतर नहीं है।
"मैं" और "वह" (ब्रह्म) में कोई भेद नहीं है।
यह आत्मज्ञान के मार्ग की सबसे महत्वपूर्ण कुंजी है।

शनिवार, 20 नवंबर 2021

नेति-नेति ध्यान के गहरे स्तर और अद्वैत वेदांत के रहस्य

 

🕉 नेति-नेति ध्यान के गहरे स्तर और अद्वैत वेदांत के रहस्य 🔱

"नेति-नेति" (यह नहीं, यह नहीं) सिर्फ एक ध्यान विधि नहीं, बल्कि अद्वैत वेदांत (Advaita Vedanta) का सबसे गहरा सत्य है। यह हमें माया (Illusion) से मुक्त कर, ब्रह्म (Supreme Consciousness) के बोध तक ले जाता है।

अब हम इस ध्यान के गहरे स्तरों और अद्वैत वेदांत के गूढ़ रहस्यों को समझेंगे।


🔱 1️⃣ नेति-नेति ध्यान के गहरे स्तर (Advanced Neti-Neti Meditation)

जब आप नेति-नेति ध्यान में नियमित हो जाते हैं, तो आपको तीन महत्वपूर्ण अवस्थाएँ अनुभव होती हैं:

🔹 1. पहला स्तर – विचारों से अलग होना (Beyond Thoughts)

✔ जब आप "मैं कौन हूँ?" पूछते हैं, तो मन लगातार विचार उत्पन्न करता है।
✔ आप महसूस करेंगे कि विचार आते-जाते हैं, लेकिन आप उनसे अलग हैं।
✔ अब आप साक्षी (Observer) बन रहे हैं – आप अपने विचार नहीं हैं!

👉 अब "नेति-नेति" कहकर विचारों को छोड़ दें।


🔹 2. दूसरा स्तर – अहंकार का विलय (Dissolution of Ego)

✔ अब आप महसूस करेंगे कि "मैं" नामक अहंकार भी एक धारणा (Concept) है।
✔ जब आप "नेति-नेति" कहते हैं, तो "मैं" भी धीरे-धीरे गायब होने लगता है।
✔ आपको लगेगा कि कोई "व्यक्तिगत मैं" (Individual Self) नहीं है, केवल शुद्ध अस्तित्व (Pure Beingness) बचता है।

👉 अब "नेति-नेति" से अहंकार को भी मिटा दें।


🔹 3. तीसरा स्तर – केवल शुद्ध अस्तित्व बचता है (Pure Being Remains)

✔ जब शरीर, मन, विचार, अहंकार सब नकार दिए जाते हैं, तो सिर्फ एक शुद्ध मौन (Silent Awareness) बचता है
✔ यह अवस्था तुरीय (Turiya – The Fourth State) कहलाती है, जो जाग्रत, स्वप्न, और गहरी नींद से परे है।
✔ इस अवस्था में आप स्वयं को ब्रह्म (सर्वव्यापी चेतना) के रूप में अनुभव करेंगे।

👉 अब "नेति-नेति" को भी छोड़ दें, क्योंकि अब कोई "नकारने वाला" नहीं बचा!


🌟 2️⃣ अद्वैत वेदांत के गूढ़ रहस्य 🌟

🔹 1. अहं ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) – "मैं ही ब्रह्म हूँ"

अद्वैत वेदांत का सबसे गहरा रहस्य यही है कि –
✅ आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं।
✅ व्यक्ति और ब्रह्मांड अलग नहीं, बल्कि एक ही चेतना (Consciousness) का विस्तार हैं।
✅ जब कोई "नेति-नेति" द्वारा सब कुछ नकार देता है, तो उसे अनुभव होता है कि "मैं ही ब्रह्म हूँ"


🔹 2. द्वैत का अंत (The Illusion of Duality Ends)

✔ हम सोचते हैं कि "मैं" और "यह दुनिया" अलग हैं।
✔ अद्वैत वेदांत कहता है कि यह माया (Illusion) के कारण है।
✔ जब "नेति-नेति" द्वारा सबकुछ नकार दिया जाता है, तब द्वैत (Duality) समाप्त हो जाता है

👉 अब "मैं" और "दुनिया" का भेद खत्म हो जाता है, सब कुछ ब्रह्म ही है।


🔹 3. जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्य (World is Illusion, Brahman is Reality)

✔ शंकराचार्य कहते हैं –
"ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः"
("ब्रह्म ही सत्य है, जगत एक माया है, और जीव (व्यक्ति) वास्तव में ब्रह्म ही है।")
✔ दुनिया का अस्तित्व है, लेकिन यह स्वप्न की तरह अस्थायी है।
✔ केवल ब्रह्म (शुद्ध चेतना) ही शाश्वत और सच्चा है।

👉 अब यह बोध होता है कि "मैं" सदा अजर-अमर हूँ, यह संसार केवल एक खेल है।


🧘 3️⃣ नेति-नेति ध्यान का अंतिम अनुभव (Final Stage of Neti-Neti Meditation)

