श्रीकृष्ण की महाभारत में भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुआयामी है। वे न केवल इस महाकाव्य के केंद्र बिंदु हैं, बल्कि धर्म, सत्य और न्याय की स्थापना के प्रेरणास्रोत भी हैं। महाभारत में उनकी भूमिका एक मार्गदर्शक, कूटनीतिज्ञ, मित्र, और भगवान के रूप में दिखाई देती है।
1. कुरुक्षेत्र युद्ध के पीछे का कारण
महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण कौरवों और पांडवों के बीच का सत्ता संघर्ष था।
- दुर्योधन का अधर्म: दुर्योधन ने छल और धोखे से पांडवों को हस्तिनापुर से निर्वासित कर दिया।
- द्रौपदी का अपमान: कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया, जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी माया से रोका। यह घटना युद्ध की नींव बनी।
2. कूटनीतिक भूमिका
कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध रोकने के लिए कई प्रयास किए।
- शांति दूत: श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर जाकर दुर्योधन और कौरवों को समझाने का प्रयास किया। उन्होंने पांडवों के लिए सिर्फ पांच गांव मांगे, लेकिन दुर्योधन ने इनकार कर दिया और युद्ध को अनिवार्य बना दिया।
- दुर्योधन का अहंकार: दुर्योधन ने न केवल शांति प्रस्ताव ठुकराया, बल्कि श्रीकृष्ण को बंदी बनाने का प्रयास भी किया।
3. पांडवों के मित्र और मार्गदर्शक
कृष्ण पांडवों के परम मित्र और मार्गदर्शक थे।
- अर्जुन के सखा: अर्जुन और श्रीकृष्ण का मित्रता संबंध विशेष था। अर्जुन हर कठिन परिस्थिति में कृष्ण से मार्गदर्शन लेते थे।
- द्रौपदी की रक्षा: द्रौपदी के चीरहरण के समय कृष्ण ने उसे अनंत वस्त्र प्रदान करके उसकी लज्जा की रक्षा की।
- युद्ध रणनीति: श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान पांडवों को कई महत्वपूर्ण रणनीतियाँ सुझाईं, जैसे भीष्म और द्रोण का पराभव।
4. गीता का उपदेश
महाभारत में श्रीकृष्ण की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भगवद्गीता का उपदेश देना है।
- अर्जुन का मोह भंग: युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन अपने संबंधियों को मारने के विचार से दुखी और असमंजस में था।
- कृष्ण का उपदेश: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, भक्ति, ज्ञान और धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी।
- गीता का मुख्य संदेश:
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन - "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"
- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज - "सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ।"
- आत्मा अमर है: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मा अजर-अमर है और शरीर मात्र नश्वर है।
5. कूटनीति और रणनीतियाँ
श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध में विजय दिलाने के लिए कई कूटनीतिक निर्णय लिए।
- शिखंडी का उपयोग: भीष्म पितामह को हराने के लिए शिखंडी को आगे रखा, क्योंकि भीष्म ने शिखंडी पर शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी।
- द्रोण का वध: द्रोणाचार्य को हराने के लिए श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से असत्य कहलवाया ("अश्वत्थामा हतोऽगजः")।
- कर्ण का वध: कर्ण को कमजोर करने के लिए उसकी कवच-कुंडल को इंद्र द्वारा छीनने की योजना बनाई।
- दुर्योधन का अंत: भीम को गदा युद्ध में दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करने की प्रेरणा दी।
6. धर्म और अधर्म के बीच विभाजन
कृष्ण ने स्पष्ट किया कि धर्म के मार्ग पर चलना ही सत्य और न्याय की स्थापना का आधार है।
- कौरव अधर्म के मार्ग पर थे, जबकि पांडव धर्म के रक्षक थे।
- श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध के लिए प्रेरित किया, यह बताते हुए कि अधर्म का नाश अनिवार्य है।
7. युद्ध में निष्पक्षता
जब युद्ध की तैयारी हो रही थी, तो श्रीकृष्ण ने निष्पक्षता बनाए रखी।
- उन्होंने कहा कि एक ओर उनकी नारायणी सेना होगी और दूसरी ओर वे स्वयं बिना शस्त्र उठाए रहेंगे।
- अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना, जबकि दुर्योधन ने उनकी नारायणी सेना को।
8. युद्ध के बाद की भूमिका
- धर्म की स्थापना: युद्ध के बाद, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धर्म के मार्ग पर चलने और न्यायपूर्वक राज्य करने की शिक्षा दी।
- गांधारी का शाप: गांधारी ने अपने सौ पुत्रों की मृत्यु से दुखी होकर कृष्ण को शाप दिया कि उनके यदुवंश का भी अंत होगा। कृष्ण ने इसे स्वीकार किया और कहा कि यह धर्म का चक्र है।
महाभारत में श्रीकृष्ण का संदेश
- धर्म और सत्य की विजय निश्चित है।
- जीवन में कर्म करना ही सबसे महत्वपूर्ण है।
- अहंकार और अधर्म का अंत तय है।
- भगवान अपने भक्तों के साथ हर परिस्थिति में खड़े रहते हैं।
श्रीकृष्ण की भूमिका महाभारत में केवल एक मार्गदर्शक या भगवान के रूप में नहीं, बल्कि धर्म के सार को स्पष्ट करने वाले के रूप में महत्वपूर्ण है। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
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