शनिवार, 28 जनवरी 2017

भक्ति आंदोलन

 भक्ति आंदोलन भारत के मध्यकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सामाजिक आंदोलन था। इसने धार्मिकता को पुनः परिभाषित किया और सामाजिक समानता, सरलता, और भक्ति के माध्यम से ईश्वर की आराधना पर जोर दिया। यह आंदोलन 7वीं से 17वीं शताब्दी के बीच विशेष रूप से प्रभावी रहा।


भक्ति आंदोलन का परिचय

  • भक्ति का अर्थ: भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति प्रेम, समर्पण, और भक्ति।
  • यह आंदोलन जाति, वर्ग, और लिंग भेदभाव के खिलाफ था और सभी के लिए समानता का संदेश लेकर आया।
  • इसका उद्देश्य ईश्वर की आराधना को सरल बनाना और व्यक्तिगत रूप से सुलभ बनाना था, जिसमें बाहरी आडंबरों और कर्मकांडों की आवश्यकता नहीं थी।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख तत्व

  1. ईश्वर का सार्वभौमिक स्वरूप:

    • ईश्वर साकार (राम, कृष्ण) या निराकार (निर्गुण ब्रह्म) हो सकते हैं।
    • ईश्वर को प्रेम और भक्ति के माध्यम से पाया जा सकता है।
  2. सामाजिक समानता:

    • जाति, वर्ग, और लिंग भेद को नकारा गया।
    • भक्ति आंदोलन ने दलितों, महिलाओं और समाज के निचले वर्ग को सशक्त बनाया।
  3. भाषाई आंदोलन:

    • संतों और कवियों ने स्थानीय भाषाओं में अपने विचार व्यक्त किए।
    • संस्कृत के बजाय हिंदी, तमिल, बंगाली, कन्नड़ आदि भाषाओं में भक्ति गीत और काव्य रचे गए।
  4. आडंबर विरोध:

    • मूर्ति पूजा, यज्ञ, और कठोर कर्मकांडों का विरोध किया गया।
    • सरलता और सच्चाई को महत्व दिया गया।

भक्ति आंदोलन के दो मुख्य रूप

  1. सगुण भक्ति (ईश्वर का साकार रूप)

    • भगवान को मूर्त रूप में पूजने की परंपरा।
    • राम और कृष्ण की आराधना।
    • प्रमुख सगुण भक्त कवि:
      • तुलसीदास: "रामचरितमानस" के रचयिता।
      • मीरा बाई: कृष्ण के प्रति उनकी अनन्य भक्ति प्रसिद्ध है।
      • सूरदास: कृष्ण लीला और वात्सल्य भाव का वर्णन।
  2. निर्गुण भक्ति (ईश्वर का निराकार रूप)

    • ईश्वर को बिना किसी मूर्ति या रूप के पूजा गया।
    • प्रमुख निर्गुण भक्त संत:
      • कबीर: उनके दोहे और साखियां समाज सुधार का संदेश देती हैं।
      • गुरु नानक: सिख धर्म के संस्थापक, जिन्होंने "एक ओंकार" का संदेश दिया।
      • दादू दयाल: जातिवाद और धार्मिक भेदभाव का विरोध।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत और कवि

संत/कविमुख्य विचारप्रमुख रचनाएँ
कबीरनिर्गुण भक्ति, धर्मनिरपेक्षतासाखी, दोहे
तुलसीदासराम की सगुण भक्तिरामचरितमानस
सूरदासकृष्ण की लीला और प्रेमसूरसागर
मीरा बाईकृष्ण भक्ति, प्रेम और समर्पणपदावली
चैतन्य महाप्रभुकृष्ण भक्ति, हरिनाम संकीर्तन-
गुरु नानकएक ईश्वर, समानतागुरु ग्रंथ साहिब में संकलित विचार

भक्ति आंदोलन का प्रभाव

  1. सामाजिक सुधार:

    • जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई।
    • महिलाओं और दलितों को धर्म के क्षेत्र में समान अधिकार मिले।
  2. धार्मिक एकता:

    • हिंदू और मुस्लिम संतों ने समानता और भाईचारे का संदेश दिया।
    • हिंदू-मुस्लिम सद्भाव को बढ़ावा मिला।
  3. भाषा और साहित्य का विकास:

    • विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में भक्ति साहित्य का सृजन हुआ।
    • भक्त कवियों के गीत, पद, और दोहे जन-जन तक पहुँचे।
  4. संगीत और कला का विकास:

    • भक्ति गीतों और भजनों ने संगीत को नया आयाम दिया।
    • हरिनाम संकीर्तन और भजनों का प्रचलन बढ़ा।

भक्ति आंदोलन का महत्व

  • भक्ति आंदोलन ने समाज में एकता, प्रेम, और समानता का संदेश दिया।
  • इसने धार्मिकता को कर्मकांड से हटाकर व्यक्तिगत अनुभव और ईश्वर से जोड़ने की दिशा में प्रेरित किया।
  • यह आंदोलन आज भी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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