शनिवार, 14 नवंबर 2020

श्रीकृष्ण का मोक्ष और देह त्याग

 श्रीकृष्ण का मोक्ष और देह त्याग एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक प्रसंग है। उनके जीवन की अंतिम घटना भी उनके जीवन का सार प्रस्तुत करती है, जिसमें धर्म, सत्य, और कर्म के प्रति उनकी निष्ठा परिलक्षित होती है।


1. यदुवंश का अंत

  • महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने यदुवंश को उजड़ते हुए देखा।
  • गांधारी के शाप और यदुवंश के बढ़ते अहंकार के कारण आपसी कलह ने वंश का विनाश कर दिया।
  • श्रीकृष्ण ने इसे प्रकृति का नियम मानते हुए स्वीकार किया और इसे धर्मचक्र का हिस्सा बताया।

2. प्रभास क्षेत्र में निवास

  • यदुवंश के विनाश के बाद श्रीकृष्ण ने अपने अंतिम दिन प्रभास क्षेत्र (वर्तमान गुजरात) में बिताने का निर्णय लिया।
  • उन्होंने सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर योगनिद्रा में प्रवेश किया।

3. जरा नामक शिकारी का प्रसंग

  • जब श्रीकृष्ण एक वृक्ष के नीचे योगमुद्रा में ध्यानमग्न थे, तब जरा नामक शिकारी ने उनकी बाईं एड़ी पर तीर चलाया।
  • जरा ने उन्हें हिरण समझकर तीर मारा था।
  • तीर उनके शरीर के उसी स्थान पर लगा जहां उन्हें महाभारत के युद्ध के समय गांधारी के शाप के कारण एक कमजोर बिंदु के रूप में चिह्नित किया गया था।

4. जरा का पश्चाताप और क्षमा

  • जरा ने अपने अपराध का एहसास होते ही भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी।
  • श्रीकृष्ण ने उसे तुरंत क्षमा कर दिया और कहा कि यह घटना उनके पृथ्वी पर अवतार समाप्त करने का साधन थी।
  • उन्होंने उसे बताया कि यह ईश्वर की योजना का हिस्सा था।

5. देह त्याग

  • श्रीकृष्ण ने योगमुद्रा में ध्यान करते हुए अपनी लीला समाप्त की।
  • उन्होंने अपनी आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप, अर्थात् विष्णु के रूप में लौटा लिया।
  • उनके शरीर को देह मानने वाले लोग इसे अंत समझ सकते हैं, लेकिन यह उनके दिव्य स्वरूप की लीला का समापन था।

6. मोक्ष का संदेश

श्रीकृष्ण का देह त्याग इस बात का प्रतीक है कि:

  1. आत्मा अमर है: देह नश्वर है, लेकिन आत्मा शाश्वत है।
  2. कर्म और धर्म का पालन: अपने जीवन में कर्म और धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है।
  3. संसार के बंधनों से मुक्ति: सांसारिक कर्तव्यों को पूर्ण कर मनुष्य ईश्वर में विलीन हो सकता है।
  4. निष्काम जीवन: श्रीकृष्ण ने स्वयं को कभी भी सांसारिक मोह या अहंकार से नहीं जोड़ा।

7. पृथ्वी से विष्णु रूप में वापसी

  • श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर विष्णु के आठवें अवतार के रूप में अपने कर्तव्यों को पूर्ण किया।
  • उन्होंने अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना की, और फिर अपने लोक (वैकुंठ) में लौट गए।

8. श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ उनके मोक्ष में भी परिलक्षित होती हैं

  • क्षमा और करुणा: उन्होंने शिकारी जरा को तुरंत क्षमा कर दिया।
  • संतुलन: उन्होंने अपने जीवन का हर कार्य संतुलन और धर्म के अनुरूप किया।
  • अहंकार का त्याग: उन्होंने अपने जीवन और मृत्यु को भी ईश्वर की योजना के अनुसार स्वीकार किया।

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण का मोक्ष और देह त्याग यह सिखाता है कि जीवन का उद्देश्य धर्म का पालन, सत्य की रक्षा, और सांसारिक मोह से मुक्त होकर आत्मा की पूर्णता प्राप्त करना है। उनका जीवन और मृत्यु दोनों ही मानव जाति के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन हैं।

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