शनिवार, 28 अगस्त 2021

श्री श्री रविशंकर

 श्री श्री रविशंकर एक प्रमुख भारतीय आध्यात्मिक गुरु, ध्यान शिक्षक, और आर्ट ऑफ लिविंग (Art of Living) के संस्थापक हैं। वे एक प्रेरक वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, जिन्होंने अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता, शांति, और मानवता की दिशा में मार्गदर्शन करना बना लिया। उनका ध्यान और साधना का तरीका प्राकृतिक सरलता और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण है, जो लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन ला चुका है।

जीवन परिचय:

श्री श्री रविशंकर का जन्म 13 मई 1956 को तमिलनाडु के Tirumakudalu नामक गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम Ravi Shankar है, लेकिन वे आध्यात्मिक दुनिया में श्री श्री रविशंकर के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे 4 साल की उम्र में वेदों और शास्त्रों का अध्ययन करने लगे थे। अपने युवावस्था में ही, उन्होंने ध्यान और योग की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।

उनकी आध्यात्मिक यात्रा में विशेष मोड़ तब आया जब उन्हें श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रेरणा मिली। बाद में, उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग की स्थापना की, जो एक संगठन है जो दुनिया भर में ध्यान, योग और जीवन को बेहतर बनाने के तरीकों का प्रचार करता है।

श्री श्री रविशंकर की शिक्षाएँ और संदेश:

  1. आध्यात्मिकता और जीवन का उद्देश्य: श्री श्री रविशंकर का मानना है कि आध्यात्मिकता का उद्देश्य सिर्फ ध्यान या साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक तरीका है, जिससे हम अपने जीवन को सही दृष्टिकोण से देख सकते हैं। उनके अनुसार, जीवन का असली उद्देश्य संतुलन, शांति, और खुशी प्राप्त करना है, जिसे हम आध्यात्मिक जागरूकता के द्वारा पा सकते हैं।

    "आध्यात्मिकता का अर्थ है, अपने भीतर की शांतिपूर्ण स्थिति को महसूस करना और उसे हर स्थिति में बनाए रखना।"

    • संदेश: आध्यात्मिकता का उद्देश्य मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करना है।
  2. आर्ट ऑफ लिविंग (Art of Living): आर्ट ऑफ लिविंग एक संस्था है जिसे श्री श्री रविशंकर ने 1981 में स्थापित किया था। इसका उद्देश्य दुनिया भर में लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाना है, साथ ही उन्हें जीवन के कठिन क्षणों में शांतिपूर्ण और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रशिक्षित करना है। इसके द्वारा, लाखों लोग ध्यान, योग, और सांस की तकनीकों का अभ्यास करते हैं।

    "आर्ट ऑफ लिविंग का उद्देश्य मानव जीवन को एक उच्च स्तर पर पहुँचाना और हर व्यक्ति में खुशहाली और शांति का संचार करना है।"

    • संदेश: जीवन को संतुलित और आनंदपूर्ण बनाने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ें और इसके साधन अपनाएँ।
  3. शांति और तनाव मुक्त जीवन: श्री श्री रविशंकर का मानना है कि तनाव और उदासी हमारे भीतर से निकलने वाली नकारात्मक विचारों और भावनाओं का परिणाम हैं। उनके अनुसार, ध्यान, सांस की प्रैक्टिस, और योग के माध्यम से हम अपने जीवन में शांति ला सकते हैं। उन्होंने सुदर्शन क्रिया (Sudarshan Kriya) को एक प्रमुख प्रैक्टिस के रूप में प्रस्तुत किया है, जो मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

    "सांस की गति पर ध्यान केंद्रित करना, आपकी पूरी मानसिक स्थिति को बदल सकता है।"

    • संदेश: सांस की तकनीकें हमारी मानसिक स्थिति को सुधारने में मदद करती हैं।
  4. धार्मिक सहिष्णुता और एकता: श्री श्री रविशंकर हमेशा धार्मिक सहिष्णुता और मानवता के महत्व की बात करते हैं। वे मानते हैं कि धर्म या जाति के नाम पर किसी भी प्रकार का भेदभाव गलत है। उन्होंने हमेशा यह सिखाया कि दुनिया में प्रेम, शांति, और एकता का संदेश फैलाना चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति और धर्म का लक्ष्य एक ही है—आध्यात्मिक उन्नति और मानवता की सेवा।

