शनिवार, 17 जुलाई 2021

रमण महर्षि

 रमण महर्षि (Ramana Maharshi) भारत के महानतम संतों और आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। वे आत्मज्ञान और अद्वैत वेदांत के प्रचारक थे। उनका मुख्य संदेश था "आत्मा को जानो" या "खुद को पहचानो", जिसे उन्होंने 'आत्मविचार' (Self-Inquiry) कहा। रमण महर्षि का जीवन और शिक्षाएँ पूरी दुनिया में लोगों को आंतरिक शांति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती हैं।


जीवन परिचय:

  • जन्म: 30 दिसंबर 1879
    रमण महर्षि का जन्म तमिलनाडु के तिरुचुली गांव में हुआ था। उनका असली नाम वेंकट रमन अय्यर था।
  • मृत्यु: 14 अप्रैल 1950
    उन्होंने 70 वर्ष की आयु में तमिलनाडु के अरुणाचल पर्वत के पास शरीर त्याग किया।

वे बचपन से ही सामान्य जीवन जीते थे, लेकिन 16 वर्ष की उम्र में उनके जीवन में एक गहरा आध्यात्मिक परिवर्तन आया।


आध्यात्मिक जागरण:

  • मृत्यु का अनुभव:
    16 साल की उम्र में वेंकट रमन को अचानक मृत्यु का भय हुआ। उन्होंने इसे गहराई से महसूस किया और अपनी मृत्यु का सजीव अनुभव किया।
    उन्होंने स्वयं से प्रश्न किया: "यदि शरीर मर जाता है, तो क्या मैं भी मर जाऊँगा?"
    यह आत्ममंथन उन्हें आत्मा के सत्य की ओर ले गया, और उन्होंने अनुभव किया कि उनकी वास्तविक पहचान शरीर या मन नहीं है, बल्कि शुद्ध आत्मा है।

  • इसके बाद उन्होंने सब कुछ छोड़कर अरुणाचल पर्वत (तिरुवन्नामलाई) की ओर प्रस्थान किया और अपना जीवन ध्यान और आत्मज्ञान के लिए समर्पित कर दिया।


शिक्षाएँ:

रमण महर्षि की शिक्षाएँ बेहद सरल, लेकिन गहन और प्रभावशाली थीं। उन्होंने किसी बाहरी आडंबर या कर्मकांड को महत्व नहीं दिया।

1. आत्मविचार (Self-Inquiry):

  • उनका मुख्य संदेश था: "मैं कौन हूँ?" (Who am I?)
  • उन्होंने बताया कि आत्मा की खोज का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है अपने भीतर यह प्रश्न करना कि "मैं कौन हूँ?" और अपने असली स्वरूप का साक्षात्कार करना।

2. अद्वैत वेदांत:

  • रमण महर्षि अद्वैत वेदांत के अनुयायी थे, जो सिखाता है कि आत्मा और ब्रह्म (परमसत्य) एक ही हैं।
  • उन्होंने सिखाया कि जीवन का उद्देश्य माया (भ्रम) से मुक्त होकर आत्मज्ञान प्राप्त करना है।

3. शांति और मौन का महत्व:

  • उन्होंने मौन (Silence) को सबसे शक्तिशाली साधना माना।
  • उनका कहना था कि मौन में ही सत्य प्रकट होता है, और इसे अनुभव करने के लिए ध्यान और आत्मचिंतन आवश्यक है।

4. ईश्वर और आत्मा की एकता:

  • उनके अनुसार, ईश्वर और आत्मा एक ही हैं। बाहर ईश्वर को खोजने के बजाय अपने भीतर उसे अनुभव करें।

5. सहज जीवन:

  • रमण महर्षि ने साधारण और सादगीपूर्ण जीवन जीने पर जोर दिया। उन्होंने सांसारिक वस्तुओं और इच्छाओं को छोड़ने की शिक्षा दी।

अरुणाचल पर्वत और रमणाश्रम:

