शनिवार, 2 सितंबर 2023

कुंभ मेला

 कुंभ मेले की पौराणिक कथा

कुंभ मेले की कहानी हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों और पुराणों में वर्णित है। यह कथा समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी हुई है, जो देवताओं (सुरों) और असुरों के बीच हुआ था। इस कथा में अमृत, अमरता का रस, प्राप्त करने की बात कही गई है।

समुद्र मंथन की कथा:

प्राचीन काल में देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके। मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नाग वासुकी को रस्सी बनाया गया। मंथन के दौरान समुद्र से कई रत्न और वस्तुएं निकलीं, जैसे कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, लक्ष्मी देवी, और अंततः अमृत कलश।

अमृत कलश पर विवाद:

जब अमृत कलश निकला, तो देवताओं और असुरों के बीच उसे पाने के लिए विवाद शुरू हो गया। अमृत को बचाने और असुरों के हाथों से दूर रखने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अमृत को देवताओं में बांटने का निश्चय किया।

अमृत की बूंदें गिरना:

असुरों ने जब अमृत कलश छीनने की कोशिश की, तब भगवान विष्णु ने गरुड़ को अमृत कलश लेकर सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए कहा। इस दौरान 12 दिनों तक देवता और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं:

  1. हरिद्वार (गंगा नदी)।
  2. प्रयागराज (गंगा, यमुना, सरस्वती संगम)।
  3. उज्जैन (क्षिप्रा नदी)।
  4. नासिक (गोदावरी नदी)।

कुंभ मेला:

अमृत की इन बूंदों के गिरने वाले स्थानों को अत्यंत पवित्र माना गया। इसीलिए इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

समय निर्धारण:

कुंभ मेले का समय और स्थान ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है। यह उस समय होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की विशेष स्थिति होती है, जिसे पवित्र और आध्यात्मिक रूप से शुभ माना जाता है।

कुंभ मेले के प्रकार:

  1. पूर्ण कुंभ (हर 12 साल)
    यह हर 12 वर्षों में चार स्थलों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) में क्रमवार आयोजित होता है।

  2. अर्ध कुंभ (हर 6 साल)
    हरिद्वार और प्रयागराज में हर 6 वर्षों के अंतराल पर अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है।

  3. महाकुंभ (हर 144 साल)
    महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में 144 वर्षों में एक बार होता है। इसे विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।

  4. सिंहस्थ कुंभ
    उज्जैन में कुंभ मेला तब होता है जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसे सिंहस्थ कुंभ कहते हैं।


आयोजन चक्र का निर्धारण:

कुंभ मेले के आयोजन का स्थान और समय ग्रहों की निम्न स्थितियों के आधार पर तय किया जाता है:

  1. हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं।
  2. प्रयागराज: जब सूर्य मकर राशि और बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं।
  3. उज्जैन: जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।
  4. नासिक: जब सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।

कुंभ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

इस चक्र का महत्व इसलिए है क्योंकि इसे अत्यंत शुभ समय माना जाता है। इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की मान्यता है। कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और भक्ति का संगम है।

कुंभ की शिक्षा:

कुंभ मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, एकता, और भक्ति का प्रतीक है। यह अध्यात्म और समाज को जोड़ने का एक अनोखा अवसर है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...