    "धर्म केवल एक रास्ता है, लेकिन लक्ष्य वही है: शांति और प्रेम।"

    • संदेश: धर्म भिन्न हो सकते हैं, लेकिन सभी धर्मों का अंत लक्ष्य एक ही है—आध्यात्मिक उन्नति और प्रेम।
  5. प्राकृतिक जीवन और स्वास्थ्य: श्री श्री रविशंकर ने यह भी सिखाया है कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्राकृतिक जीवन शैली का पालन करना आवश्यक है। वे कहते हैं कि हमें अपनी आहार, जीवन के तरीके, और वातावरण को स्वस्थ बनाए रखना चाहिए, ताकि हम शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रहें। उन्होंने प्राकृतिक भोजन और स्वास्थ्यपूर्ण जीवन शैली को बढ़ावा दिया।

    "स्वास्थ्य केवल शरीर की स्थिति नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्थिति का भी परिणाम है।"

    • संदेश: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए, हमें प्राकृतिक जीवन जीने की आवश्यकता है।

श्री श्री रविशंकर के प्रमुख उद्धरण:

  1. "जब आप मुस्कुराते हैं, तो पूरी दुनिया मुस्कुराती है।"

    • संदेश: सकारात्मकता फैलाने के लिए हमें खुद से शुरुआत करनी होती है। एक साधारण मुस्कान भी वातावरण को बदल सकती है।
  2. "शांति सिर्फ बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि भीतर भी होनी चाहिए।"

    • संदेश: शांति का सबसे बड़ा स्रोत हमारी आंतरिक स्थिति है, इसलिए हमें इसे भीतर से विकसित करना चाहिए।
  3. "हर व्यक्ति के भीतर वह शक्ति है, जो उसे महान बना सकती है।"

    • संदेश: हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानना चाहिए और उसे सही दिशा में उपयोग करना चाहिए।
  4. "जीवन में खुश रहने का रहस्य है, हर परिस्थिति में खुश रहना।"

    • संदेश: खुशी किसी बाहरी चीज पर निर्भर नहीं होती, यह हमारे दृष्टिकोण पर आधारित होती है।

श्री श्री रविशंकर का योगदान:

  1. सुदर्शन क्रिया (Sudarshan Kriya): यह श्री श्री रविशंकर द्वारा विकसित एक विशिष्ट ध्यान और श्वास नियंत्रण तकनीक है, जिसे लाखों लोग मानसिक शांति, तनाव मुक्ति, और शारीरिक ताजगी के लिए अभ्यास करते हैं।

  2. आर्ट ऑफ लिविंग और समाज सेवा: श्री श्री रविशंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग के माध्यम से लाखों लोगों को तनावमुक्त जीवन जीने के लिए प्रशिक्षित किया है। इसके अलावा, उनकी संस्था मानवता के सेवा कार्यों में भी सक्रिय रूप से शामिल है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा राहत, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में।

  3. शांति और सामूहिक ध्यान कार्यक्रम: श्री श्री रविशंकर ने कई देशों में शांति और सामूहिक ध्यान कार्यक्रमों की शुरुआत की है, जहां हजारों लोग एकत्र होकर ध्यान करते हैं और शांति का संदेश फैलाते हैं।

  4. धार्मिक सहिष्णुता: उन्होंने धर्मों के बीच सहिष्णुता और आपसी सम्मान को बढ़ावा दिया है। इसके लिए वे अंतरधार्मिक संवादों का आयोजन करते रहे हैं, जो विभिन्न धार्मिक विश्वासों के लोगों को एकजुट करने का काम करते हैं।

निष्कर्ष:

श्री श्री रविशंकर का जीवन हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिकता का उद्देश्य केवल आत्मज्ञान प्राप्त करना नहीं, बल्कि जीवन को पूरी तरह से आनंदमय, शांति और प्रेमपूर्ण बनाना है। उनका दृष्टिकोण यह है कि शांति और सकारात्मकता केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समाजिक परिवर्तन की भी कुंजी है।

शनिवार, 21 अगस्त 2021

माता अमृतानंदमयी (अम्मा)

