संत तुकाराम (1608 – 1649) मराठी संत, भक्त और समाज सुधारक थे, जो विठोबा (विठो) या राम के प्रति अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। वे विशेष रूप से संत तुकाराम के अभंगों और कीर्तन के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने भक्ति और समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तुकाराम ने अपने जीवन में पूरी तरह से भगवान के भजन और भक्ति के माध्यम से समाज में सुधार लाने का प्रयास किया और उन्होंने भक्ति आंदोलन को प्रोत्साहित किया।
जीवन परिचय:
संत तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र राज्य के देओंगिरी (अब का येवला) में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उनका जीवन आधिकारिक धर्म से हटकर और सरल था। उनके जीवन की मुख्य विशेषता यह थी कि वे विठोबा (विठो) के प्रति अपनी निरंतर भक्ति में पूरी तरह समर्पित थे और उनके भक्ति गीतों ने महाराष्ट्र और भारत के अन्य हिस्सों में भक्ति आंदोलन को नया मोड़ दिया।
तुकाराम का जीवन साधना और भक्ति में समर्पित था। उनके द्वारा रचित अभंगों (भक्ति गीतों) में भगवान के प्रति प्रेम, भक्ति, और समाज में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ सशक्त संदेश होते थे। वे संत और शब्द के माध्यम से समाज में एकजुटता और मानवता की भावना को फैलाने का कार्य करते थे।
तुकाराम की भक्ति और शिक्षाएँ:
तुकाराम का विश्वास था कि भगवान विठोबा ही सभी समस्याओं का समाधान हैं। उनका मानना था कि बिना किसी जटिलता के, भक्ति का सरल और ईमानदार तरीका ही सबसे उत्तम है। उन्होंने समाज की ऊँच-नीच, जातिवाद, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। वे गरीबों, वंचितों और शोषितों के हक में थे और उनके अभंगों में इनका उल्लेख मिलता है।
अभंग और कीर्तन:
संत तुकाराम के अभंग मराठी भक्ति गीत होते थे, जो भगवान के प्रति उनके भक्ति भाव और जीवन दर्शन का आदान-प्रदान करते थे। अभंगों में प्रेम, भक्ति, और समाज सुधार के विषय होते थे। इन अभंगों का संगीत और शब्द इतने सरल होते थे कि आम जनता भी उन्हें आसानी से समझ सकती थी। उन्होंने कीर्तन के माध्यम से जनता को अपने भगवान के साथ संबंध को गहरा करने का संदेश दिया।
तुकाराम के अभंगों में जो गीत होते थे, वे सरल और अत्यंत प्रभावी होते थे, जिससे श्रोताओं पर गहरी छाप पड़ती थी। उनकी एक प्रसिद्ध अभंग में यह उद्धरण है:
"तुका म्हणे, मी पंढरपूरला जाऊन, विठोबाच्या चरणी नतमस्तक होईन।"
(तुका कहते हैं, मैं पंढरपूर जाऊँगा और विठोबा के चरणों में नतमस्तक होऊँगा।)
तुकाराम का योगदान:
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भक्ति आंदोलन: संत तुकाराम का योगदान विशेष रूप से भक्ति आंदोलन में था। उन्होंने अपने भक्ति गीतों और अभंगों के माध्यम से समाज में धार्मिक जागरूकता और समानता का प्रचार किया।
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सामाजिक सुधार: तुकाराम ने जातिवाद, भेदभाव और आडंबरों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने यह सिखाया कि ईश्वर की भक्ति और प्रेम में किसी भी प्रकार के सामाजिक भेदभाव का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
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सरल भक्ति पद्धति: उन्होंने भक्ति को अत्यंत सरल और सहज रूप में प्रस्तुत किया। उनका कहना था कि भक्ति किसी विशेष जाति या समुदाय के लिए नहीं है, बल्कि यह सभी मानवता के लिए है।
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कीर्तन परंपरा: तुकाराम ने कीर्तन की परंपरा को बढ़ावा दिया, जिसमें भक्तों को एक साथ बैठकर भगवान के नाम का स्मरण करने की प्रेरणा दी जाती थी। यह परंपरा आज भी महाराष्ट्र में लोकप्रिय है।
तुकाराम के प्रमुख उद्धरण:
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"पंढरपूरचा विठोबा माझा हक्काचा आहे."
(पंढरपूर का विठोबा मेरे अधिकार का है।) -
"सर्व प्रपंच ही मोह माया आहे, विठोबा साकार आहे."
(सारा संसार मोह माया है, लेकिन विठोबा ही साकार है।) -
"जो तुका सांगितला त्यालाच ऐका, चुकणार काही नाही."
(जो तुका कहता है, उसे सुनो, इससे कोई गलती नहीं होगी।)
तुकाराम की मृत्यु:
तुकाराम की मृत्यु का समय एक रहस्यमय घटना से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि तुकाराम ने एक दिन पंढरपूर के विठोबा के दर्शन की इच्छा जाहिर की और उसके बाद वह कहीं खो गए। कुछ समय बाद उनके शरीर का कोई पता नहीं चला। यह घटना संत तुकाराम की दिव्यता और आध्यात्मिकता को दर्शाती है, और उनके भक्तों के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण बन गया।
निष्कर्ष:
संत तुकाराम का जीवन और उनके भक्ति गीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। उन्होंने अपनी साधना, भक्ति, और समाज सुधार के माध्यम से भारतीय समाज में एक नई जागरूकता उत्पन्न की। उनके अभंगों ने भारत के भक्ति आंदोलन को नया दिशा दी और आज भी उनकी भक्ति परंपरा लाखों लोगों के दिलों में जीवित है। संत तुकाराम का संदेश आज भी सामूहिक भक्ति, समानता, और मानवता की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करता है।
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