शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

श्रीकृष्ण के विवाह

 श्रीकृष्ण के विवाह उनकी लीलाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनका पहला और प्रमुख विवाह रुक्मिणी से हुआ, लेकिन इसके अलावा उनके कई अन्य विवाह भी हुए। ये विवाह न केवल प्रेम और भक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि धर्म की स्थापना और धर्मरक्षा के लिए उठाए गए कदम भी हैं।


1. रुक्मिणी विवाह

रुक्मिणी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। रुक्मिणी बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थीं।

  • दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति: रुक्मिणी का भाई रुक्मी उनका विवाह चेदि राजा शिशुपाल से करवाना चाहता था, जो श्रीकृष्ण का शत्रु था।
  • प्रेमपत्र: रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को एक पत्र भेजकर उनसे अनुरोध किया कि वे आकर उन्हें शिशुपाल से बचाएं।
  • स्वयंवर से अपहरण: श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को स्वयंवर के दिन चेदि राजकुमारों और अन्य राजाओं के बीच से उठाकर विवाह किया।
  • रुक्मी का पराजय: रुक्मी ने श्रीकृष्ण का विरोध किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे पराजित कर दिया और उसकी जान बख्श दी।

रुक्मिणी श्रीकृष्ण की प्रमुख पत्नी बनीं और उन्हें लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।


2. जाम्बवती विवाह

जाम्बवती, ऋक्षराज जाम्बवन्त की पुत्री थीं।

  • स्यमंतक मणि का प्रसंग: जब सत्राजित नामक राजा की स्यमंतक मणि खो गई, तो कृष्ण ने उसे खोजने का बीड़ा उठाया।
  • मणि जाम्बवन्त के पास थी, और उसे प्राप्त करने के लिए कृष्ण ने जाम्बवन्त के साथ 28 दिनों तक युद्ध किया।
  • अंततः जाम्बवन्त ने अपनी हार स्वीकार की और अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।

3. सत्यभामा विवाह

सत्यभामा सत्राजित की पुत्री थीं।

  • स्यमंतक मणि: जब स्यमंतक मणि को लेकर विवाद हुआ, तो श्रीकृष्ण ने मणि लौटाकर सत्राजित का विश्वास जीता।
  • विवाह प्रस्ताव: सत्राजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।
  • सत्यभामा को भूदेवी का अवतार माना जाता है।

4. कालिंदी विवाह

कालिंदी सूर्यदेव की पुत्री थीं।

  • कालिंदी यमुना के तट पर तपस्या कर रही थीं और उन्होंने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की प्रार्थना की।
  • श्रीकृष्ण ने उनकी तपस्या स्वीकार की और उनसे विवाह किया।

5. मित्रवृंदा विवाह

मित्रवृंदा अवंती के राजा की पुत्री थीं।

  • उनका स्वयंवर आयोजित किया गया था, जिसमें श्रीकृष्ण ने भाग लेकर उनका हरण किया और उनसे विवाह किया।

6. नागनजिति विवाह

नागनजिति, जिन्हें सत्य भी कहा जाता है, कोसल देश के राजा नागंजित की पुत्री थीं।

  • शर्त: नागनजित ने शर्त रखी थी कि जो राजकुमार सात उग्र बैलों को वश में करेगा, वही उनकी पुत्री से विवाह कर सकता है।
  • श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से यह शर्त पूरी की और नागनजिति से विवाह किया।

7. भद्रा विवाह

भद्रा, कौरव वंश की एक राजकुमारी थीं।

  • उनका विवाह उनके परिवार की इच्छा से श्रीकृष्ण के साथ संपन्न हुआ।

8. लक्ष्मणा (मद्रा) विवाह

लक्ष्मणा, मद्र देश की राजकुमारी थीं।

  • उनके स्वयंवर में श्रीकृष्ण ने विजयी होकर उनसे विवाह किया।

9. 16,100 कन्याओं से विवाह

  • नरकासुर वध का प्रसंग: नरकासुर ने 16,100 राजकुमारियों का अपहरण कर उन्हें बंदी बना लिया था।
  • श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर सभी कन्याओं को मुक्त कराया।
  • सामाजिक सम्मान के लिए श्रीकृष्ण ने इन कन्याओं से विवाह किया, ताकि वे समाज में स्वीकार्य हो सकें।

विवाहों का महत्व

  1. धर्म की स्थापना: श्रीकृष्ण के सभी विवाह धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए थे।
  2. भक्ति का प्रतीक: प्रत्येक पत्नी उनके प्रति भक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
  3. संस्कृति और परंपरा: इन विवाहों के माध्यम से श्रीकृष्ण ने विभिन्न राज्यों और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य किया।
  4. अवतारी उद्देश्य: उनके विवाह मानव समाज में धर्म, करुणा और न्याय की स्थापना के लिए किए गए दिव्य कृत्य हैं।

श्रीकृष्ण का विवाह केवल सांसारिक घटना नहीं, बल्कि धर्म, भक्ति और प्रेम की स्थापना का माध्यम था।

शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

श्रीकृष्ण की महाभारत में भूमिका

 श्रीकृष्ण की महाभारत में भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुआयामी है। वे न केवल इस महाकाव्य के केंद्र बिंदु हैं, बल्कि धर्म, सत्य और न्याय की स्थापना के प्रेरणास्रोत भी हैं। महाभारत में उनकी भूमिका एक मार्गदर्शक, कूटनीतिज्ञ, मित्र, और भगवान के रूप में दिखाई देती है।


1. कुरुक्षेत्र युद्ध के पीछे का कारण

महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण कौरवों और पांडवों के बीच का सत्ता संघर्ष था।

  • दुर्योधन का अधर्म: दुर्योधन ने छल और धोखे से पांडवों को हस्तिनापुर से निर्वासित कर दिया।
  • द्रौपदी का अपमान: कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया, जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी माया से रोका। यह घटना युद्ध की नींव बनी।

2. कूटनीतिक भूमिका

कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध रोकने के लिए कई प्रयास किए।

  • शांति दूत: श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर जाकर दुर्योधन और कौरवों को समझाने का प्रयास किया। उन्होंने पांडवों के लिए सिर्फ पांच गांव मांगे, लेकिन दुर्योधन ने इनकार कर दिया और युद्ध को अनिवार्य बना दिया।
  • दुर्योधन का अहंकार: दुर्योधन ने न केवल शांति प्रस्ताव ठुकराया, बल्कि श्रीकृष्ण को बंदी बनाने का प्रयास भी किया।

3. पांडवों के मित्र और मार्गदर्शक

कृष्ण पांडवों के परम मित्र और मार्गदर्शक थे।

  • अर्जुन के सखा: अर्जुन और श्रीकृष्ण का मित्रता संबंध विशेष था। अर्जुन हर कठिन परिस्थिति में कृष्ण से मार्गदर्शन लेते थे।
  • द्रौपदी की रक्षा: द्रौपदी के चीरहरण के समय कृष्ण ने उसे अनंत वस्त्र प्रदान करके उसकी लज्जा की रक्षा की।
  • युद्ध रणनीति: श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान पांडवों को कई महत्वपूर्ण रणनीतियाँ सुझाईं, जैसे भीष्म और द्रोण का पराभव।

4. गीता का उपदेश

महाभारत में श्रीकृष्ण की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भगवद्गीता का उपदेश देना है।

  • अर्जुन का मोह भंग: युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन अपने संबंधियों को मारने के विचार से दुखी और असमंजस में था।
  • कृष्ण का उपदेश: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, भक्ति, ज्ञान और धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी।
  • गीता का मुख्य संदेश:
    1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन - "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"
    2. सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज - "सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ।"
    3. आत्मा अमर है: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मा अजर-अमर है और शरीर मात्र नश्वर है।

5. कूटनीति और रणनीतियाँ

श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध में विजय दिलाने के लिए कई कूटनीतिक निर्णय लिए।

  • शिखंडी का उपयोग: भीष्म पितामह को हराने के लिए शिखंडी को आगे रखा, क्योंकि भीष्म ने शिखंडी पर शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी।
  • द्रोण का वध: द्रोणाचार्य को हराने के लिए श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से असत्य कहलवाया ("अश्वत्थामा हतोऽगजः")।
  • कर्ण का वध: कर्ण को कमजोर करने के लिए उसकी कवच-कुंडल को इंद्र द्वारा छीनने की योजना बनाई।
  • दुर्योधन का अंत: भीम को गदा युद्ध में दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करने की प्रेरणा दी।

6. धर्म और अधर्म के बीच विभाजन

कृष्ण ने स्पष्ट किया कि धर्म के मार्ग पर चलना ही सत्य और न्याय की स्थापना का आधार है।

  • कौरव अधर्म के मार्ग पर थे, जबकि पांडव धर्म के रक्षक थे।
  • श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध के लिए प्रेरित किया, यह बताते हुए कि अधर्म का नाश अनिवार्य है।

7. युद्ध में निष्पक्षता

जब युद्ध की तैयारी हो रही थी, तो श्रीकृष्ण ने निष्पक्षता बनाए रखी।

  • उन्होंने कहा कि एक ओर उनकी नारायणी सेना होगी और दूसरी ओर वे स्वयं बिना शस्त्र उठाए रहेंगे।
  • अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना, जबकि दुर्योधन ने उनकी नारायणी सेना को।

8. युद्ध के बाद की भूमिका

  • धर्म की स्थापना: युद्ध के बाद, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धर्म के मार्ग पर चलने और न्यायपूर्वक राज्य करने की शिक्षा दी।
  • गांधारी का शाप: गांधारी ने अपने सौ पुत्रों की मृत्यु से दुखी होकर कृष्ण को शाप दिया कि उनके यदुवंश का भी अंत होगा। कृष्ण ने इसे स्वीकार किया और कहा कि यह धर्म का चक्र है।

महाभारत में श्रीकृष्ण का संदेश

  1. धर्म और सत्य की विजय निश्चित है।
  2. जीवन में कर्म करना ही सबसे महत्वपूर्ण है।
  3. अहंकार और अधर्म का अंत तय है।
  4. भगवान अपने भक्तों के साथ हर परिस्थिति में खड़े रहते हैं।

श्रीकृष्ण की भूमिका महाभारत में केवल एक मार्गदर्शक या भगवान के रूप में नहीं, बल्कि धर्म के सार को स्पष्ट करने वाले के रूप में महत्वपूर्ण है। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

द्वारका नगरी की स्थापना

 द्वारका नगरी की स्थापना श्रीकृष्ण की जीवनगाथा का एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक प्रसंग है। यह घटना उनके कूटनीतिक कौशल, नेतृत्व और धर्म की स्थापना के लिए उनकी दूरदर्शिता का परिचय देती है। द्वारका नगरी को आज भी "स्वर्ण नगरी" और "कृष्ण की राजधानी" के रूप में जाना जाता है।


मथुरा पर आक्रमण और समस्या

कंस वध के बाद, श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया। लेकिन कंस का ससुर और मगध का शक्तिशाली राजा जरासंध श्रीकृष्ण और बलराम से प्रतिशोध लेने के लिए मथुरा पर बार-बार आक्रमण करने लगा।

  • जरासंध के आक्रमण: जरासंध ने मथुरा पर 17 बार हमला किया। हर बार कृष्ण और बलराम ने उसकी सेना को हराया, लेकिन जरासंध को नहीं मारा।
  • कालयवन का हमला: जरासंध के साथ-साथ कालयवन नामक मलेच्छ राजा ने भी मथुरा पर आक्रमण कर दिया।
    इस स्थिति में मथुरा की रक्षा करना और वहां के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना कठिन हो गया।

द्वारका नगरी की स्थापना का निर्णय

श्रीकृष्ण ने यह समझा कि जरासंध और अन्य शत्रुओं से बार-बार युद्ध करना मथुरा और वहां के नागरिकों के लिए नुकसानदेह होगा। उन्होंने शांति और सुरक्षा के लिए एक नई नगरी बसाने का निर्णय लिया।

  • श्रीकृष्ण ने समुद्र देवता से प्रार्थना की और उनसे भूमि प्रदान करने का अनुरोध किया।
  • समुद्र ने अपने जल से पीछे हटकर भूमि का एक भाग प्रदान किया।

स्वर्ण नगरी द्वारका का निर्माण

  1. मय दानव का सहयोग: द्वारका नगरी के निर्माण में असुरों के महान शिल्पकार मय दानव ने श्रीकृष्ण की सहायता की। उन्होंने द्वारका को सुंदर महलों, मंदिरों, और जल निकासी व्यवस्था से सुसज्जित किया।
  2. विशेषताएँ:
    • द्वारका चारों ओर से समुद्र से घिरी हुई थी, जिससे यह शत्रुओं के आक्रमण से सुरक्षित थी।
    • नगरी में स्वर्ण और रत्नों से सुसज्जित भव्य महल थे।
    • द्वारका के द्वार इतने विशाल और सुंदर थे कि इसे "द्वारावती" भी कहा जाता है।

द्वारका में यदुवंश का पुनर्वास

श्रीकृष्ण ने मथुरा के सभी यदुवंशियों को द्वारका में बसने के लिए बुलाया। उन्होंने यदुवंश के लिए एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन की व्यवस्था की।

  • यदुवंशी द्वारका में खुशी-खुशी रहने लगे और वहां श्रीकृष्ण को अपना राजा मान लिया।
  • द्वारका न केवल राजनीति और व्यापार का केंद्र बनी, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और अध्यात्म का भी प्रमुख केंद्र बन गई।

कालयवन और जरासंध का अंत

द्वारका स्थापित करने के बाद श्रीकृष्ण ने कालयवन का वध किया। उन्होंने जरासंध का अंत सीधे युद्ध में नहीं किया, बल्कि पांडवों की सहायता से उसकी मृत्यु का मार्ग प्रशस्त किया।


द्वारका का महत्व

  1. शांति और सुरक्षा का प्रतीक: द्वारका नगरी ने यह संदेश दिया कि युद्ध से बचने के लिए कूटनीति और शांतिपूर्ण समाधान अधिक महत्वपूर्ण हैं।
  2. धर्म और संस्कृति का केंद्र: द्वारका श्रीकृष्ण की शिक्षाओं और उनकी लीलाओं का केंद्र रही।
  3. अखंड समृद्धि: द्वारका का निर्माण यह दिखाता है कि भगवान अपने भक्तों की सुख-शांति के लिए हर संभव प्रयास करते हैं।

द्वारका का अंत

महाभारत युद्ध के बाद, यदुवंशियों में आपसी कलह और विनाश हुआ। इस घटना के बाद, श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाएं समाप्त कीं और द्वारका नगरी समुद्र में विलीन हो गई।
आज भी गुजरात के तटीय क्षेत्र में समुद्र के नीचे प्राचीन द्वारका के अवशेष पाए जाते हैं, जो इसकी ऐतिहासिकता और दिव्यता को प्रमाणित करते हैं।

द्वारका नगरी श्रीकृष्ण के नेतृत्व, कूटनीति और धर्म की विजय का अद्भुत उदाहरण है।

शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

कंस वध

 कंस वध श्रीकृष्ण की जीवन गाथा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और धर्म विजय का प्रतीक प्रसंग है। यह घटना अधर्म और अत्याचार के अंत तथा धर्म और न्याय की स्थापना का संदेश देती है।

कंस का आतंक

कंस मथुरा का क्रूर राजा था। उसने अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर मथुरा का शासन छीन लिया था। कंस ने अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को जेल में बंद कर दिया, क्योंकि आकाशवाणी हुई थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा। कंस ने देवकी के छह पुत्रों को मार डाला, लेकिन सातवां पुत्र (बलराम) और आठवां पुत्र (कृष्ण) चमत्कारिक ढंग से बच गए।

श्रीकृष्ण का गोकुल और वृंदावन में पालन-पोषण

कृष्ण को वसुदेव ने गोकुल में नंद बाबा और यशोदा माता के पास छोड़ दिया था। गोकुल और वृंदावन में अपनी बाललीलाओं के दौरान कृष्ण ने कई राक्षसों का वध किया, जिन्हें कंस ने भेजा था। इनमें पूतना, तृणावर्त, बकासुर और कालिया नाग जैसे राक्षस शामिल थे।

कंस द्वारा अक्रूर का भेजना

जब कंस को यह पता चला कि गोकुल में नंद बाबा के यहां रहने वाला बालक ही देवकी का आठवां पुत्र है, तो उसने कृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाने की योजना बनाई। उसने अपने मंत्री अक्रूर को भेजा और कृष्ण-बलराम को मथुरा आने का निमंत्रण दिया।

अक्रूर ने कृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाने का अनुरोध किया। भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने इसे स्वीकार किया और मथुरा जाने के लिए तैयार हुए।

मथुरा में प्रवेश

जब कृष्ण और बलराम मथुरा पहुंचे, तो उन्होंने वहां कंस के अत्याचारों को देखा। उन्होंने मल्लयुद्ध (कुश्ती) का आयोजन किया था, जिसमें चाणूर और मुष्टिक जैसे बलवान पहलवानों को भेजा गया।

  1. कुश्ती का आयोजन: कंस ने योजना बनाई कि चाणूर और मुष्टिक, जो उसके मुख्य पहलवान थे, कृष्ण और बलराम को कुश्ती में मार डालेंगे। लेकिन कृष्ण ने चाणूर का वध किया और बलराम ने मुष्टिक का वध कर दिया।

  2. हाथी कुबलयापीड़ का वध: कुश्ती से पहले कंस ने कृष्ण को रोकने के लिए विशाल हाथी कुबलयापीड़ को भेजा, लेकिन कृष्ण ने उसे भी मार गिराया।

कंस का वध

कुश्ती के बाद कृष्ण ने कंस को खुला चुनौती दी। कंस ने अपने सैनिकों को बुलाया, लेकिन कृष्ण ने उन्हें हराकर सीधे कंस के सिंहासन पर चढ़ाई की।

  • कृष्ण ने कंस को उसके बाल पकड़कर नीचे गिरा दिया और अपने गदा से उसका वध कर दिया।
  • बलराम ने कंस के आठ भाइयों का वध किया, जो उसकी सहायता के लिए आए थे।

कंस वध के बाद

  1. माता-पिता की मुक्ति: कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव को कारागार से मुक्त किया।
  2. उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाना: कृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया और मथुरा के शासन को पुनः धर्म के पथ पर स्थापित किया।
  3. जरा और अधर्म का अंत: कंस वध ने यह प्रमाणित किया कि अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है।

महत्व

कंस वध केवल एक राक्षस या अत्याचारी का अंत नहीं था, बल्कि यह धर्म की स्थापना और सत्य की विजय का प्रतीक है। यह घटना यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों और धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं और अधर्म को नष्ट करते हैं।

शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

श्रीकृष्ण बाललीलाएँ

 श्रीकृष्ण की बाललीलाएँ उनके दिव्य व्यक्तित्व का परिचय कराती हैं और उनकी अलौकिक शक्तियों को प्रकट करती हैं। गोकुल और वृंदावन में उनके बचपन के समय की लीलाएँ अत्यंत मनोरम और शिक्षाप्रद हैं।

1. माखन चुराना और माखन चोर कहलाना

श्रीकृष्ण को बचपन से ही माखन बहुत प्रिय था। वे गोकुल की गोपियों के घर जाकर माखन चुराते थे। कई बार गोपियाँ उन्हें पकड़ने की कोशिश करतीं, लेकिन वे अपनी चतुराई और बाल सुलभ मासूमियत से बच निकलते।
महत्व: यह लीला सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम के लिए हर तरह की लीला कर सकते हैं।


2. तृणावर्त का वध

कंस ने गोकुल में श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक असुर तृणावर्त को भेजा, जो प्रचंड आंधी का रूप लेकर आया। तृणावर्त ने कृष्ण को उठाकर आकाश में ले जाने का प्रयास किया, लेकिन कृष्ण ने उसका गला इतनी शक्ति से पकड़ा कि वह वहीं मरकर गिर पड़ा।
महत्व: यह लीला दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों की हर विपत्ति से रक्षा करते हैं।


3. कालिया नाग का दमन

यमुना नदी में कालिया नामक विषैला नाग रहता था, जिससे नदी का पानी जहरीला हो गया था। जब गोकुलवासी इस समस्या से परेशान हुए, तो कृष्ण ने यमुना में जाकर कालिया नाग के फनों पर नृत्य किया और उसे नदी छोड़कर जाने को विवश कर दिया।
महत्व: यह लीला हमें सिखाती है कि अहंकारी और दुष्ट प्रवृत्तियों का नाश करने के लिए भगवान स्वयं अवतार लेते हैं।


4. गोपियों के वस्त्र हरण

श्रीकृष्ण ने एक बार गोपियों के वस्त्र चुराकर उन्हें पेड़ पर रख दिया। जब गोपियाँ उन्हें लेने आईं, तो कृष्ण ने कहा कि वे भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक हैं और अपने अहंकार को त्यागकर ही उन्हें वस्त्र मिलेंगे।
महत्व: इस लीला का आध्यात्मिक अर्थ है कि आत्मा को परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होना चाहिए।


5. गोवर्धन पर्वत उठाना

गोकुलवासी हर वर्ष इंद्र देव की पूजा करते थे। कृष्ण ने उन्हें समझाया कि गोवर्धन पर्वत और प्रकृति की पूजा करनी चाहिए क्योंकि वे प्रत्यक्ष रूप से जीवन देते हैं। इंद्र ने क्रोधित होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी। कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों को आश्रय दिया।
महत्व: यह लीला सिखाती है कि अहंकार का त्याग और प्रकृति का सम्मान आवश्यक है।


6. पूतना वध

कंस ने कृष्ण को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा। वह सुंदर स्त्री का रूप धारण करके गोकुल आई और कृष्ण को विषपान कराने का प्रयास किया। लेकिन कृष्ण ने उसकी छाती से प्राण निकाल लिए।
महत्व: भगवान भक्त और अभक्त दोनों को उनके कर्मों का फल देते हैं।


7. उखल बंधन (दामोदर लीला)

यशोदा मैया ने एक दिन कृष्ण को माखन चुराने के कारण ऊखल (जोड़ने की लकड़ी) से बांध दिया। बंधन में रहते हुए भी कृष्ण ने दो विशाल वृक्षों को गिरा दिया। ये वृक्ष वास्तव में नलकूबर और मणिग्रीव नामक देवता थे, जिन्हें शाप मिला था।
महत्व: यह लीला दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों को उनके बंधनों से मुक्त कर देते हैं।


8. धेनुकासुर और बकासुर का वध

धेनुकासुर और बकासुर जैसे राक्षसों को कंस ने कृष्ण को मारने के लिए भेजा। लेकिन कृष्ण और बलराम ने अपनी अलौकिक शक्तियों से उनका वध कर गोकुलवासियों को सुरक्षित किया।
महत्व: भगवान धर्म की स्थापना के लिए अधर्म का नाश करते हैं।


9. राधा-कृष्ण का प्रेम

कृष्ण और राधा का प्रेम दिव्यता और भक्ति का प्रतीक है। उनका प्रेम सांसारिक नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। वृंदावन में रासलीला के माध्यम से उन्होंने भक्ति योग का संदेश दिया।
महत्व: राधा-कृष्ण का प्रेम भक्त और भगवान के शुद्ध, निश्छल और अनन्य प्रेम का आदर्श है।


श्रीकृष्ण की बाललीलाएँ न केवल उनकी अलौकिकता का परिचय कराती हैं, बल्कि यह सिखाती हैं कि जीवन में भक्ति, प्रेम, समर्पण और धर्म का पालन ही सबसे महत्वपूर्ण है।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...