 माता अमृतानंदमयी (अम्मा), जिन्हें दुनिया भर में "अम्मा" के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय आध्यात्मिक गुरु और मानवता की सेवा करने वाली एक महान संत हैं। उनका जन्म 27 सितंबर 1953 को केरल के एक छोटे से गाँव Parayakadavu में हुआ था। वे अपनी असीम प्रेम और करुणा के लिए प्रसिद्ध हैं, और उन्हें "सच्चे प्रेम की देवी" के रूप में पूजा जाता है। अम्मा ने लाखों लोगों के जीवन में शांति, प्रेम, और आध्यात्मिकता का संचार किया है।

माता अमृतानंदमयी का जीवन परिचय:

अम्मा का जन्म एक सामान्य ग्रामीण परिवार में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने साधारण जीवन जीने की बजाय अपनी गहरी आध्यात्मिक प्रवृत्तियों का अनुभव करना शुरू कर दिया था। वे बहुत छोटी उम्र से ही लोगों के लिए प्रेम और सेवा का मार्गदर्शन देने लगीं। उनके जीवन का सबसे बड़ा पहलू उनकी करुणा और प्रेम था, जिसके कारण वे पूरी दुनिया में "अम्मा" के रूप में प्रसिद्ध हो गईं।

अम्मा के प्रमुख संदेश:

  1. प्रेम और सेवा: अम्मा का मानना है कि प्रेम और सेवा के माध्यम से ही हम अपने भीतर की आध्यात्मिक शक्ति को पहचान सकते हैं। उनका कहना है कि आध्यात्मिकता का सबसे सशक्त रूप दूसरों की सेवा करने में है। अम्मा का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे अपनी आत्मा को जागृत करने के लिए हम दूसरों की मदद कर सकते हैं।

    "प्रेम वह शक्ति है, जो हमें एक दूसरे के साथ जोड़ती है और जो जीवन को बदल सकती है।"

    • संदेश: प्रेम ही वह शक्ति है जो हमें एक दूसरे से जोड़ती है और संसार में सकारात्मक परिवर्तन लाती है।
  2. आध्यात्मिक जागरूकता: अम्मा का मानना है कि आध्यात्मिकता का वास्तविक अर्थ मनुष्य की आंतरिक शांति और स्वयं को पहचानने में है। वे कहती हैं कि जब हम अपनी आंतरिक स्थिति से जुड़ते हैं, तो हमारे जीवन में वास्तविक परिवर्तन होता है। अम्मा ने हमेशा यह कहा कि आध्यात्मिक यात्रा कोई कठिन या दूर की बात नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा होना चाहिए।

    "जब आप अपने भीतर के सत्य को महसूस करते हैं, तो आपके जीवन में कोई तनाव नहीं होता।"

    • संदेश: आत्मज्ञान और आंतरिक शांति के द्वारा हम तनाव और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
  3. समानता और एकता: अम्मा ने हमेशा यह संदेश दिया है कि धर्म, जाति, और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव करना गलत है। वे मानती हैं कि सभी मनुष्य एक समान हैं और आध्यात्मिक दृष्टि से सभी बराबर हैं। उन्होंने हमेशा यह कहा कि ईश्वर एक ही है और वह सभी में विद्यमान है।

    "ईश्वर एक है, और हर व्यक्ति में वही मौजूद है।"

    • संदेश: ईश्वर सभी में एक समान है, इसलिए हमें किसी भी प्रकार के भेदभाव से बचना चाहिए।
  4. दूसरों के लिए जीना: अम्मा का जीवन सेवा और दान का जीवन रहा है। उन्होंने हमेशा यह कहा कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तब हम अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं। उन्होंने कई धार्मिक, शैक्षिक, और सामाजिक कार्यक्रम शुरू किए, जो समाज में सेवा और मानवता के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं। अम्मा का मानना है कि अधिकांश समस्याओं का समाधान केवल सेवा के माध्यम से ही पाया जा सकता है।

    "सेवा का कार्य केवल दूसरों के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के लिए भी है।"

    • संदेश: दूसरों की सेवा करने से हम अपनी आत्मा को शुद्ध और विकसित कर सकते हैं।

अम्मा के प्रमुख योगदान:

