शनिवार, 30 दिसंबर 2023

भगवद्गीता: अध्याय 1: अर्जुनविषादयोग

भगवद गीता – प्रथम अध्याय: अर्जुनविषादयोग

(Arjuna Vishada Yoga – The Yoga of Arjuna’s Dejection)

अर्जुनविषादयोग भगवद गीता का पहला अध्याय है, जिसमें अर्जुन का मानसिक द्वंद्व (conflict), मोह (delusion) और विषाद (sorrow) वर्णित है। यह अध्याय उस मनोस्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों को लेकर संशय में आ जाता है।

👉 मुख्य भाव: अर्जुन युद्धभूमि में अपने ही बंधु-बांधवों को देखकर कर्तव्य और भावनाओं के बीच फँस जाता है। यह अध्याय अर्जुन के मोह (अज्ञान) से शुरू होता है और श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन की भूमिका तैयार करता है।


🔹 1️⃣ अध्याय का संक्षिप्त सारांश

📖 युद्ध का दृश्य और अर्जुन का संकट

  • कुरुक्षेत्र के युद्ध में दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं।
  • अर्जुन अपने रथ को युद्धभूमि में रखवाकर अपने ही बंधु-बांधवों को देखकर करुणा और मोह से भर जाता है।
  • वह अपने कर्तव्य को लेकर असमंजस में पड़ जाता है और युद्ध करने से इनकार कर देता है।
  • अर्जुन कहता है कि "मैं अपने ही गुरुजनों, भाइयों और परिजनों की हत्या नहीं कर सकता।"
  • उसके मन में धर्म और अधर्म का द्वंद्व शुरू हो जाता है, और वह अपने हथियार त्याग देता है।

📖 श्लोक (1.47):

"संजय उवाच: एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥"

📖 अर्थ: ऐसा कहकर अर्जुन युद्धभूमि में अपना धनुष-बाण त्याग कर रथ में बैठ जाता है और शोक में डूब जाता है।

👉 इस अध्याय में अर्जुन की मानसिक स्थिति और उसका संशय उजागर होता है, जो आगे श्रीकृष्ण के उपदेश का कारण बनता है।


🔹 2️⃣ प्रमुख पात्र और घटनाएँ

📌 1. धृतराष्ट्र और संजय का संवाद (Verses 1-20)

  • राजा धृतराष्ट्र (जो अंधे हैं) संजय से युद्ध का विवरण पूछते हैं।
  • संजय अपनी दिव्य दृष्टि से युद्ध का वर्णन करते हैं।

📖 श्लोक (1.1):

"धृतराष्ट्र उवाच: धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥"

📖 अर्थ: धृतराष्ट्र बोले – हे संजय! धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए एकत्रित मेरे और पांडवों के पुत्रों ने क्या किया?

👉 धृतराष्ट्र को चिंता है कि धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में पांडव धर्म के प्रभाव से विजयी न हो जाएँ।


📌 2. अर्जुन का मोह और विषाद (Verses 21-47)

  • अर्जुन अपने रथ को सेना के बीच रखवाकर योद्धाओं को देखता है।
  • वह अपने बंधु-बांधवों को देखकर मोहग्रस्त हो जाता है।
  • वह कहता है कि यह युद्ध विनाशकारी होगा और वंश का नाश कर देगा।
  • वह कर्तव्य और प्रेम के बीच उलझ जाता है और हथियार डाल देता है।

📖 श्लोक (1.30):

"सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥"

📖 अर्थ: मेरा शरीर कांप रहा है, मेरा मुख सूख रहा है, मेरा शरीर थरथरा रहा है और मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं।

👉 अर्जुन की यह स्थिति दर्शाती है कि जब मन मोह और संदेह में पड़ जाता है, तो कर्तव्य का पालन कठिन हो जाता है।


🔹 3️⃣ अर्जुन के संशय के मुख्य कारण

1. परिवार और गुरुजनों के प्रति मोह (Attachment to Family and Teachers)

  • अर्जुन सोचता है कि गुरु द्रोण, भीष्म पितामह, भाईयों और रिश्तेदारों को मारकर वह सुखी नहीं रह सकता।

2. अधर्म और कुलनाश का भय (Fear of Sin and Destruction of Lineage)

  • यदि यह युद्ध हुआ तो कुल का नाश हो जाएगा और स्त्रियाँ भ्रष्ट हो जाएँगी, जिससे अधर्म बढ़ेगा।

3. स्वार्थ और लोभ से युद्ध करने का संकोच (Doubt About Fighting for Selfish Gains)

  • अर्जुन सोचता है कि यदि हम राज्य और सुख के लिए युद्ध करें, तो यह अधर्म होगा।

4. अहिंसा और करुणा की भावना (Compassion and Non-Violence)

  • अर्जुन को लगता है कि युद्ध से केवल दुख और विनाश होगा, जिससे कुछ भी अच्छा नहीं होगा।

📖 श्लोक (1.45):

"अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥"

📖 अर्थ: यह कितनी बड़ी विडंबना है कि हम राज्य और सुख के लोभ में अपने ही स्वजनों की हत्या करने को तैयार हैं।

👉 अर्जुन की यह दुविधा हर इंसान के जीवन में आती है, जब वह सही और गलत के बीच निर्णय नहीं ले पाता।


🔹 4️⃣ अध्याय से मिलने वाली शिक्षाएँ

📖 इस अध्याय में अर्जुन के मोह से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. जब मन संदेह में होता है, तब सही निर्णय लेना कठिन हो जाता है।
2. मोह और अज्ञान व्यक्ति को कर्तव्य पालन से रोक सकते हैं।
3. भावनाओं में बहकर धर्म और कर्तव्य से विचलित नहीं होना चाहिए।
4. जीवन में संघर्ष और कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन उनसे घबराने के बजाय उनका समाधान खोजना चाहिए।

👉 अर्जुन के इस विषाद से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि जीवन में आने वाली दुविधाओं को कैसे दूर किया जाए।


🔹 5️⃣ संजय का दृष्टिकोण – अध्याय का समापन

  • संजय बताते हैं कि अर्जुन ने युद्ध करने से इनकार कर दिया और अपना धनुष-बाण त्याग दिया।
  • अब श्रीकृष्ण अर्जुन के संशय को दूर करने के लिए उसे गीता का उपदेश देने वाले हैं।

📖 श्लोक (1.47):

"संजय उवाच: एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥"

📖 अर्थ: ऐसा कहकर अर्जुन युद्धभूमि में अपना धनुष-बाण त्याग कर रथ में बैठ जाता है और शोक में डूब जाता है।

👉 यहीं से दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण का उपदेश शुरू होता है, जहाँ वे अर्जुन को धर्म और कर्तव्य का सही अर्थ समझाते हैं।


🔹 निष्कर्ष

1️⃣ अर्जुनविषादयोग गीता का पहला अध्याय है, जिसमें अर्जुन युद्ध को लेकर संशय में पड़ जाता है और उसे मोह हो जाता है।
2️⃣ यह अध्याय दिखाता है कि जब व्यक्ति भावनाओं में बहता है, तो वह अपने कर्तव्य से दूर हो जाता है।
3️⃣ अर्जुन का यह मानसिक संघर्ष हर मनुष्य के जीवन का प्रतीक है, जब वह सही और गलत के बीच उलझ जाता है।
4️⃣ अब श्रीकृष्ण अर्जुन को इस मोह से बाहर निकालने के लिए उसे गीता का दिव्य ज्ञान देंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...