  • अरुणाचल पर्वत:
    रमण महर्षि ने अपने जीवन का अधिकांश समय तिरुवन्नामलाई के अरुणाचल पर्वत के पास ध्यान और साधना में बिताया।

    • उन्होंने इस पर्वत को "ईश्वर का जीवंत स्वरूप" कहा।
    • अरुणाचल पर्वत को रमण महर्षि के अनुयायी आज भी पवित्र मानते हैं।
  • रमणाश्रम:

    • अरुणाचल पर्वत के पास रमणाश्रम की स्थापना हुई, जहाँ वे अपने अनुयायियों को मार्गदर्शन देते थे।
    • यह आश्रम आज भी ध्यान और आध्यात्मिक साधना का प्रमुख केंद्र है, जहाँ दुनिया भर से लोग आते हैं।

प्रमुख साहित्य:

रमण महर्षि ने अपने विचारों को सीधे लिखने के बजाय, प्रश्नोत्तर के माध्यम से अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन किया। उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों को संग्रहित किया।

उनके प्रमुख ग्रंथ हैं:

  1. "नान यार?" (मैं कौन हूँ?):

    • यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें उन्होंने आत्मविचार की विधि का वर्णन किया है।
  2. "उल्लाडू नारपडू" (The Reality in Forty Verses):

    • इस ग्रंथ में उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को सरल भाषा में समझाया है।
  3. "सत-दार्शनम्":

    • यह उनकी एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें आत्मज्ञान के मार्ग को विस्तार से बताया गया है।
  4. गुरु वचनों का संग्रह:

    • उनके अनुयायियों ने उनके विचारों और उपदेशों को संकलित किया, जो आज "Talks with Ramana Maharshi" के नाम से प्रसिद्ध हैं।

रमण महर्षि का प्रभाव:

  1. आधुनिक संत:

    • रमण महर्षि का जीवन और शिक्षाएँ केवल भारत तक सीमित नहीं रहीं। उनके विचार पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय हुए।
    • वे प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे, जिन्होंने विज्ञान और अध्यात्म को जोड़ने की कोशिश की।
  2. मौलिकता:

    • रमण महर्षि ने अपनी साधना और विचारधारा को किसी परंपरा या धर्म से सीमित नहीं किया।
    • उनके विचार सभी धर्मों और संस्कृतियों के लिए प्रासंगिक हैं।
  3. आधुनिक युग के योगी:

    • रमण महर्षि को आधुनिक युग का सबसे बड़ा योगी और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।

उनके जीवन के प्रेरक प्रसंग:

  1. मौन में शक्ति:

    • रमण महर्षि अपने शिष्यों को अक्सर मौन में ही मार्गदर्शन देते थे। उनका कहना था कि सच्ची शिक्षा शब्दों से नहीं, बल्कि मौन और अनुभव से मिलती है।
  2. सादगी:

    • वे बेहद साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने कभी भव्यता को महत्व नहीं दिया और हमेशा सरलता को अपनाने की प्रेरणा दी।
  3. समानता का संदेश:

    • रमण महर्षि सभी जीवों को समान मानते थे। वे जानवरों और पक्षियों से भी प्रेमपूर्वक व्यवहार करते थे।

मृत्यु और विरासत:

  • 14 अप्रैल 1950 को रमण महर्षि ने देह त्याग किया।
  • उनके अनुयायी मानते हैं कि उनकी आत्मा आज भी अरुणाचल पर्वत और रमणाश्रम में विद्यमान है।

निष्कर्ष:

रमण महर्षि का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आत्मज्ञान, मौन, और सादगी का प्रतीक हैं। उन्होंने सिखाया कि सत्य को बाहरी दुनिया में खोजने की बजाय अपने भीतर खोजना चाहिए।
उनका संदेश हर व्यक्ति को आंतरिक शांति और आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। रमण महर्षि न केवल भारत के, बल्कि पूरी दुनिया के आध्यात्मिक पथप्रदर्शक हैं।

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