  1. अम्मा का आलिंगन (Hugging Saint): अम्मा की एक प्रमुख विशेषता यह है कि वे लाखों लोगों को अपनी गहरी करुणा और आध्यात्मिक प्रेम के साथ गले लगाकर आशीर्वाद देती हैं। यह साधना अनूठी है और अम्मा के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। उनका यह आलिंगन आध्यात्मिक जागरूकता और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है। अम्मा ने दुनिया भर में करीब 40 मिलियन लोगों को गले लगाकर आशीर्वाद दिया है।

  2. मातृमंडल (Amma's Ashrams): अम्मा ने दुनिया भर में कई आश्रमों और धार्मिक केंद्रों की स्थापना की है, जिनमें भारत, अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में हजारों लोग आते हैं। इन आश्रमों में लोग आध्यात्मिक शिक्षा, ध्यान, और सेवा के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। इन आश्रमों का उद्देश्य एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक जीवन जीने का मार्गदर्शन करना है।

  3. अम्मा की शिक्षाएँ और पुस्तकें: अम्मा ने अपने जीवन में कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें आध्यात्मिक और जीवन से जुड़े विषयों पर विचार व्यक्त किए हैं। इन पुस्तकों में उन्होंने जीवन को प्रेम और करुणा से जीने का मार्ग बताया है। उनके उपदेशों में यह हमेशा कहा जाता है कि आध्यात्मिकता का उद्देश्य स्वयं के भीतर की वास्तविकता को पहचानना है, ताकि हम जीवन को सही तरीके से जी सकें।

  4. समाज सेवा और शिक्षा: अम्मा ने सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया है। उन्होंने गरीबों के लिए आश्रय, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए कई पहलें शुरू की हैं। उनके द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों में गरीब बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य शिविर, और महिला सशक्तिकरण शामिल हैं।

  5. अम्मा की धर्मार्थ संस्थाएँ: अम्मा ने एम.ए.एम. (Amrita Vishwa Vidyapeetham) की स्थापना की, जो एक प्रमुख विश्वविद्यालय है। इसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, संवर्धन और सामाजिक कल्याण के कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। यह विश्वविद्यालय वैज्ञानिक अनुसंधान और आध्यात्मिक शिक्षा का एक केंद्र बन चुका है।

अम्मा के प्रमुख उद्धरण:

  1. "प्रेम एक ऐसी शक्ति है जो सब कुछ बदल सकती है।"

    • संदेश: प्रेम में वह शक्ति है, जो किसी भी परिस्थिति को बदल सकती है।
  2. "ईश्वर के बारे में नहीं सोचो, उन्हें महसूस करो।"

    • संदेश: आध्यात्मिकता केवल ईश्वर के बारे में सोचने की नहीं, बल्कि उसे महसूस करने की है।
  3. "दूसरों को खुश देखकर ही खुद खुशी मिलती है।"

    • संदेश: दूसरों के चेहरों पर मुस्कान लाने से हमें सच्ची खुशी मिलती है।
  4. "जो कुछ भी आपके पास है, वह दूसरों के लिए उपयोगी बनाएं।"

    • संदेश: हमारे पास जो भी है, वह दूसरों के भले के लिए होना चाहिए।

अम्मा का योगदान:

माता अमृतानंदमयी (अम्मा) ने अपनी पूरी जिंदगी प्रेम, करुणा, और सेवा के माध्यम से मानवता की सेवा की है। उनका जीवन एक सशक्त उदाहरण है कि धार्मिकता और आध्यात्मिकता का वास्तविक अर्थ दूसरों की सेवा करना है। अम्मा की शिक्षाएँ और उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची आध्यात्मिकता केवल आत्मा की शांति प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया में प्रेम और करुणा फैलाने के लिए है।

शनिवार, 14 अगस्त 2021

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

 सद्गुरु जग्गी वासुदेव (जन्म: 3 सितम्बर 1957) भारतीय योग गुरु, संत, और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं। वे एक प्रमुख आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध हैं और उनकी शिक्षाएँ, ध्यान विधियाँ और जीवन दृष्टि विश्वभर में लाखों लोगों को प्रभावित कर चुकी हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता, मानवता, और आंतरिक शांति की दिशा में मार्गदर्शन करना।

