शनिवार, 19 दिसंबर 2020

आत्मा का अमरत्व

 आत्मा का अमरत्व भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों में एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसे उन्होंने भगवद्गीता में विस्तार से समझाया। श्रीकृष्ण ने यह बताया कि आत्मा न तो उत्पन्न होती है, न नष्ट होती है; यह शाश्वत, अजर-अमर और अक्रियात्मक है। आत्मा का अमरत्व जीवन और मृत्यु से परे है, और इसका अस्तित्व सदैव रहेगा।

आत्मा के अमरत्व के बारे में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में जो उपदेश दिया, वह न केवल शारीरिक जीवन और मृत्यु के बारे में है, बल्कि यह आत्मा के वास्तविक स्वरूप और उसकी शाश्वतता की समझ को भी प्रस्तुत करता है।


1. आत्मा का शाश्वत स्वरूप

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के 2.20 श्लोक में कहा:

"न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।"

अर्थात:

  • आत्मा न कभी जन्म लेती है, न कभी मरती है।
  • आत्मा शाश्वत और अजन्मा है, यह न किसी शरीर के मरने से मरती है, न किसी नए शरीर के जन्म से जन्मती है।
  • आत्मा का कोई अंत नहीं है, यह अनादि और अनन्त है।

यह श्लोक यह स्पष्ट करता है कि आत्मा निरंतर रहती है, चाहे शरीर का जीवन समाप्त हो जाए। आत्मा का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होता।


2. आत्मा का रूप और परिवर्तन

श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि आत्मा का रूप कभी बदलता नहीं है, बल्कि यह केवल शरीर में निवास करती है और जब शरीर नष्ट होता है, तो आत्मा नए शरीर में प्रवेश करती है। यह शरीर के जैसे पदार्थों में परिवर्तन की प्रक्रिया की तरह है।

"वसांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथाशरीराणि विहाय जीर्णा न्यानि संयाति नवानि देही।" (भगवद्गीता 2.22)

अर्थात:

  • जैसे मनुष्य पुराने कपड़े छोड़कर नए कपड़े पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश करती है।
  • यह प्रक्रिया जीवन के प्रत्येक पुनः जन्म के दौरान होती है, और आत्मा का वास्तविक स्वरूप शाश्वत और अपरिवर्तनीय रहता है।

3. आत्मा के अमरत्व का दर्शन

आत्मा का अमरत्व जीवन और मृत्यु के पार है। शरीर मरता है, लेकिन आत्मा शाश्वत रहती है, और यह प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान रहती है। श्रीकृष्ण के अनुसार, आत्मा का उद्देश्य केवल शरीर में रहने का नहीं है, बल्कि यह अपनी वास्तविकता को पहचानने के लिए समय-समय पर विभिन्न शरीरों में प्रवेश करती है।


4. आत्मा और परमात्मा

आत्मा का अमरत्व सिर्फ जीवन और मृत्यु से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह परमात्मा से भी जुड़ा है। श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि आत्मा परमात्मा का अंश होती है। जब आत्मा परमात्मा के साथ जुड़ती है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्रीकृष्ण कहते हैं:
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः। मन:षष्ठानि संस्थायानि शरीरेषु नद्यन्ति।" (भगवद्गीता 15.7)

अर्थात:

  • आत्मा परमात्मा का अंश है, और इसे अनंत समय से शरीरों में रहकर कर्मों के अनुसार अनुभव प्राप्त होते हैं।
  • जब आत्मा परमात्मा के साथ एकाकार होती है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, यानी संसार के बंधनों से मुक्ति मिलती है।

5. आत्मा का उद्देश्य और मोक्ष

आत्मा का मुख्य उद्देश्य अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना और परमात्मा के साथ मिलन करना है। जब व्यक्ति अपने कर्मों को धर्म, सत्य और आत्मिक उन्नति के मार्ग पर करता है, तो वह आत्मा के अमरत्व को अनुभव करता है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए तैयार होता है।

"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।" (भगवद्गीता 11.54)

अर्थात:

  • जो व्यक्ति हर स्थान पर ईश्वर को देखता है और ईश्वर को हर जगह देखता है, वह आत्मा के अमरत्व को समझ लेता है।
  • ऐसे व्यक्ति का नाश नहीं होता, क्योंकि वह आत्मा की शाश्वतता को पहचान लेता है और ईश्वर के साथ एकाकार होता है।

निष्कर्ष

आत्मा का अमरत्व यह सिद्धांत जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने का मार्ग है। श्रीकृष्ण ने यह बताया कि आत्मा शाश्वत है, शरीर नश्वर है, और हमारा मुख्य उद्देश्य आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानना है। आत्मा का अमरत्व यह सिखाता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं, बल्कि एक शाश्वत और दिव्य अंश हैं, जो ईश्वर के साथ एकात्मता की ओर बढ़ता है। इस ज्ञान के साथ हम जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं और आत्मा की शुद्धि की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

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