शनिवार, 25 अगस्त 2018

उत्तरा आर्चिक – सामवेद का द्वितीय भाग

उत्तरा आर्चिक – सामवेद का द्वितीय भाग

उत्तरा आर्चिक (Uttara Ārcika) सामवेद संहिता का दूसरा भाग है। इसमें मुख्य रूप से यज्ञों और धार्मिक अनुष्ठानों में गाए जाने वाले विशेष मंत्र संकलित हैं। यह भाग विशेष रूप से सोमयज्ञ और अन्य वैदिक यज्ञों में गाए जाने वाले सामगानों का वर्णन करता है।


🔹 उत्तरा आर्चिक की विशेषताएँ

वर्गविवरण
अर्थ"उत्तरा" का अर्थ है "बाद का" और "आर्चिक" का अर्थ है "मंत्रों का संकलन", अर्थात "यज्ञों के बाद गाए जाने वाले मंत्र"।
मुख्य विषयदेवताओं की स्तुति, यज्ञीय गायन, सोमयज्ञ, हवन मंत्र
संरचनासामवेद संहिता का दूसरा भाग
मुख्य उपयोगविशेष रूप से सोमयज्ञ और अग्निहोत्र में गाया जाता था
सम्बंधित वेदऋग्वेद (अधिकांश मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं)

👉 उत्तरा आर्चिक को यज्ञों के प्रमुख भाग में गाए जाने वाले सामगानों का संकलन माना जाता है।


🔹 उत्तरा आर्चिक की संरचना

🔹 इसमें मुख्य रूप से तीन प्रकार के सामगान होते हैं:

सामगान का प्रकारविवरण
ग्राह्य साममुख्य मंत्र जो यज्ञों में उच्चारित किए जाते हैं।
उत्सर्ग सामयज्ञ की पूर्णाहुति के समय गाए जाने वाले मंत्र।
पावमान सामसोम रस से संबंधित विशेष मंत्र।

👉 उत्तरा आर्चिक का उपयोग विशेष रूप से "सोमयज्ञ" में होता था।


🔹 उत्तरा आर्चिक के प्रमुख विषय

1️⃣ सोमयज्ञ और देवताओं की स्तुति

  • उत्तरा आर्चिक का मुख्य उद्देश्य सोमयज्ञ में देवताओं का आह्वान करना है।
  • इसमें सोम, इंद्र, अग्नि, वरुण और मरुतगण की विशेष स्तुतियाँ हैं।

📖 मंत्र उदाहरण (सामवेद 2.1.1)

"सोमं राजानं वरुणं यजामहे।"
📖 अर्थ: हम सोम और वरुण की पूजा करते हैं।

👉 सोमयज्ञ के दौरान इन मंत्रों का गान अनिवार्य था।


2️⃣ यज्ञों के अंत में गाए जाने वाले उत्सर्ग साम

  • यज्ञ की पूर्णाहुति पर विशेष मंत्र गाए जाते थे।
  • देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण किया जाता था।

📖 मंत्र उदाहरण (सामवेद 2.2.4)

"स्वस्ति न इन्द्रः स्वस्ति नः पूषा।"
📖 अर्थ: इंद्र और पूषा (सूर्य देवता) हमें आशीर्वाद दें।

👉 यह मंत्र यज्ञों की समाप्ति पर गाया जाता था।


3️⃣ पावमान साम – सोम रस के शुद्धिकरण के मंत्र

  • सोम रस के शुद्धिकरण के लिए गाए जाने वाले विशेष मंत्र।
  • सोम को देवताओं का प्रिय पेय माना जाता था।

📖 मंत्र उदाहरण (सामवेद 2.3.3)

"पवस्व सोम धारया।"
📖 अर्थ: हे सोम, शुद्ध रूप में प्रवाहित हो।

👉 पावमान साम को सोमयज्ञ में विशेष रूप से गाया जाता था।


🔹 उत्तरा आर्चिक का उपयोग और महत्व

1️⃣ यज्ञों में प्रयोग

  • सोमयज्ञ, राजसूय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ और अग्निहोत्र में उपयोग किया जाता था।
  • यज्ञों की पूर्णाहुति के समय विशेष सामगान गाए जाते थे।

2️⃣ भारतीय संगीत में योगदान

  • उत्तरा आर्चिक के स्वर और लय भारतीय संगीत के विकास में सहायक बने
  • सामगान से भारतीय राग प्रणाली का विकास हुआ

3️⃣ भक्ति और ध्यान में उपयोग

  • उत्तरा आर्चिक के मंत्रों को ध्यान और भक्ति के लिए गाया जाता था
  • मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में इनका विशेष महत्व था।

🔹 उत्तरा आर्चिक और आधुनिक युग

1️⃣ वेदपाठ और शास्त्रीय संगीत

  • आज भी वेदपाठ और भजन-कीर्तन में उत्तरा आर्चिक के मंत्रों का उपयोग होता है
  • सामवेद के यह मंत्र भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूल में हैं

2️⃣ ध्यान और मेडिटेशन

  • उत्तरा आर्चिक के मंत्रों को ध्यान और मेडिटेशन के लिए प्रयोग किया जाता है
  • वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि इन मंत्रों से मानसिक शांति मिलती है

3️⃣ विज्ञान और ध्वनि प्रभाव

  • सामवेद के मंत्रों से शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है
  • इनका उच्चारण एकाग्रता और ध्यान शक्ति को बढ़ाता है

🔹 निष्कर्ष

  • उत्तरा आर्चिक सामवेद संहिता का द्वितीय भाग है, जिसमें प्रमुख यज्ञों में गाए जाने वाले मंत्र संकलित हैं।
  • इसका मुख्य उद्देश्य सोमयज्ञ, हवन, और देवताओं की स्तुति करना है
  • भारतीय संगीत, भक्ति परंपरा और ध्यान साधना में इसका महत्वपूर्ण योगदान है
  • आज भी इन मंत्रों का उपयोग मंदिरों, वेदपाठ, ध्यान और योग में किया जाता है।

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