जीवन परिचय:

सद्गुरु का जन्म कोडागु (कर्नाटका) जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका असली नाम जगदीश वासुदेव था। बचपन से ही उनका प्रकृति और जीवन के गहरे पहलुओं के प्रति एक विशेष आकर्षण था। उनका एक प्रमुख मोड़ तब आया जब वे ध्यान और योग के विषय में गहरे अध्ययन और साधना में शामिल हुए। एक दिन उन्होंने जंगल में एक ध्यान अनुभव के दौरान एक गहरी दिव्य अनुभूति महसूस की, जो उनके जीवन की दिशा बदलने का कारण बनी।

सद्गुरु की शिक्षाएँ:

  1. आध्यात्मिकता का उद्देश्य: सद्गुरु का मानना है कि आध्यात्मिकता का उद्देश्य किसी धर्म या सिद्धांत का पालन करना नहीं है, बल्कि यह अपने आंतरिक अनुभव को महसूस करना है। उनके अनुसार, आध्यात्मिकता एक व्यक्तिगत यात्रा है, जो हमें हमारे भीतर की वास्तविकता और सच्चाई तक पहुँचाती है।

    "आध्यात्मिकता का उद्देश्य अपनी आंतरिक स्थिति में पूर्णता और शांति पाना है, न कि बाहरी संसार में सफलता प्राप्त करना।"

    • संदेश: आध्यात्मिकता हमें अपने भीतर की सच्चाई और शांति को पहचानने के लिए है।
  2. योग और ध्यान: सद्गुरु का मानना है कि योग और ध्यान हमें हमारे भीतर की ऊर्जा और चेतना को समझने में मदद करते हैं। उन्होंने आध्यात्मिक साधना को साधारण और प्रासंगिक तरीके से प्रस्तुत किया है, ताकि आम लोग भी इसे अपनी दिनचर्या में अपना सकें। उनकी शिक्षाओं में शिव योग, साधना, और दीक्षा के विभिन्न प्रकार शामिल हैं।

    "योग एक आंतरिक विज्ञान है, जो आपको जीवन को समझने और जीने का एक तरीका देता है।"

    • संदेश: योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन को समझने और उसे सही दिशा में जीने का एक मार्ग है।
  3. मानवता और समाज: सद्गुरु का मानना है कि आध्यात्मिकता और मानवता का कोई फर्क नहीं होता। उन्होंने हमेशा यह कहा कि हमें दूसरों की सेवा करनी चाहिए और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए योगदान देना चाहिए। वे मानते हैं कि सच्ची आध्यात्मिकता दूसरों की मदद करने और समाज में शांति स्थापित करने से ही आ सकती है।

    "आध्यात्मिकता का असली उद्देश्य समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।"

    • संदेश: आध्यात्मिकता समाज में बदलाव लाने और मानवता की सेवा करने के लिए होनी चाहिए।
  4. आध्यात्मिक यात्रा की सहजता: सद्गुरु ने अपनी शिक्षाओं में यह भी बताया है कि आध्यात्मिक यात्रा को कठिन और जटिल बनाने की बजाय इसे सहज और सरल तरीके से अपनाया जा सकता है। उनके अनुसार, हर व्यक्ति के भीतर आत्मा की एक ऐसी शक्ति है, जिसे वह अपनी साधना और ध्यान के माध्यम से जागृत कर सकता है।

    "आध्यात्मिकता कोई दूर की मंजिल नहीं है, यह एक ऐसा अनुभव है जिसे आप हर पल जी सकते हैं।"

    • संदेश: आध्यात्मिकता कोई दूर की बात नहीं, यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है।
  5. ध्यान और साक्षात्कार: सद्गुरु ने यह भी बताया कि ध्यान की प्रक्रिया के माध्यम से हम अपने भीतर की सत्यता को महसूस कर सकते हैं। ध्यान हमें हमारे भीतर की गहराई तक पहुँचने का अवसर देता है और आत्मसाक्षात्कार की ओर मार्गदर्शन करता है। वे इसे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा मानते हैं।

    "ध्यान वह प्रक्रिया है, जो आपको आपके भीतर की दुनिया से जोड़ती है।"

