शनिवार, 29 मई 2021

संत तुलसीदास

 संत तुलसीदास (1532-1623) हिंदी साहित्य के महान कवि और संत थे, जिनका योगदान भारतीय भक्ति साहित्य में अनमोल है। वे विशेष रूप से रामचरितमानस के रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं, जो भगवान श्रीराम के जीवन और कार्यों पर आधारित एक भव्य महाकाव्य है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या के पास रत्नाकार नामक गाँव में हुआ था। तुलसीदास जी ने अपने जीवन में भगवान श्रीराम के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम को व्यक्त किया और उनके माध्यम से समाज को धर्म, नैतिकता और भक्ति का संदेश दिया।

तुलसीदास जी का जीवन विशेष रूप से भगवान श्रीराम के चरणों में समर्पित था, और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राम की महिमा, उनके गुण और उनके आदर्शों का प्रचार किया। उनकी रचनाएँ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनका साहित्यिक मूल्य भी अत्यधिक ऊँचा है।

संत तुलसीदास के प्रमुख विचार और संदेश:

1. भगवान श्रीराम की भक्ति:

तुलसीदास जी का जीवन श्रीराम के भक्ति मार्ग पर आधारित था। उन्होंने भगवान श्रीराम को आदर्श और जीवन के हर क्षेत्र में पालन करने योग्य माना। उनके अनुसार, भगवान श्रीराम का ध्यान करना ही सबसे श्रेष्ठ साधना है।

"रामकथा रचन है जीव को,
तुलसी सुनि सुख पावे।"

  • संदेश: राम की कथा सुनने और समझने से जीवन में सुख और शांति प्राप्त होती है।

2. धर्म, सत्य और न्याय:

तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथों में धर्म, सत्य और न्याय के महत्व को प्रकट किया। उनका मानना था कि धर्म का पालन करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है और इसी से समाज में शांति और समृद्धि आती है।

"धर्म केहि कीजिये प्रेम सहित,
सत्य के संग चलिए जन हित।"

  • संदेश: धर्म का पालन प्रेम और सत्य के साथ करना चाहिए, क्योंकि यही जीवन का सही मार्ग है।

3. सभी प्राणियों में भगवान का वास:

तुलसीदास जी का विश्वास था कि भगवान का वास हर जीव में होता है। उन्होंने भगवान श्रीराम को हर प्राणी के हृदय में देखा और सभी जीवों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाया।

"जो देखो सो राम ही राम है,
राम के बिना कुछ नहीं यहाँ।"

  • संदेश: भगवान श्रीराम हर जगह हैं, और उनके बिना इस संसार में कुछ भी अस्तित्व नहीं रखता।

4. भक्ति और समर्पण:

तुलसीदास जी ने भक्ति के महत्व को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से रखा। उनका मानना था कि भक्ति मार्ग ही आत्मा का उन्नयन करता है और भगवान के साथ सच्चे प्रेम में समर्पण ही जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है।

"राम के बिना जीवन व्यर्थ,
भक्ति में जीवन हो धन्य।"

  • संदेश: यदि जीवन में भगवान के प्रति सच्ची भक्ति नहीं है, तो वह जीवन व्यर्थ है। भक्ति से ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है।

5. समाज सुधार और मानवता:

तुलसीदास जी ने समाज सुधार की दिशा में भी कार्य किया और उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से सामाजिक बुराइयों, आडंबरों और अविश्वास का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में सच्चे प्रेम, भाईचारे और सहयोग से ही बदलाव लाया जा सकता है।

"सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पाठयन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।"

  • संदेश: समाज में सभी लोग सुखी रहें, स्वस्थ रहें और किसी को भी दुःख न हो, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।

तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएँ:

1. रामचरितमानस:

रामचरितमानस, तुलसीदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है, जो भगवान श्रीराम के जीवन, उनके आदर्शों, उनके कर्मों और उनके परिवार की कहानी को विस्तार से वर्णित करती है। यह ग्रंथ सात कांडों में विभाजित है, जिसमें राम के जन्म से लेकर उनके राज्याभिषेक तक की घटनाएँ और उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का विवरण है।

  • संदेश: रामचरितमानस एक आदर्श ग्रंथ है, जो जीवन के हर पहलू में धर्म, सत्य, प्रेम, और आत्म-निर्माण का मार्गदर्शन करता है।

2. हनुमान चालीसा:

हनुमान चालीसा, तुलसीदास जी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भक्ति गीत है, जो भगवान हनुमान की महिमा का बखान करता है। इसे पढ़ने से व्यक्ति को साहस, शक्ति, और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।

"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।"

  • संदेश: हनुमान जी का नाम और उनकी स्तुति करने से भक्ति, साहस और विजय प्राप्त होती है।

3. कवितावली:

कवितावली में तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम और उनके भक्तों की लीलाओं को कविताओं के रूप में प्रस्तुत किया है। यह रचनाएँ भी भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।

4. दोहावली:

दोहावली में तुलसीदास जी ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरे विचार किए हैं। इसमें नैतिक शिक्षा, भक्ति और समाज सुधार की बातें कही गई हैं।


तुलसीदास जी के प्रमुख उद्धरण:

  1. "राम का नाम सुमिरन से जीवन में सुख मिलता है।"

    • संदेश: भगवान श्रीराम का नाम स्मरण करना जीवन को सुख और शांति से भर देता है।
  2. "जो राम के साथ चलता है, वह हर कठिनाई को पार कर जाता है।"

    • संदेश: यदि हम अपने जीवन में भगवान राम के साथ चलें, तो कोई भी संकट हमें हरा नहीं सकता।
  3. "धर्म की रक्षार्थ बलिदान ही सर्वोत्तम होता है।"

    • संदेश: धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित करना ही सबसे महान कार्य है।

तुलसीदास जी का जीवन, उनकी रचनाएँ और उनका संदेश आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने भगवान श्रीराम के आदर्शों को जीवन में उतारने की शिक्षा दी और समाज में धर्म, सत्य, और प्रेम का प्रसार किया। उनकी भक्ति, काव्य और विचार आज भी लाखों लोगों के दिलों में जीवित हैं।

शनिवार, 22 मई 2021

गुरु नानक देव जी

 गुरु नानक देव जी (1469-1539) सिख धर्म के पहले गुरु और उसके संस्थापक थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी (अब पाकिस्तान में स्थित) में हुआ था, जो आजकल ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वे एक महान संत, समाज सुधारक और धार्मिक विचारक थे, जिन्होंने समाज में धार्मिक एकता, समानता, और भाईचारे का संदेश दिया।

गुरु नानक देव जी की वाणी को "गुरुबानी" के नाम से जाना जाता है, जो "आदि ग्रंथ" (अब सिखों का प्रमुख धार्मिक ग्रंथ, जिसे श्री गुरु ग्रंथ साहिब कहा जाता है) में संकलित है। उनका जीवन सच्चे धर्म, सेवा, और मानवता के आदर्शों का प्रतीक है।

गुरु नानक देव जी के प्रमुख विचार और संदेश:

1. ईश्वर की एकता:

गुरु नानक देव जी ने ईश्वर की एकता का संदेश दिया। उन्होंने सिखाया कि भगवान एक ही है और सबमें वही विद्यमान है, चाहे कोई भी धर्म हो, वह ईश्वर एक ही है।

"एक ओंकार" (One God)

  • संदेश: भगवान केवल एक है और हर जगह विद्यमान है, वह साकार और निराकार दोनों रूपों में है।

2. भाईचारे और समानता:

गुरु नानक देव जी ने जातिवाद, ऊंच-नीच और धार्मिक भेदभाव का विरोध किया। वे मानते थे कि सभी लोग बराबर हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

"न कोई हिंदू, न कोई मुसलमान"

  • संदेश: सभी मानव एक समान हैं, और यह हमारे कर्म और उद्देश्य हैं जो हमें पहचानते हैं, न कि हमारी जाति या धर्म।

3. नम्रता और सेवा:

गुरु नानक देव जी ने सेवा (सेवा भाव) और नम्रता को जीवन का सर्वोत्तम आदर्श बताया। उन्होंने सिखाया कि सच्ची भक्ति और धार्मिकता सेवा के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।

"सेवा सुमिरन से ही होती है,
माता की सेवा से माता को प्रबुद्ध करें।"

  • संदेश: हमें अपने जीवन में सेवा भाव अपनाना चाहिए, क्योंकि यही सच्चा धर्म है।

4. सच्चा कर्म:

गुरु नानक देव जी के अनुसार, सच्चा धर्म वह है जो हमारे कर्मों के माध्यम से दिखता है। पूजा-पाठ, हवन, और आडंबर सिर्फ बाहरी कार्य हैं, असली भक्ति तो हमारे आचरण में होनी चाहिए।

"कर्म कर जो तू सबसे पहले करता है,
वो सच्चा विश्वास है।"

  • संदेश: सच्चा धर्म अपने कर्मों में निहित है, इसलिए हमें अपने कर्मों को ईमानदारी से करना चाहिए।

5. ध्यान और ध्यान की आवश्यकता:

गुरु नानक देव जी ने ध्यान और नाम स्मरण (नाम जाप) को महत्व दिया। उनका मानना था कि आत्मा की शुद्धि और भगवान से मिलन के लिए मन को शुद्ध करना बहुत जरूरी है।

"राम नाम जपो, आपो प्रगट होय।"

  • संदेश: भगवान का नाम स्मरण करने से आत्मा को शांति मिलती है और ईश्वर से मिलन संभव होता है।

6. साधू और संतों का आदर्श:

गुरु नानक देव जी ने साधू और संतों के जीवन को आदर्श माना। उनका मानना था कि संतों का जीवन सत्य, प्रेम, और सेवा का जीवन होता है।

"साधू संगति से ही आत्मा को शांति मिलती है।"

  • संदेश: एक व्यक्ति को संतों के साथ रहना चाहिए, क्योंकि उनका जीवन और उनके विचार हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

7. सत्संग और कीर्तन:

गुरु नानक देव जी ने सत्संग (सज्जन लोगों का संग) और कीर्तन (भगवान के गीतों का गायन) को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। वे मानते थे कि इन दोनों के माध्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन को सही दिशा दे सकता है।

"कीर्तन करो, गुरुकृपा से ही होगा उद्धार।"

  • संदेश: भगवान के नाम का कीर्तन और सत्संग से आत्मा का कल्याण होता है।

गुरु नानक देव जी के प्रमुख उद्धरण:

  1. "कृपा और दया से बढ़कर कोई सुख नहीं।"

    • संदेश: करुणा और दया जीवन का सबसे बड़ा सुख है, जो हमें हर किसी से साझा करनी चाहिए।
  2. "जो भगवान में विश्वास करता है, वह सच्चा सुखी है।"

    • संदेश: यदि हमें सच्ची शांति चाहिए तो हमें भगवान में पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
  3. "दुनिया का भला उसी का होता है, जो सच्चा काम करता है।"

    • संदेश: केवल सच्चे कर्मों से ही जीवन में अच्छाई आती है, और इससे समाज का भला होता है।
  4. "अपने अंदर ही परमात्मा का दर्शन करना सबसे महत्वपूर्ण है।"

    • संदेश: भगवान का दर्शन बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारे भीतर होता है।

गुरु नानक देव जी का योगदान:

  • सिख धर्म की स्थापना: गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी, जो कि एक आस्थावादी, भक्ति आधारित धर्म है। सिख धर्म की शिक्षाएं धर्म, सेवा, समानता और इंसानियत पर जोर देती हैं।

  • गुरु ग्रंथ साहिब: गुरु नानक देव जी ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर धर्म की सच्चाईयों को समाहित किया, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हुई। यह सिखों का धार्मिक ग्रंथ है, जो उन्हें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