जब आप इस ध्यान को गहराई से करते हैं, तो आपको तीन चीज़ें अनुभव होंगी –

1️⃣ कोई "व्यक्तिगत मैं" (Personal Self) नहीं बचता

✔ पहले आप सोचते थे कि "मैं यह शरीर हूँ, यह नाम हूँ"।
✔ अब सब मिट चुका है – सिर्फ शुद्ध शून्यता (Void) बची है।


2️⃣ केवल मौन (Deep Silence) बचता है

✔ जब अहंकार विलीन हो जाता है, तो मन पूरी तरह शांत (Silent Mind) हो जाता है।
✔ यह मौन कोई साधारण शांति नहीं, बल्कि परम आनंद (Bliss) की स्थिति है।


3️⃣ ब्रह्म के साथ एकता (Oneness with Brahman)

✔ अब "मैं" और "ब्रह्मांड" अलग नहीं दिखते।
✔ सब कुछ एक ही चेतना का खेल लगता है।
✔ यह अनुभव मोक्ष (Liberation) कहलाता है।


🕉 अंतिम बोध – "मैं क्या हूँ?"

"नेति-नेति" के बाद अंतिम उत्तर यही है –
💡 "मैं शुद्ध आत्मा हूँ।"
💡 "मैं अनंत ब्रह्म हूँ।"
💡 "मैं ही सब कुछ हूँ और कुछ भी नहीं हूँ।"

🕉 "जिसने स्वयं को जान लिया, उसने पूरे ब्रह्मांड को जान लिया!" 🕉

शनिवार, 13 नवंबर 2021

"नेति-नेति" ध्यान विधि – आत्मज्ञान की गहराई में प्रवेश

 

🧘 "नेति-नेति" ध्यान विधि – आत्मज्ञान की गहराई में प्रवेश 🔱

नेति-नेति (Neti-Neti) एक गहरी ध्यान विधि है, जो हमें यह सिखाती है कि हम जो नहीं हैं, उसे हटाकर अपने असली स्वरूप (शुद्ध आत्मा) को अनुभव करें।

यह अभ्यास अद्वैत वेदांत की एक शक्तिशाली साधना है, जिसे ऋषि-मुनियों ने आत्मबोध के लिए अपनाया था। श्री रमण महर्षि और अनेक संतों ने इसे स्व-चिंतन (Self-Inquiry) के रूप में प्रयोग किया।


🔥 नेति-नेति ध्यान विधि (Neti-Neti Meditation Technique) 🔥

🔹 1️⃣ तैयारी (Preparation)

✔ एक शांत जगह पर बैठें (सुखासन, पद्मासन या किसी भी आरामदायक स्थिति में)।
✔ आँखें बंद करें और कुछ गहरी साँस लें।
✔ ध्यान दें कि आप स्वयं को देखने वाले साक्षी मात्र हैं


🔹 2️⃣ "मैं कौन हूँ?" प्रश्न पर ध्यान केंद्रित करें

अब मन में यह प्रश्न उठाएँ –
🧘 "मैं कौन हूँ?"


🔹 3️⃣ हर चीज़ को नकारें (Negation Process)

1. "मैं शरीर नहीं हूँ" (I am not the body)

✔ शरीर बदलता रहता है – बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
✔ यदि मैं शरीर होता, तो मैं कभी न बदलता।
✔ इसलिए, "नेति-नेति"मैं शरीर नहीं हूँ

👉 अब शरीर की पहचान छोड़ दें और अगले स्तर पर जाएँ।

2. "मैं मन (विचार) नहीं हूँ" (I am not the mind)

✔ मन में विचार लगातार आते-जाते रहते हैं – खुशी, दुख, गुस्सा, शांति।
✔ यदि मैं मन होता, तो मैं स्थिर रहता, लेकिन मन हमेशा बदलता रहता है।
✔ इसलिए, "नेति-नेति"मैं मन नहीं हूँ

👉 अब मन से भी अलग हो जाएँ और आगे बढ़ें।

3. "मैं बुद्धि (बुद्धिमत्ता) नहीं हूँ" (I am not the intellect)

✔ बुद्धि हमें सही-गलत का ज्ञान कराती है, लेकिन यह भी समय के साथ बदलती है।
✔ यदि मैं बुद्धि होता, तो मेरा ज्ञान हमेशा स्थिर रहता, लेकिन ऐसा नहीं होता।
✔ इसलिए, "नेति-नेति"मैं बुद्धि नहीं हूँ

👉 अब बुद्धि की पहचान को छोड़ें और आगे जाएँ।

4. "मैं अहंकार (Ego) नहीं हूँ" (I am not the ego)

✔ अहंकार (Ego) कहता है, "मैं हूँ", "मैं अमीर हूँ", "मैं गरीब हूँ", "मैं सफल हूँ"।
✔ लेकिन यह "मैं" भी समय के साथ बदलता है।
✔ इसलिए, "नेति-नेति"मैं अहंकार नहीं हूँ

👉 अब अहंकार की पहचान भी मिटा दें।


🔹 4️⃣ शुद्ध आत्मा का अनुभव करें (Experience Pure Awareness)