    • संदेश: ध्यान के माध्यम से हम अपनी आंतरिक दुनिया से संपर्क साध सकते हैं।

ईशा फाउंडेशन और प्रमुख कार्यक्रम:

सद्गुरु ने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है और इसका उद्देश्य आध्यात्मिकता, स्वास्थ्य, शिक्षा, और समाज कल्याण के क्षेत्र में कार्य करना है। ईशा फाउंडेशन के प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:

  1. आधुनिक योग: ईशा फाउंडेशन के द्वारा चलाए गए "Isha Yoga" कार्यक्रम लोगों को योग और ध्यान की विधियाँ सिखाते हैं। इसमें विशेष रूप से शिव योग और ध्यान साधना के तरीके शामिल हैं, जो लोगों को आंतरिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करते हैं।

  2. ध्यानलिंग (Dhyanalinga): यह एक ध्यान केंद्र है, जो कोडागु (कर्नाटका) में स्थित है। यह स्थान विशेष रूप से ध्यान और साधना के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ लोग शांति और ऊर्जा प्राप्त करने के लिए आते हैं।

  3. आधुनिक शिक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रम: ईशा फाउंडेशन ने आध्यात्मिक शिक्षा के अलावा स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्र में भी कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत विशेष ध्यान, शारीरिक स्वास्थ्य, और जीवन कौशल की शिक्षा दी जाती है।

  4. "रेवोल्यूशन" और "स्मार्ट" कार्यक्रम: यह कार्यक्रम समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इन्हें युवा वर्ग को सकारात्मक दिशा में मार्गदर्शन देने के लिए तैयार किया गया है।

  5. "सद्गुरु की वाणी": सद्गुरु की शिक्षाएँ अक्सर "सद्गुरु की वाणी" के नाम से प्रसिद्ध होती हैं। वे नियमित रूप से विचारों और वार्तालापों के माध्यम से लोगों को उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करते हैं।

सद्गुरु के प्रमुख उद्धरण:

  1. "यदि आप स्वयं को बदलते हैं, तो आप संसार को बदल सकते हैं।"

    • संदेश: संसार को बदलने के लिए पहले हमें अपने आप को बदलना चाहिए।
  2. "अगर तुम हर पल अपने जीवन को एक उत्सव मानते हो, तो जीवन स्वयं ही परमात्मा बन जाता है।"

    • संदेश: जीवन को एक उत्सव की तरह जीने से हमें आत्मिक शांति मिलती है।
  3. "जो तुम्हारे भीतर है, वही बाहर भी है।"

    • संदेश: हमारी बाहरी दुनिया हमारे आंतरिक संसार का प्रतिबिंब है।
  4. "आध्यात्मिकता का मतलब भागना नहीं, बल्कि जीवन के साथ जुड़ना है।"

    • संदेश: आध्यात्मिकता का उद्देश्य जीवन से दूर भागना नहीं है, बल्कि इसे सही रूप से जीना है।

सद्गुरु का योगदान:

सद्गुरु ने न केवल योग और ध्यान के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि उन्होंने समाज में आध्यात्मिक जागरूकता, स्वास्थ्य, शिक्षा, और समाज सेवा के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनका संदेश है कि जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए और हर व्यक्ति को अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने का अवसर मिलना चाहिए।

सद्गुरु का जीवन हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिकता, स्वास्थ्य, और मानवता एक साथ जा सकते हैं, और इसके माध्यम से हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

शनिवार, 7 अगस्त 2021

ओशो (रजनीश)

 ओशो (रजनीश), जिनका असली नाम भगवान श्री रजनीश था, एक प्रमुख भारतीय संत, योगी और ध्यान गुरु थे। उनका जन्म 11 दिसम्बर 1931 को कुरसी (राजस्थान) में हुआ था। वे अपनी गहरी और नयी आध्यात्मिक दृष्टि के लिए प्रसिद्ध हुए। ओशो ने ध्यान, प्रेम, और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के संदेश दिए और उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी वास्तविकता की खोज करनी चाहिए। उनके विचारों ने न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में आध्यात्मिकता और जीवन के प्रति एक नयी दृष्टि का विकास किया।

ओशो का जीवन:

