झूठा वचन और सच्चा न्याय
प्राचीन समय की बात है, एक छोटे से राज्य में एक न्यायप्रिय राजा राज करता था, जिसका नाम था राजा विक्रम। राजा विक्रम को अपने राज्य में न्याय, सत्य और धर्म के पालन के लिए जाना जाता था। वह हमेशा किसी भी स्थिति में सच को सामने लाने और न्याय की स्थापना करने के लिए कड़े फैसले लेते थे।
राजा विक्रम का मानना था कि शासक का कर्तव्य है अपने राज्य में हर व्यक्ति को समान अधिकार देना और किसी के साथ भी अन्याय नहीं होने देना। लेकिन एक दिन राजा विक्रम के सामने एक कठिन स्थिति उत्पन्न हुई, जिसमें उसे अपनी सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता का परीक्षण करना पड़ा।
कठिन निर्णय की घड़ी
एक दिन राज्य में एक बहुत बड़ा मामला सामने आया। राज्य के एक बड़े व्यापारी ने राजा विक्रम से एक बड़ी राशि उधार ली थी। व्यापारी ने वचन दिया था कि वह इस कर्ज को समय पर चुका देगा। लेकिन समय बीतने के बाद, व्यापारी ने कर्ज चुकाने में विफलता का सामना किया। राजा विक्रम ने व्यापारी से कर्ज के बारे में पूछा, तो उसने यह कहकर कुछ समय और मांग लिया कि वह जल्द ही पैसे चुका देगा।
समय गुजरता गया और व्यापारी ने फिर से अपनी वचनबद्धता पूरी नहीं की। राज्य के कई लोग राजा से शिकायत करने लगे कि व्यापारी ने झूठा वादा किया और उसकी वजह से गरीबों की मदद करने के लिए रखी गई राशि का दुरुपयोग किया।
राजा विक्रम को यह निर्णय लेना था कि क्या वह व्यापारी को उसके झूठे वचन के लिए सजा दे या फिर उसे और समय देकर एक और मौका दे।
राजा का निर्णय
राजा विक्रम को यह स्थिति बहुत कठिनाई में डाल दी थी। वह जानते थे कि एक शासक का पहला धर्म सत्य का पालन करना है, लेकिन व्यापारी एक बड़ा व्यक्ति था और उसके कर्ज का भुगतान न करने से राज्य की वित्तीय स्थिति प्रभावित हो सकती थी।
राजा ने अंततः व्यापारी को बुलाया और कहा:
"तुमने बार-बार झूठा वचन दिया और राज्य के भले के लिए उधार लिया। क्या तुम्हारे लिए यह उचित है कि तुम्हारे झूठे वचन के कारण राज्य के गरीबों को नुकसान हो?"
व्यापारी ने कहा:
"मुझे अफसोस है, महाराज। मैं सच में कर्ज चुकाना चाहता हूँ, लेकिन व्यापार में मंदी आ गई है और मैं कर्ज चुका नहीं पा रहा हूँ।"
राजा विक्रम ने कहा:
"तुमने जो झूठा वचन दिया है, उसका परिणाम तुम्हें भुगतना होगा। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह व्यापारी हो या साधारण नागरिक, जब किसी से वादा करता है, तो उसे उसे निभाना चाहिए। झूठे वचन से किसी को भी लाभ नहीं मिल सकता।"
राजा ने व्यापारी की संपत्ति को जब्त किया और उसे उसकी गलतियों का एहसास दिलाया। हालांकि, उसने व्यापारी को कड़ी सजा देने के बजाय उसे सुधारने का प्रयास किया और कहा:
"तुमने राज्य को धोखा दिया है, लेकिन मैं चाहूँगा कि तुम अपना जीवन फिर से सुधारो और कभी झूठा वचन न दो।"
राजा विक्रम ने व्यापारी को एक अवसर दिया, लेकिन उसने यह सिद्ध कर दिया कि झूठ और धोखे के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या राजा विक्रम का निर्णय सही था? क्या झूठे वचन को स्वीकार करके किसी को दूसरा मौका देना उचित था?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"राजा का कार्य सत्य और न्याय का पालन करना होता है। व्यापारी ने झूठा वचन दिया था, लेकिन फिर भी उसे सुधारने का एक अवसर दिया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि एक शासक का कार्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि समाज को सुधारना भी है। लेकिन किसी को सुधारने के लिए उसे सजा देना जरूरी था, ताकि वह अपने कर्मों का सही परिणाम समझ सके और भविष्य में कभी भी झूठा वचन न दे।"
कहानी की शिक्षा
- झूठे वचन से किसी को भी फायदा नहीं होता, और ऐसे वचन का पालन करना अनुचित होता है।
- सच्चा न्याय केवल दंड देने में नहीं, बल्कि सुधारने में भी होता है।
- एक शासक का कार्य सत्य का पालन करना और सभी को समान रूप से न्याय देना है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें