"मैं कौन हूँ?" (कोऽहम्?) – आत्मज्ञान का मूल प्रश्न
"मैं कौन हूँ?" यह प्रश्न केवल बौद्धिक जिज्ञासा नहीं, बल्कि आत्मज्ञान (Self-Realization) की कुंजी है। इसे जान लेने से जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है और व्यक्ति शाश्वत आनंद (Sat-Chit-Ananda) का अनुभव करता है।
🔥 इस प्रश्न की गहराई 🔥
हम अपने बारे में जो सोचते हैं, वह सच नहीं है!
- हम कहते हैं "मैं शरीर हूँ", लेकिन शरीर बदलता रहता है।
- हम कहते हैं "मैं मन हूँ", लेकिन विचार भी हर क्षण बदलते हैं।
- हम कहते हैं "मैं अहंकार (Ego) हूँ", लेकिन अहंकार भी समय-समय पर बदलता है।
तब "मैं कौन हूँ?"
वेदांत कहता है – तुम आत्मा हो, शुद्ध चैतन्य हो, ब्रह्म हो!
🧘 "मैं कौन हूँ?" की खोज का मार्ग 🧘
1️⃣ नेति-नेति (Neti-Neti – यह नहीं, यह नहीं)
- उपनिषदों में कहा गया है कि आत्मा को पहचानने के लिए हमें यह समझना होगा कि हम क्या नहीं हैं।
- "मैं न शरीर हूँ, न मन हूँ, न बुद्धि हूँ, न अहंकार हूँ।"
- जब सब नकार दिया जाता है, तब जो बचता है, वह शुद्ध आत्मा (Pure Consciousness) है।
2️⃣ अहम ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi – मैं ही ब्रह्म हूँ)
- जब यह बोध होता है कि हम सीमित शरीर नहीं, बल्कि अनंत ब्रह्म (Universal Consciousness) हैं, तो आत्मज्ञान हो जाता है।
- यह ज्ञान जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कर देता है।
3️⃣ आत्म विचार (Self-Inquiry) – "Who Am I?"
- यह विधि संत श्री रमण महर्षि द्वारा दी गई थी।
- जब कोई विचार उठे, तो स्वयं से पूछो – "यह विचार किसे आ रहा है?" उत्तर आएगा – "मुझे!"
- तब पूछो – "मैं कौन हूँ?"
- जब तक उत्तर "शुद्ध आत्मा" तक न पहुँचे, तब तक यह प्रश्न पूछते रहो।
🌿 "मैं कौन हूँ?" जानने से क्या होता है? 🌿
✅ मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है – क्योंकि आत्मा अमर है।
✅ स्थायी आनंद और शांति मिलती है – क्योंकि आत्मा सच्चिदानंद (Sat-Chit-Ananda) स्वरूप है।
✅ माया (Illusion) टूट जाती है – संसार केवल अस्थायी खेल लगता है।
✅ संपूर्ण प्रेम जागृत होता है – क्योंकि सबमें उसी ब्रह्म का अस्तित्व दिखने लगता है।
🌟 अंतिम सत्य 🌟
जो इस प्रश्न को गहराई से खोजता है, वह ज्ञान, प्रेम और आनंद का महासागर बन जाता है।
🕉 "जिसने स्वयं को जान लिया, उसने पूरे ब्रह्मांड को जान लिया!" 🕉
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