ओशो का जन्म कृष्णनाथ जैन और वत्सला जैन के घर हुआ था। उनके जीवन का प्रारंभ सामान्य था, लेकिन उनके भीतर बचपन से ही एक गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक जिज्ञासा थी। ओशो ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा की प्राप्ति जोधपुर विश्वविद्यालय से की और बाद में वे ध्यान और योग के विषय में गहरे अध्ययन में जुट गए। ओशो के जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब वे ध्यान और आत्म-जागरूकता के विषय पर गहरे विचार करने लगे और धीरे-धीरे वे एक प्रमुख आध्यात्मिक गुरु के रूप में उभरे।

ओशो के प्रमुख विचार:

  1. ध्यान और आत्मज्ञान: ओशो ने ध्यान को आध्यात्मिकता का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग माना। उनका कहना था कि केवल ध्यान के द्वारा हम अपनी आंतरिक शांति और सच्चे आत्म को पहचान सकते हैं। ओशो ने कई ध्यान प्रणालियाँ और ध्यान विधियाँ विकसित कीं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध "गोपनीय ध्यान" और "कल्पना-मुक्त ध्यान" हैं। ओशो का मानना था कि ध्यान केवल एक साधना नहीं, बल्कि यह एक जीवन का तरीका है। ध्यान से हमें आत्म-ज्ञान प्राप्त होता है और हम अपने भीतर के सत्य को पहचानते हैं।

    "ध्यान ही एकमात्र मार्ग है, जो आपको आपके अस्तित्व के सत्य से जोड़ता है।"

    • संदेश: ध्यान के माध्यम से हम अपने अस्तित्व की वास्तविकता को पहचान सकते हैं।
  2. प्रेम और रिश्ते: ओशो का मानना था कि प्रेम एक प्राकृतिक अवस्था है, जो हर व्यक्ति के भीतर निहित है। वे प्रेम को केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक जीवनदायिनी शक्ति मानते थे। ओशो ने यह भी बताया कि प्रेम केवल दूसरों के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए भी होना चाहिए। उनका कहना था कि जब तक व्यक्ति खुद से प्रेम नहीं करता, तब तक वह दूसरों से सच्चा प्रेम नहीं कर सकता।

    "प्रेम एक ऐसी यात्रा है, जिसमें व्यक्ति खुद को भूलकर दूसरे में खो जाता है।"

    • संदेश: प्रेम की सच्ची प्रकृति यह है कि हम स्वयं को पूरी तरह से दूसरे के साथ जोड़ते हैं और इसे एक अद्वितीय अनुभव मानते हैं।
  3. स्वतंत्रता और व्यक्तित्व: ओशो का यह भी मानना था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्र सोच मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। वे कहते थे कि हर व्यक्ति को अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का अधिकार होना चाहिए। समाज और धर्म की पारंपरिक बंदिशों को तोड़कर, ओशो ने स्वतंत्रता और व्यक्तित्व के विकास की बात की। उनका यह मानना था कि एक व्यक्ति को समाज और धर्म के नियमों से परे जाकर अपने भीतर की सच्चाई को पहचानना चाहिए।

    "स्वतंत्रता केवल उस व्यक्ति को मिलती है जो अपने भीतर के भय और संकोच को छोड़ देता है।"

    • संदेश: स्वतंत्रता का अनुभव तब होता है जब हम अपने भीतर के डर और संकोच को खत्म कर देते हैं।
  4. धर्म और परंपरा: ओशो ने पारंपरिक धर्मों और उनके कठोर नियमों पर आलोचना की थी। उनका कहना था कि धर्म का उद्देश्य आध्यात्मिक जागरूकता और स्वयं की पहचान होना चाहिए, न कि किसी विशेष पंथ या परंपरा का पालन करना। ओशो ने हमेशा यह कहा कि कोई भी धार्मिक विश्वास तब तक सही नहीं हो सकता जब तक वह व्यक्ति को स्वतंत्रता और आंतरिक शांति न दे। वे मानते थे कि धर्म केवल एक आध्यात्मिक यात्रा होनी चाहिए, न कि एक प्रणाली या संस्था।

    "धर्म एक आंतरिक अनुभव है, यह बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से उत्पन्न होता है।"

    • संदेश: धर्म बाहर की किसी परंपरा से नहीं, बल्कि हमारे भीतर के अनुभव से उत्पन्न होता है।
  5. समाज और सांस्कृतिक आलोचना: ओशो ने समाज और संस्कृति की परंपराओं की आलोचना की थी, खासकर उन परंपराओं को जो मानव स्वतंत्रता और आनंद को दबाती थीं। उन्होंने समाज में धार्मिक कट्टरता, सामाजिक भेदभाव और पारिवारिक बंधनों की आलोचना की। ओशो का कहना था कि हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ व्यक्तित्व के विकास और सच्ची स्वतंत्रता को दबाया जाता है, और इसके बजाय लोगों को कड़ी-परंपराओं में बाँध दिया जाता है।

    "समाज एक जेल है, और ध्यान एक मुक्तिद्वार है।"

    • संदेश: समाज की परंपराएँ और रीति-रिवाज हमारे भीतर की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं, लेकिन ध्यान हमें मुक्ति की दिशा में अग्रसर करता है।

ओशो के प्रमुख योगदान:

  1. ओशो आश्रम (पुणे): ओशो ने पुणे में ओशो आश्रम की स्थापना की, जहाँ उन्होंने अपनी ध्यान विधियाँ और आध्यात्मिक शिक्षाएँ दीं। यह आश्रम आज भी दुनियाभर के लोगों के लिए एक आध्यात्मिक केन्द्र बना हुआ है।

  2. ओशो की किताबें और संवाद: ओशो ने 700 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें उनके विचार और शिक्षाएँ संकलित हैं। उनके वार्तालाप (सत्संग) आज भी लोगों को प्रभावित करते हैं। उनकी किताबों में से "ऑल विदिन", "लाइफ एंड लाइफ", और "दि एंटरनल विटनेस" बहुत प्रसिद्ध हैं।

  3. ध्यान और चिकित्सा विधियाँ: ओशो ने ध्यान के नए तरीके विकसित किए, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध "गति ध्यान" और "संज्ञानात्मक ध्यान" हैं। इन विधियों ने लोगों को अपनी आंतरिक स्थिति को पहचानने और नियंत्रित करने का एक नया तरीका दिया।

  4. मानवता और प्रेम का संदेश: ओशो ने पूरे जीवन में मानवता, प्रेम, और स्वतंत्रता के लिए अपने विचारों को फैलाया। उन्होंने अपने अनुयायियों को यह सिखाया कि आध्यात्मिकता का मतलब केवल ईश्वर में विश्वास नहीं है, बल्कि यह हमारी मानवता और आत्मिक शांति के लिए कार्य करना है।

ओशो के प्रमुख उद्धरण:

  1. "आपका सत्य केवल आपका है, और किसी का नहीं।"

    • संदेश: हर व्यक्ति का अनुभव और सत्य अलग होता है, और यह केवल उसके लिए सही होता है।
  2. "जब तक तुम सच्चे नहीं हो, तब तक तुम दूसरों के साथ सच्चे नहीं हो सकते।"

    • संदेश: दूसरों के साथ सच्चे होने के लिए पहले हमें अपने आप से सच्चे होने की आवश्यकता है।
  3. "जीवन केवल एक खेल है, इसे खुशी और आनंद के साथ खेलो।"

    • संदेश: जीवन को गंभीरता से नहीं, बल्कि खुशी और आनंद के साथ जीना चाहिए।
  4. "यदि तुम कभी भी डर से मुक्त हो सको, तो तुम आंतरिक शांति और मुक्ति पा सकोगे।"

    • संदेश: डर से मुक्ति पाने से ही हम आत्मा की वास्तविकता को पहचान सकते हैं।

ओशो का योगदान:

ओशो का जीवन और उनके विचार न केवल आध्यात्मिक जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उन्होंने मानवता और स्वतंत्रता की बात की। उनके विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। वे एक ऐसे गुरु थे जिन्होंने प्रेम, स्वतंत्रता, और ध्यान के माध्यम से लोगों को उनके जीवन की सच्चाई से जोड़ने का प्रयास किया। ओशो का संदेश यह था कि हम सबको आध्यात्मिक अनुभव की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, और जीवन को आनंदपूर्ण और प्रेमपूर्ण तरीके से जीने का अधिकार है।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...