माता का प्रेम
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ रहता था। उसका नाम रघु था, और उसकी पत्नी, सुमित्रा, और उनका एक छोटा बच्चा, मोहन, थे। रघु और सुमित्रा दोनों ही दिन-रात मेहनत करते थे, लेकिन फिर भी उनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। उनका घर साधारण था, लेकिन उनका जीवन सच्चे प्रेम और समर्पण से भरा हुआ था।
सुमित्रा का प्यार अपने बेटे मोहन के लिए अपार था। वह उसे हमेशा प्यार से पालती और उसे हर छोटे-बड़े काम में सहायता देती। सुमित्रा को अपने बेटे का भविष्य हमेशा उज्जवल देखना था, और वह किसी भी कीमत पर उसे खुश रखने की कोशिश करती। उसका दिल अपने बेटे की भलाई के लिए हमेशा चिंतित रहता था।
सुमित्रा का बलिदान
एक दिन गाँव में एक बड़ा आयोजन हुआ। गाँव के प्रमुख ने यह घोषणा की कि जो भी व्यक्ति सबसे अच्छा और मेहनती काम करेगा, उसे बहुत बड़ा इनाम मिलेगा। रघु ने यह अवसर देखा और सोचा कि अगर वह इस प्रतियोगिता में जीत जाता है, तो उसे बड़ा इनाम मिलेगा, जिससे उनका जीवन बेहतर हो सकता है। उसने अपनी पत्नी से इस बारे में बात की, और सुमित्रा ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसकी मदद करने का वादा किया।
रघु और सुमित्रा ने अपनी पूरी मेहनत और लगन से प्रतियोगिता के लिए तैयारियाँ की। प्रतियोगिता का दिन आया, और रघु ने अपनी पूरी ताकत लगाकर काम किया। वह थका हुआ था, लेकिन उसका लक्ष्य था अपने परिवार को खुशहाल बनाना।
वहीं दूसरी ओर, सुमित्रा ने देखा कि उनका बेटा मोहन बीमार हो गया था। वह बहुत देर तक बुखार में तप रहा था और उसकी हालत गंभीर होती जा रही थी। सुमित्रा के पास उसे इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं थे, और रघु प्रतियोगिता में व्यस्त था।
सुमित्रा का दिल बहुत दुखी था, लेकिन उसने अपनी भावनाओं को अपने अंदर दबा लिया। वह जानती थी कि अगर उसने रघु को इसकी जानकारी दी, तो वह प्रतियोगिता छोड़कर मोहन की देखभाल करेगा, और उनकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। इसलिए, सुमित्रा ने अपने बेटे की देखभाल की और उसे समय पर दवाइयाँ दी, लेकिन रघु को किसी भी प्रकार की परेशानी का आभास नहीं होने दिया।
माँ का असीमित प्रेम और बलिदान
सुमित्रा की माँ की तरह पूरी निस्वार्थ भावना से देखभाल करने की क्षमता थी। वह दिन-रात मोहन की देखभाल करती रही, जबकि रघु प्रतियोगिता में व्यस्त था। सुमित्रा की माँ का दिल अपने बेटे के भविष्य के लिए फटा जा रहा था, लेकिन वह अपने बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थी।
दूसरे दिन जब रघु घर लौटा, तो उसने देखा कि मोहन की तबियत बेहतर हो रही थी। सुमित्रा ने उसे कुछ नहीं बताया कि वह रात भर मोहन के साथ बैठी थी और अपने बेटे को बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी।
रघु ने प्रतियोगिता जीत ली थी और उसे बहुत बड़ा पुरस्कार मिला। लेकिन उसकी खुशी तब आधी रह गई, जब उसने देखा कि उसकी पत्नी सुमित्रा बहुत थकी हुई और परेशान सी दिखाई दे रही थी। उसने पूछा,
"तुम इतनी थकी हुई क्यों हो?"
सुमित्रा ने मुस्कुराते हुए कहा,
"कुछ नहीं, रघु। मैं सिर्फ तुम्हारे और मोहन के लिए हमेशा खुश रहना चाहती थी। मुझे इस समय बहुत संतोष है, क्योंकि मोहन अब ठीक है।"
रघु को एहसास हुआ कि उसकी पत्नी ने अपना पूरा बलिदान दिया था, ताकि उनका बेटा ठीक रहे और वह खुश रहे। उसने सुमित्रा को गले लगाते हुए कहा,
"तुम्हारा प्रेम और बलिदान मेरे लिए अनमोल हैं। मैं तुम्हारा धन्यवाद नहीं कर सकता। तुमने हमारे परिवार के लिए जो किया है, वह किसी भी पुरस्कार से बढ़कर है।"
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या सुमित्रा का बलिदान सही था? क्या एक माँ का प्रेम कभी भी किसी पुरस्कार या पुरस्कार से अधिक नहीं होता?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"सुमित्रा का प्रेम वह सर्वोत्तम प्रेम था, जो एक माँ अपने बच्चों के लिए कर सकती है। उसका बलिदान, उसकी निस्वार्थ भावना और उसकी ममता ने यह साबित कर दिया कि माँ का प्रेम हर चीज से बढ़कर होता है। सुमित्रा ने अपने बेटे के लिए अपना सब कुछ अर्पित किया, और यही एक माँ का सबसे बड़ा बलिदान है।"
कहानी की शिक्षा
- माँ का प्रेम और बलिदान अतुलनीय होते हैं।
- सच्चे प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता, बल्कि वह अपने प्रियजन की भलाई के लिए खुद को त्यागने के लिए तैयार रहता है।
- माँ की ममता और उसके बलिदान से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं हो सकता।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि माता का प्रेम निस्वार्थ और असीमित होता है, और कभी-कभी हम जो बलिदान करते हैं, वह सबसे बड़ा उपहार होता है जो हम किसी के लिए दे सकते हैं।
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