  • मानवता और भाईचारे का प्रचार: गुरु नानक देव जी ने समग्र मानवता को एक समान मानते हुए जातिवाद, धर्मांधता, और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया। उनका जीवन हमें प्रेम, भाईचारे और एकता का संदेश देता है।


गुरु नानक देव जी के विचार और शिक्षाएं आज भी हमें सत्य, प्रेम, भाईचारे और सेवा की दिशा में मार्गदर्शन देती हैं। उनका जीवन और उनके संदेश समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, और उनके द्वारा स्थापित सिख धर्म ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया है।

शनिवार, 15 मई 2021

मीरा बाई

 मीरा बाई (या मीरा बाई), एक महान संत, भक्ति कवयित्री, और कृष्ण की परम भक्त थीं। उनका जन्म 1498 ईस्वी में राजस्थान के मेवाड़ राज्य के कुंभलगढ़ किले में हुआ था। वे राजपरिवार से संबंध रखती थीं, लेकिन उन्होंने सांसारिक सुखों को त्याग कर अपनी ज़िंदगी कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दी। मीरा बाई को भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अत्यधिक भक्ति और प्रेम के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है।

मीरा बाई का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण था। उन्होंने अपने पति (राजा भोजराज) और ससुराल के दबाव और अपमान को सहा, लेकिन उन्होंने कभी अपनी भक्ति से समझौता नहीं किया। वे अपने गीतों और काव्य के माध्यम से भगवान कृष्ण के प्रेम को व्यक्त करती थीं। मीरा बाई के भक्ति गीतों ने भारतीय भक्ति आंदोलन को गहरे प्रभाव में डाला और वे आज भी हर भक्त के दिल में जीवित हैं।

मीरा बाई के प्रमुख विचार और शिक्षा:

  1. कृष्ण के प्रति असीम प्रेम: मीरा बाई ने अपने जीवन को श्री कृष्ण के प्रति प्रेम में समर्पित किया। उनका विश्वास था कि भगवान कृष्ण का प्रेम ही जीवन का सबसे बड़ा सुख है।

    "म्हारी तो भइया भगवान श्री कृष्ण की महिमा।
    उन्ही के चरणों में बसा मेरे दिल का सब सुख।"

    • संदेश: जीवन का सर्वोत्तम सुख भगवान के प्रेम में होता है।
  2. संसारिक बंधनों से मुक्ति: मीरा बाई ने दुनिया के आडंबरों, समाज की बंदिशों और परिवार के दबावों से ऊपर उठ कर अपनी भक्ति और आत्मा के सत्य को चुना।

    "चरणों में तेरे रख दिए जी, दुनिया सब छोड़ दी।
    गहनों का मोह त्याग दिया, भगवान का प्यार पाया।"

    • संदेश: संसारिक मोह और आडंबरों से दूर होकर भगवान की भक्ति करना सच्चा सुख है।
  3. भक्ति का सरल मार्ग: मीरा बाई ने कहा कि भक्ति का कोई कठिन रास्ता नहीं होता, केवल श्रद्धा और प्रेम से किया गया नाम स्मरण ही व्यक्ति को भगवान के करीब ले जाता है।

    "गोपियाँ तो वे गाती हैं, हरि के गुण गाती हैं,
    मीरा तो वे कहती हैं, भगवान कृष्ण के प्यारे हैं।"

    • संदेश: भगवान की भक्ति करना और उनके गुणों का गान करना सबसे आसान और सत्य मार्ग है।
  4. आत्म-साक्षात्कार: मीरा बाई के अनुसार, आत्मा का साक्षात्कार केवल भगवान के प्रेम में होता है। भक्ति के माध्यम से ही व्यक्ति आत्मा के सत्य को समझ सकता है।

    "हृषिकेशि प्रेम का दर्शन, मीरा की आत्मा ने पाया।
    श्री कृष्ण के चरणों में बसा, अब कोई दुःख नहीं पाया।"

    • संदेश: भगवान के प्रेम में डूब कर ही आत्मा का सत्य पाया जा सकता है।
  5. सच्चे प्रेम की महिमा: मीरा बाई का जीवन भगवान कृष्ण के प्रति अपने असीम प्रेम की मिसाल है। वे एक सच्ची भक्त थीं और उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह से कृष्ण के प्रेम में डुबो दिया।

    "जाके चरणों में लूटे सब सुख, वही कृष्ण हैं।
    मीरा के लिए भगवान कृष्ण के बिना सब कुछ अधूरा है।"

    • संदेश: सच्चे प्रेम में समर्पण और समर्पण के बिना जीवन अधूरा है।

मीरा बाई के कुछ प्रसिद्ध पद:

  1. "पलकों पे बिठाया है कृष्ण ने,
    संसार से कहीं दूर पाया है।
    मीरा की बातों में बसा है,
    वही कृष्ण जो सबमें निखला है।"

  2. "मोरे तो गिरधर गोपाल,
    दूसरों न कोई।"

    • संदेश: मीरा का यह प्रसिद्ध पद उनके कृष्ण प्रेम को व्यक्त करता है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन को कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया।
  3. "मीरां कहे कहां तक मैं कृष्ण को खोजूँ,
    वह मेरे भीतर ही बसें हैं, मैं वही हूं, वह वही है।"

    • संदेश: कृष्ण के प्रेम में पूर्ण समर्पण की भावना व्यक्त की गई है, और यह अहसास कि भगवान हमारे भीतर ही रहते हैं।

मीरा बाई के योगदान:

  • भक्ति साहित्य: मीरा बाई ने भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को बहुत सुंदर और सरल गीतों में व्यक्त किया। उनकी रचनाओं में श्रृंगारी भक्ति की विशेषता है, जिसमें उन्होंने भगवान के साथ अपने प्रेम संबंध को व्यक्तिगत रूप में व्यक्त किया।

  • भक्ति आंदोलन: वे भक्ति आंदोलन की प्रमुख हस्तियों में से एक थीं। उन्होंने समाज में भक्ति और प्रेम की शक्ति को फैलाया और आडंबरों को नकारा।

  • सामाजिक सुधार: मीरा बाई ने ऊंच-नीच, जातिवाद और पुरुष प्रधान समाज की कठोरता के खिलाफ आवाज उठाई। वे एक स्वतंत्र विचारक थीं और अपने अधिकारों के लिए खड़ी रहीं।


मीरा बाई की भक्ति और उनके गीत आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं। उनकी शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और प्रेम ही जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है। उनके जीवन का मार्गदर्शन हमें आडंबरों से मुक्त होकर सत्य, प्रेम और भक्ति की ओर प्रेरित करता है।

शनिवार, 8 मई 2021

संत कबीर

 संत कबीर भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने दोहों और पदों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, आडंबरों और पाखंडों का विरोध किया और प्रेम, सहिष्णुता, और सत्य के मार्ग का प्रचार किया। कबीर के विचार आज भी समाज में समानता, भाईचारे और आध्यात्मिकता की प्रेरणा देते हैं।


संत कबीर का जीवन परिचय:

1. जन्म:

  • कबीर के जन्म के संबंध में मतभेद हैं।
  • कहा जाता है कि उनका जन्म 1398 ईस्वी (कुछ स्रोतों के अनुसार 1440 ईस्वी) में वाराणसी (काशी) में हुआ था।
  • वे एक जुलाहा (बुनकर) परिवार में पले-बढ़े।
  • यह भी मान्यता है कि कबीर एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिन्हें उन्होंने जन्म के बाद छोड़ दिया था और उन्हें नीमा और नीरू नामक जुलाहा दंपति ने पाला।

2. नाम और जीवन शैली:

  • "कबीर" का अर्थ है महान
  • वे गरीब परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन अपनी सादगी और साधना से महान संत बने।
  • कबीर कपड़े बुनने का कार्य करते थे और साथ ही भक्ति और ज्ञान का प्रचार करते थे।

3. गुरु रामानंद:

  • कबीर संत रामानंद के शिष्य माने जाते हैं।
  • रामानंद से प्रेरणा लेकर उन्होंने भक्ति मार्ग पर चलना शुरू किया।

संत कबीर की शिक्षाएं:

संत कबीर की शिक्षाएं सार्वभौमिक और आध्यात्मिक हैं। उन्होंने धर्म, समाज और व्यक्तिगत जीवन के बारे में महत्वपूर्ण संदेश दिए।

1. निर्गुण भक्ति:

  • कबीर ने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया, जिसमें ईश्वर को निराकार और सर्वव्यापी माना गया है।
  • उन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड और धार्मिक आडंबरों का विरोध किया।

2. एकेश्वरवाद:

  • कबीर का मानना था कि ईश्वर एक है और सभी धर्मों के लोग उसी के रूप में उसकी पूजा करते हैं।
  • उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के अनुयायियों को प्रेम और सत्य का मार्ग दिखाया।

3. सत्य और अहिंसा:

  • सत्य बोलना और अहिंसा का पालन करना उनके मुख्य सिद्धांत थे।
  • उन्होंने कहा, "सत्य कहो, चाहे किसी को बुरा लगे।"

4. जाति-पाति का विरोध:

  • कबीर ने जाति-व्यवस्था और ऊंच-नीच के भेदभाव का विरोध किया।
  • उनके अनुसार, इंसान की पहचान उसकी कर्मशीलता और नैतिकता से होनी चाहिए, न कि जाति से।

5. सादा जीवन और उच्च विचार:

  • उन्होंने साधारण जीवन जीने और उच्च विचार रखने पर जोर दिया।
  • धन-संपत्ति और सांसारिक मोह को उन्होंने भक्ति के मार्ग में बाधा माना।

6. संतुलित दृष्टिकोण:

  • कबीर ने "मध्यमार्ग" अपनाने की सलाह दी, जिसमें न तो अत्यधिक भौतिकता हो और न ही कठोर तपस्या।

7. सत्संग और साधना:

  • कबीर ने सत्संग और ईश्वर का स्मरण (नाम जप) करने को आत्मा की शुद्धि का साधन बताया।

संत कबीर के प्रमुख दोहे और संदेश:

कबीर के दोहे उनके गहन ज्ञान और जीवन के अनुभवों का प्रतीक हैं। उनके दोहे सरल भाषा में गहरे अर्थ समेटे हुए हैं।

  1. "बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
    जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"

    • आत्मविश्लेषण सबसे महत्वपूर्ण है। दूसरों में दोष देखने से पहले स्वयं को देखो।
  2. "दुनिया छूटे गुरु न छूटे, गुरु से मिले न ज्ञान।
    गुरु की पूजा जो करे, मिटे भव बंधन तान।"

    • गुरु का सम्मान और उनकी शिक्षाओं का पालन मुक्ति का मार्ग है।
  3. "पानी बिन मीन प्यासे, समुझो मन अस माहीं।
    माया बिन जग सूना, सत्य बिना सब हीन।"

    • सत्य और ईश्वर का स्मरण जीवन को सार्थक बनाता है।
  4. "माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
    कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर।"

    • बाहरी कर्मकांडों से ज्यादा आंतरिक शुद्धता जरूरी है।
  5. "अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
    अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।"

    • संतुलन बनाए रखना हर चीज में आवश्यक है।

सामाजिक और धार्मिक योगदान:

  1. सामाजिक सुधारक:

    • कबीर ने जातिवाद, धार्मिक पाखंड, और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया।
    • उन्होंने इंसानियत और समानता का संदेश दिया।
  2. धर्मों के बीच समन्वय:

    • कबीर ने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में व्याप्त आडंबरों का विरोध किया।
    • उन्होंने दोनों धर्मों के अनुयायियों को एकता और प्रेम का संदेश दिया।
  3. भक्ति आंदोलन:

    • कबीर भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे।
    • उन्होंने भक्ति को सुलभ और साधारण बनाया।
  4. भाषा का विकास:

    • कबीर ने अपनी रचनाओं में साधारण हिंदी का प्रयोग किया, जिसे आम लोग आसानी से समझ सकते थे।
    • उनकी भाषा सधुक्कड़ी, अवधी, और ब्रज का मिश्रण है।

कबीर की रचनाएं:

  1. बीजक:

    • यह कबीर की शिक्षाओं और विचारों का संग्रह है।
    • इसमें तीन भाग हैं: साखी, रमैनी, और पद।
  2. कबीर ग्रंथावली:

    • इसमें उनके दोहे, पद, और अन्य रचनाएं संकलित हैं।

संत कबीर का निर्वाण:

  • संत कबीर ने 1518 ईस्वी (कुछ स्रोतों के अनुसार 1448 ईस्वी) में मगहर (उत्तर प्रदेश) में मोक्ष प्राप्त किया।
  • उन्होंने काशी छोड़कर मगहर को अपनी निर्वाण स्थली के रूप में चुना, यह दिखाने के लिए कि मोक्ष किसी स्थान पर निर्भर नहीं करता।

संत कबीर का प्रभाव:

  • उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में प्रेरणा देती हैं।
  • उनकी विचारधारा ने भक्ति आंदोलन को नई दिशा दी।
  • उनका जीवन और संदेश सभी धर्मों और वर्गों के लिए प्रासंगिक हैं।

संत कबीर के दोहे और शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा धर्म प्रेम, सत्य और करुणा में निहित है।

शनिवार, 1 मई 2021

गौतम बुद्ध

 गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व – 483 ईसा पूर्व) विश्वभर में बौद्ध धर्म के प्रवर्तक और महान आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्हें "बुद्ध" कहा जाता है, जिसका अर्थ है "जागृत" या "प्रबुद्ध"। उन्होंने अपने ज्ञान और शिक्षाओं के माध्यम से लाखों लोगों को आत्मज्ञान, करुणा और अहिंसा का मार्ग दिखाया। गौतम बुद्ध का जीवन सत्य की खोज और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था।


गौतम बुद्ध का जीवन परिचय:

1. जन्म:

  • गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान में नेपाल में) में एक शाक्य कुल में हुआ।
  • उनका मूल नाम सिद्धार्थ था।
  • उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्य गणराज्य के राजा थे, और माता मायादेवी शाक्यवंश की रानी थीं।
  • उनकी माता का निधन जन्म के कुछ दिनों बाद हो गया, और उनका पालन-पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया।

2. राजकुमार सिद्धार्थ:

  • सिद्धार्थ बचपन से ही बुद्धिमान, संवेदनशील और करुणामय थे।
  • युवावस्था में उनका विवाह यशोधरा से हुआ और उन्हें एक पुत्र राहुल हुआ।
  • राजमहल में सुख-सुविधाओं के बीच जीवन बिताते हुए भी सिद्धार्थ को संसार की नश्वरता और दुख की अनुभूति थी।

3. संन्यास और ज्ञान की खोज:

  • एक दिन महल के बाहर जाते समय उन्होंने चार दृश्यों को देखा:
    1. एक वृद्ध व्यक्ति
    2. एक बीमार व्यक्ति
    3. एक मृत व्यक्ति
    4. एक सन्यासी
  • इन दृश्यों ने उन्हें जीवन के दुख और अस्थिरता का एहसास कराया।
  • 29 वर्ष की आयु में उन्होंने राजमहल, परिवार और सांसारिक सुखों को त्यागकर सत्य और ज्ञान की खोज के लिए संन्यास ले लिया।

4. तपस्या और ध्यान:

  • सिद्धार्थ ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की, लेकिन इससे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हुआ।
  • अंततः उन्होंने तपस्या का मार्ग छोड़कर ध्यान और मध्यम मार्ग (मध्यमार्ग) अपनाया।

5. ज्ञान की प्राप्ति:

  • बोधगया (बिहार) में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए, 35 वर्ष की आयु में उन्हें बोधि (ज्ञान) की प्राप्ति हुई।
  • वे गौतम बुद्ध कहलाए, जिसका अर्थ है "प्रबुद्ध"।
  • जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, उसे बोधि वृक्ष कहा जाता है।

गौतम बुद्ध की शिक्षाएं:

गौतम बुद्ध ने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर संसार को दुखों से मुक्त होने का मार्ग बताया। उनकी शिक्षाएं सरल, व्यावहारिक और सार्वभौमिक हैं।

1. चार आर्य सत्य (Four Noble Truths):

  • संसार में दुख है।
  • दुख का कारण तृष्णा (इच्छा) है।
  • तृष्णा का अंत करने से दुख समाप्त हो सकता है।
  • दुख को समाप्त करने का मार्ग आष्टांगिक मार्ग है।

2. आष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path):

  • बुद्ध ने मोक्ष प्राप्त करने के लिए आठ मार्ग बताए:
    1. सम्यक दृष्टि (सही दृष्टिकोण)
    2. सम्यक संकल्प (सही विचार)
    3. सम्यक वाणी (सही भाषण)
    4. सम्यक कर्म (सही कर्म)
    5. सम्यक आजीविका (सही आजीविका)
    6. सम्यक प्रयास (सही प्रयास)
    7. सम्यक स्मृति (सही ध्यान)
    8. सम्यक समाधि (सही एकाग्रता)

3. मध्यम मार्ग (Middle Path):

  • बुद्ध ने अति-सुख और अति-कष्ट, दोनों से बचने का मार्ग बताया।
  • मध्यम मार्ग जीवन में संतुलन और शांति लाने का उपाय है।

4. अहिंसा और करुणा:

  • बुद्ध ने सभी जीवों के प्रति अहिंसा और करुणा का प्रचार किया।

5. अनित्य और अनात्मा:

  • संसार में सब कुछ अनित्य (नश्वर) है।
  • आत्मा या स्थायी अस्तित्व का कोई स्वरूप नहीं है।

6. निर्वाण (Moksha):

  • बुद्ध ने निर्वाण को दुखों के अंत और आत्मज्ञान की अवस्था बताया।
  • यह संसार के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति है।

बौद्ध संघ और धर्म प्रचार:

  • गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को संगठित करने के लिए बौद्ध संघ की स्थापना की।
  • उन्होंने विभिन्न स्थानों की यात्रा की और धर्म का प्रचार किया।
  • उनके प्रमुख शिष्य आनंद, महाकश्यप, सारिपुत्र और मोद्गल्यायन थे।
  • उनके उपदेश पाली भाषा में त्रिपिटक नामक ग्रंथों में संकलित किए गए।

बुद्ध का महापरिनिर्वाण:

  • 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध ने कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
  • उनके निर्वाण दिवस को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

गौतम बुद्ध का योगदान:

  1. धर्म और दर्शन:

    • उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की, जो अहिंसा, करुणा और सत्य पर आधारित है।
    • उनका दर्शन आज भी प्रासंगिक है।
  2. सामाजिक सुधार:

    • उन्होंने जातिवाद और अंधविश्वास का खंडन किया।
    • उन्होंने समानता और मानवता का संदेश दिया।
  3. शिक्षा का प्रसार:

    • उन्होंने धर्म और शिक्षा को जनसामान्य तक पहुंचाया।

गौतम बुद्ध का प्रभाव:

  • आज बौद्ध धर्म विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है।
  • उनकी शिक्षाएं भारत, नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत, जापान, थाईलैंड और अन्य देशों में व्यापक रूप से फैलीं।
  • उनके जीवन और शिक्षाएं शांति, करुणा और मानवता का प्रतीक हैं।

गौतम बुद्ध ने मानवता को दुखों से मुक्त होने का मार्ग दिखाया और दुनिया को एक नई चेतना प्रदान की। उनका जीवन और दर्शन आज भी सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

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