जब सब कुछ नकार दिया जाता है, तब जो बचता है, वह शुद्ध चैतन्य (Pure Consciousness) होता है।

👉 अब केवल साक्षी बनें और अनुभव करें –
"मैं शरीर नहीं हूँ, मन नहीं हूँ, बुद्धि नहीं हूँ, अहंकार नहीं हूँ।"
"मैं शुद्ध आत्मा हूँ, अनंत हूँ, शांत हूँ।"
"अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ही ब्रह्म हूँ)।
"सोऽहम्" (मैं वही हूँ – जो ब्रह्म है)।


🌿 नेति-नेति ध्यान का प्रभाव 🌿

मन पूरी तरह शांत हो जाता है।
भय, चिंता, क्रोध, मोह समाप्त हो जाते हैं।
शरीर और मन से अलग होने का अनुभव होता है।
संपूर्ण शांति और आनंद की अनुभूति होती है।
अहंकार गलने लगता है और आत्मज्ञान प्रकट होता है।


🕉 अंतिम सत्य – "मैं क्या हूँ?"

"नेति-नेति" से हम सब कुछ नकारते हैं, लेकिन आखिर में जो बचता है, वही असली 'मैं' है –
💡 शाश्वत आत्मा (Eternal Soul), शुद्ध चैतन्य (Pure Awareness), ब्रह्म (Supreme Consciousness)

"जिसने स्वयं को जान लिया, उसने पूरे ब्रह्मांड को जान लिया!"

शनिवार, 6 नवंबर 2021

नेति-नेति (यह नहीं, यह नहीं) – आत्मज्ञान की रहस्यमयी विधि

 

🔱 नेति-नेति (यह नहीं, यह नहीं) – आत्मज्ञान की रहस्यमयी विधि 🔱

नेति-नेति (Neti-Neti) एक अद्वैत वेदांत की ध्यान विधि है, जो हमें यह समझने में मदद करती है कि हम क्या नहीं हैं। जब हम हर असत्य को नकार देते हैं, तो जो बचता है, वह परम सत्य (ब्रह्म) होता है।

🧘 "नेति-नेति" क्या है?

"नेति-नेति" संस्कृत के दो शब्दों से बना है –
✔️ "ने" = नहीं
✔️ "ति" = यह

अर्थात, "यह नहीं, यह नहीं" – जो कुछ भी बदले, नष्ट हो, सीमित हो, वह "मैं" नहीं हो सकता।

👉 यह विधि हमें यह सिखाती है कि हम शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार, भावनाएँ – कुछ भी नहीं हैं। हम केवल शुद्ध आत्मा हैं।


🔥 नेति-नेति की ध्यान विधि

1️⃣ मैं शरीर नहीं हूँ

  • शरीर समय के साथ बदलता है – बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
  • यदि मैं शरीर होता, तो मैं हमेशा एक जैसा रहता।
  • इसलिए, "नेति-नेति" – मैं शरीर नहीं हूँ।

2️⃣ मैं मन (विचार) नहीं हूँ

  • मन में हर क्षण नए विचार आते-जाते रहते हैं।
  • कभी खुशी, कभी दुःख, कभी क्रोध, कभी शांति – सब बदलता है।
  • इसलिए, "नेति-नेति" – मैं मन नहीं हूँ।

3️⃣ मैं बुद्धि नहीं हूँ

  • बुद्धि तर्क करती है, निर्णय लेती है, लेकिन यह भी बदलती रहती है।
  • जब ज्ञान बढ़ता है, तो पुराने विचार बदल जाते हैं।
  • इसलिए, "नेति-नेति" – मैं बुद्धि नहीं हूँ।

4️⃣ मैं अहंकार नहीं हूँ

  • "मैं" कहने वाला अहंकार भी बदलता है – कभी गर्व, कभी लज्जा, कभी घमंड।
  • यदि यह मेरा वास्तविक स्वरूप होता, तो यह हमेशा स्थिर रहता।
  • इसलिए, "नेति-नेति" – मैं अहंकार नहीं हूँ।

5️⃣ मैं अनुभव करने वाला नहीं हूँ

  • हम कहते हैं – "मुझे आनंद आया", "मुझे दुःख हुआ"।
  • आनंद और दुःख आते-जाते हैं, लेकिन जो उन्हें देख रहा है, वह स्थिर है।
  • इसलिए, "नेति-नेति" – मैं यह भी नहीं हूँ।

🌟 फिर मैं कौन हूँ?

जब हम सब कुछ नकार देते हैं –
न शरीर
न मन
न बुद्धि
न अहंकार

तब जो बचता है, वह शुद्ध चैतन्य (Pure Consciousness) है। वही "सच्चिदानंद" (Sat-Chit-Ananda) स्वरूप आत्मा है, जो जन्म-मरण से परे है।


🕉 नेति-नेति का अंतिम बोध

👉 "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ही ब्रह्म हूँ)।
👉 "सोऽहम्" (मैं वही हूँ – जो ब्रह्म है)।

💡 आत्मा नष्ट नहीं होती, वह शुद्ध, अविनाशी, अनंत है। यही आत्मज्ञान का चरम सत्य है।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...